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रात भर इक चांद का साया रहा जिसकी चांदनी में सराबो

रात भर इक चांद का साया रहा 
जिसकी चांदनी में सराबोर था मन 
छिटक रही थी चांदनी डूब रहे थे तन मन
इतने में आहट सी आने लगी सुबह की 
जाने लगी चांदनी खोने लगा था रात का साया 
     ना भूलने वाला हमसाया रहा ....... 
रात भर इक चांद का साया रहा

©Dr. Manishacharya Yoga Guru Astrologer
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