कितना बड़ा पेट है तुम्हारा ? जो तुम सारी शर्म-लाज खा गए ! सच्चाई के अल्फाज खा गए ! अपनी आत्मा की आवाज भी खा गए ! अक्सर सुनता हूँ मैं लोग झूठी कसमें खाते हैं मगर तुम तो महाकाय हो ! सबसे बड़े भूखे ! कुम्भकरण की मानिंद ! तुम तो जंगल भी खा गए , पहाड़ भी निगल गए ! बेसहारों के गाँव भी खा गए ! गरीबों के पाँव भी खा गए ! उनको तपन से निजात देने वाली छाँव भी खा गए अब और क्या-क्या खाओगे ! मत भूख बढ़ाओ इतनी इसे थोडा कम कर दो ! अरे खाना ही है तो गरीबों के गम खा जाओ ! मुसीबतजदा लोगों की मुसीबतें खा जाओ ! देश के भ्रष्ट्राचार को निगल जाओ ! मंहगाई को खा जाओ ! लेकिन याद रखना कुछ चीजें इस दुनियां के लिये बहुत अहम् हैं बिना उनके ये धरती ख़त्म हो जायेगी इसलिये कभी प्यार को मत खाना ! दोस्ती को मत निगलना ! विश्वाश को मत तोडना ! यशपाल सिंह "बादल" ©Yashpal singh badal पेटू #gaon