शब -ए फुरसत थी, महर-ए रात थी गहरा अंधेरा था बहुत खामोशियाँ थीं, दूर अनजाना सवेरा था सफर कैसा था? जैसे हर घड़ी ठहरी हुई सी थी हृदय के शोर में हर पल सिसकता मौन, मेरा था हजारों बार बिन बोले तुम्हे आवाज तो दी थी मगर क्यूँ सुन न पाई क्या यही स्नेह तेरा था तुम्हारे बाद मेरी जिंदगी ही इक तजुर्बा है वो मन तस्वीर जैसा है जो कल चंचल चितेरा था __अभिलाषा पाण्डेय "स्नेह" ©abhilasha pandey ##गहरा अंधेरा##