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विशाल पांढरे

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विशाल पांढरे

रास्ते बदलते मोड़ लिए.....ना जाने.... कितने छोड़ गए
रास्ते भी कमाल के सफर में... क्या क्या जोड़ गए

विशाल
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विशाल पांढरे

बस रोक दो अब ये तबाही सही ना जाती
ना समझ पाती ही उसे और कही ना जाती

बरबाद कर दिया मेरे हरेक वजूद को ऐसे
मैं हूं क्या यही कहीं भी पहचानी ना जाती

ना रंग रखा ना रूप कोई मेरा निछोड़ लिया
बे रंग होकर खुद को खुद देखी ना जाती

रहम कर दो कल की नस्लों के लिए तुम
क्या देखूंगी मैं कल बात बताई ना जाती

संभाल रख लो अभी देर हुई नहीं है यहां
हश्र बुरा कर ज़िंदगियां संवरी ना जाती

कल भी तुम्हारा हाल बे हाल होगा जान ले
निहाल रहोगे साथ मेरे बात दोहराई ना जाती

विशाल पांढरे
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विशाल पांढरे

ग़ज़ल

बदल क्यों जाऊं  खातिर उनके   जो परवाह करते नहीं
रख लिए अंदर नफ़रत  उसे  अपनाते तबाह करते नहीं

मिलते है नज़रों  से  नज़र  मिलाकर  दूर ही दूर से अब
नमी छा  जाती निगाहों में  हम बहाया  आब करते नहीं

बना दिया है  सादा-ए-दिल को कठोर इक पत्थर जैसा
बदल कहां तक जाएं हम  जब वो भी गुनाह करते नहीं

बिछाएं रख दिए थे निकाल हर इक खुशी को हमने भी
नजदीक से  गुज़र कर  भी वो  ऊंची निग़ाह करते नहीं

किस पत्ते को, किस गुल को लें आएं हम साबित करने
वो सब माशूक निकले उनके जो यहां गवाह करते नहीं

जिस्म लगाएं रखा प्यास पर सीने का पत्थर ना मानता
दिमाग़ मशगूल खुद में,  खुद को वो गुमराह करते नहीं

बचा क्या पास जो तब्दील कर लें खुद ब खुद को यहां
जो चल दिया नफ़रत से साथ  उसके प्रवाह करते नहीं

कुछ गलतियां हो गई होगी   नादान-ए-दिल आखिर है
ले पक्ष "विशाल" उसे भी  साबित  बे-गुनाह करते नहीं

विशाल पांढरे
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विशाल पांढरे

ग़ज़ल

बना दिया है कुछ ऐसे तुमसे जुदा ना हो जाऊंगा
हो गई नफ़रत लाख बार पर खफा ना हो जाऊंगा

ये दूरियां कितनी सख़्त पेश आ जाती है संग मेरे
खो भी गया कहीं भी कभी बे पता ना हो जाऊंगा

ढूंढ लेना कहीं तो मिलूंगा सच्चे दिल से इंतजार में
मर जाऊंगा जरूर तुम से मैं बे वफ़ा ना हो जाऊंगा

ख़ाली कोई सिलवट नहीं रही अब बाद तेरे जाने के
हर गुजरती रातों में लगे.. कहीं फ़ना ना हो जाऊंगा

डर लगाए रहता मन तो दिल धड़कना छोड़ देता है
पुराने किताबी पन्ना वो सुना अनसुना ना हो जाऊंगा

जिसपर हाथ फेरकर सहलाया करती हर रोज़ तुम
तुमसे जुड़ा हिस्सा कोई दूर का किस्सा ना हो जाऊंगा

विशाल पांढरे
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विशाल पांढरे

मुबारक बात किस को देता नहीं अब
जरूरत के वक़्त मैं मिलता नहीं अब

देख दुआओं को तब्दील बद'दुआ में
किसी के लिए मुराद करता नहीं अब

जान लिया जिन्होंने सवाल करते नहीं
जो करते है उन्हें जवाब देता नहीं अब

हाँ पास बहुत है ज़ख्म दिए अपनों ने
और किसी के ज़ख्म देखता नहीं अब

लगता हरेक बार मैं कुरेद रहा हूँ दर्द
इसलिए दर्द-ए-दिल सुनता नहीं अब

कहाँ रहा हूँ पास किसी के महफूज़ मैं
फ़िक्र और  ज़िक्र  से डरता  नहीं अब

आज जिंदा हूँ तो सुनकर लेता हूं डांट
ख़ामोश जरूर पर घबराता नहीं अब

शरीक होता नहीं किसी की खुशी में
क्यों की मुबारक बाद देता नहीं अब

विशाल पांढरे
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विशाल पांढरे

जरूरतों के हिसाब से मिला नहीं हूं
मनमर्ज़ी और पसंद से खिला नहीं हूं

पतझड़ मौसम आया तो छोड़ दिया
बे मौसमी पास रखा काफ़िला नहीं हूं

सिख ले हुनर इतने ना तरीक़े रखे है
और कोई गया-गुजरा कबीला नहीं हूं

समझ रखता हूं मिलकर जानेवालों की
ना समझ हूं पर अंदर से हिला नहीं हूं

मनोरंजन के लिए देख लेते है सब मुझे
जिए जा रहा हूं कोई रासलीला नहीं हूं

यूं कब तक रोया करूं दर्द को कर याद
यादों में डूब रोता मैं सिलसिला नहीं हूं

विशाल पांढरे
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विशाल पांढरे

बदला  चाहकर  भी  हम  उनसे  खफा  हो  नहीं  सके
 क्या   लेंगे     हम   जो    जुदा   हो  नहीं   सके

वो  करते  रहे   बे-वफ़ाई   हद पार हर बार हमसे
  जानकर भी  दर्द   की   खुद   दवा हो  नहीं  सके

ना जाने कैसे   लुफ़्त उठाते रहे  नज़र के सामने
उठाएं  जब भी हाथ  पर  बद'दुआ  हो नहीं सके

शायद    यही  था  के.....   दिल  में    रहे  उनके
हरदम   याद  कर   के   हमें  भूला वो   नहीं सके

इससे    ज्यादा  और   क्या   खुशनसीबी    होगी
ठुकराकर  भी  हरेक पल  कर जुदा वो नहीं सके

विशाल पांढरे

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विशाल पांढरे

दिल-ए-नासूर बनकर रह गया इस जिस्म में
कैसे यकीं दे किसी को सोचता क्या बाद उसके
दिल-ए-रेजा था पहले अब तो दिल-ए-मुर्दा बना
हाल-ए-दर्द-दिल और लिखेगा क्या बाद उसके

विशाल पांढरे
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विशाल पांढरे

समय यही सही था, है और रहेगा
चंद अल्फ़ाज़ में बयां जीवन करेगा
खूबसूरत एहसास, जज़्बात अपने
खुद मिटकर...... खुद में ये भरेगा

यही वो पल है जो याद साथ रहेगा
यही जगह ये शाम डूबा सूरज कहेगा
यही काली गिरी अक्स या दिलाएगी
यही समा, ये आलम, पास हमेशा रहेगा

विशाल

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विशाल पांढरे

 ग़ज़ल
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