ग़जल हमे देख कर जब वह मुस्कुराने लगी। अपने नयनो कि बान हमपे चलाने लगी। हम तो सुध-बुध अपना गवा बैठे सब, जब वह सीने से आँचल सरकाने लगी। बनके भौंरा हम तो उनपे मंडराने लगे, जब बनके फूल वह सुगंध फैलाने लगी। जब उसके नयनो की बाते समझ हम गये, प्रेम का बौछार हमपे वह बरसाने लगी। खूबसूरती के जाल में हम फसते गये, अपने रुपो का दर्शन जब कराने लगी। जब वह छुप-छुपके हमसे लगी मिलने, तबसे अकेले मे भी वह चहचहाने लगी। देखकर दुनिया हम दोनों के प्रेम को, कृष्ण जुदाई का जंजीर फैलाने लगी। कवि:-कृष्ण मंडल ग़जल हमे देख कर जब वह मुस्कुराने लगी। अपने नयनो कि बान हमपे चलाने लगी। हम तो सुध-बुध अपना गवा बैठे सब, जब वह सीने से आँचल सरकाने लगी। बनके भौंरा हम तो उनपे मंडराने लगे, जब बनके फूल वह सुगंध फैलाने लगी। जब उसके नयनो की बाते समझ हम गये,