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विजयादशमी ---------------- विजयदशमी पर विजय उत्सव

विजयादशमी
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विजयदशमी पर विजय उत्सव मनाती है धरा।
सीतापति  श्रीराम  की  गाथा  सुनाती  है धरा।।

दहन होता आज है रावण और कुंभकर्ण, मेघनाद।
गूंजता  जयघोष  है  करतल  करे  चहुंओर  नाद।।

हर्ष है सुर,नर, मुनि में आज हर्षित दिग दिगंत।
राम  के  हाथों हुआ,  पापी दशानन का है अंत।।

तीनों लोकों पर किया प्रभु राम ने उपकार है।
अहंकारी  दुष्ट  रावण  का  किया  संहार  है।।

जीत है यह धर्म की, यह सत्य की,परमार्थ की।
राम ने  है नींव  रख्खी,  जगत  में  पुरुषार्थ की।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki #विजयदशमी
विजयादशमी
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विजयदशमी पर विजय उत्सव मनाती है धरा।
सीतापति  श्रीराम  की  गाथा  सुनाती  है धरा।।

दहन होता आज है रावण और कुंभकर्ण, मेघनाद।
गूंजता  जयघोष  है  करतल  करे  चहुंओर  नाद।।

हर्ष है सुर,नर, मुनि में आज हर्षित दिग दिगंत।
राम  के  हाथों हुआ,  पापी दशानन का है अंत।।

तीनों लोकों पर किया प्रभु राम ने उपकार है।
अहंकारी  दुष्ट  रावण  का  किया  संहार  है।।

जीत है यह धर्म की, यह सत्य की,परमार्थ की।
राम ने  है नींव  रख्खी,  जगत  में  पुरुषार्थ की।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki #विजयदशमी