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रिश्तो की मधुर ड़गर पर प्रीति की आबोहवा बह रही

रिश्तो की मधुर  ड़गर पर
प्रीति  की  आबोहवा  बह रही है

इधर तुमने चुप्पी से मुँह अपना बाँध रखा है
उधर  खामोशी मेरीआख़री सांस ले रही है

संवरा सवरा सा  मौसम है
मेरे अंतस की  पिपासा  राह प्रीत से  जोड़ रही है

करना पड़ेगा  परिष्कृत हमेँ इस  प्रीत कों
ज़ो  आयेदिन रूढ़ियों में बंधक बन रही है

©Parasram Arora प्रीति......
रिश्तो की मधुर  ड़गर पर
प्रीति  की  आबोहवा  बह रही है

इधर तुमने चुप्पी से मुँह अपना बाँध रखा है
उधर  खामोशी मेरीआख़री सांस ले रही है

संवरा सवरा सा  मौसम है
मेरे अंतस की  पिपासा  राह प्रीत से  जोड़ रही है

करना पड़ेगा  परिष्कृत हमेँ इस  प्रीत कों
ज़ो  आयेदिन रूढ़ियों में बंधक बन रही है

©Parasram Arora प्रीति......