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कैसे एक माता अपने त्याग को स्वार्थ का नाम दे जाती

कैसे एक माता अपने त्याग को स्वार्थ का नाम दे जाती है।




 कैसे एक माता, अपने त्याग को, स्वार्थ का नाम दे जाती है।।

वो है जगत जननी वो महामाई, भगवन से ऊँचा उसका स्थान।
पुत्र का बलिदान दिया जिसने, हर कोई उसके त्याग से अनजान।।

हृदय को बनाया पाषाण जिसने, हर इल्जाम ख़ुद पर सह जाती है।
कैसे एक माता, अपने त्याग को, स्वार्थ का नाम दे जाती है।।
कैसे एक माता अपने त्याग को स्वार्थ का नाम दे जाती है।




 कैसे एक माता, अपने त्याग को, स्वार्थ का नाम दे जाती है।।

वो है जगत जननी वो महामाई, भगवन से ऊँचा उसका स्थान।
पुत्र का बलिदान दिया जिसने, हर कोई उसके त्याग से अनजान।।

हृदय को बनाया पाषाण जिसने, हर इल्जाम ख़ुद पर सह जाती है।
कैसे एक माता, अपने त्याग को, स्वार्थ का नाम दे जाती है।।

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