1222 1222 1222 1222 संजो रख्खे हैं जो सपने उन्हें बतला नहीं सकता कलेजा चीरकर अपना तुम्हे दिखला नहीं सकता तुझे चाहा तुझे पूजा तेरी ही बन्दगी की है किसी भी और के आगे ये सर झुका नहीं सकता यूँ मिलती है मसर्रत जो तुम्हे ये दिल दुखाने में कभी में दिलकिसी का ऐसे तो दुखा नहीं सकता बसी है मेरे साँसों में महक कुछ इस कदर तेरी छुपाना चाहूं भी तो मैं कभी छुपा नहीं सकता न होना तुम खफा हम से कभी भी ऐ मेरे हमदम जुदा होके में तुमसे ज़िन्दगी महका नहीं सकता करूँ मैं कैसे तुमसे झूठे वादे हम सफर मेरे जमी पर चाँद तारे तोड़ कर में ला नहीं सकता ( लक्ष्मण दावानी ✍ ) 16/1/2017 ©laxman dawani #alone #Love #Life #romance #Poetry #gazal #experience #poem #Poet #Knowledge