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पुरानी यादें ओझल हो रही हैं खुद ही से, टकरा कर मेर

पुरानी यादें ओझल हो रही हैं खुद ही से, टकरा कर मेरी आँखों से लौट रही जैसे लहरें है दुर जा रही अपने ही किनारों से, बिखर गई वो सारी सफर की कहानियांँ क्योंकी बदल रहे हैं खुद किरदार अपने आपको रह गया है कहीं जो साथ अधुरा अब कहां होगा पुरा, आँसु भी खुद के कहाँ है दिखाई दे रहे की वक्त भी बन गया पत्थरों सा

©SAHIL KUMAR
  कौन रहा साथ
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SAHIL KUMAR

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कौन रहा साथ #कविता

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