" तेरे तसव्वुर के एहसासों को आज भी जी रहे हैं , गुमनाम मुहब्बत को कोई और एक मुकाम दें रहे हैं , जिस्म हैं छली-छली अब भी की तेरे उल्फत में , तेरे जख्म को तरोताजा करने को एक और भी हवा का लिवास दे रहे हैं . " --- रबिन्द्र राम " तेरे तसव्वुर के एहसासों को आज भी जी रहे हैं , गुमनाम मुहब्बत को कोई और एक मुकाम दें रहे हैं , जिस्म हैं छली-छली अब भी की तेरे उल्फत में , तेरे जख्म को तरोताजा करने को एक और भी हवा का लिवास दे रहे हैं . " --- रबिन्द्र राम #तसव्वुर #मुहब्बत #मुकाम