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आज गली में चाँद तुम्हारी क्या थोड़ा नीचे आया है, या

आज गली में चाँद तुम्हारी क्या थोड़ा नीचे आया है,
या फिर गोरी छत पर चढ़कर चेहरा तुमने दिखलाया है।

छिपे हुए हैं तारे सारे शरमाकर नभ के आँचल में,
ऐसा तेज़ धरा पर तुमने किस आभा का बिखराया है।

रात अमावस हुई पूर्णिमा ऐसा रूप दिखाया है,
लगता है ज्यों नील झील में श्वेत कमल मुस्काया है|!

*तेज़- चमक, ओज

©Nitin Arya Muntzir
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