पेशे से नहीं शौक से कवि हूँ साहिल हूँ, पत्ता हूँ, ग़म का ख़ज़ाना हूँ; मुझे घर पर ना ढूंढ़ना दोस्त, कश्ती हूँ, नग़मा हूँ, आवारा ठिकाना हूँ।। -----------∆-----------∆------------∆----------- कुछ नया करने की कोशिश ही आपको अलग बनाये रखती है।
Himanshu uniyal "चन्द्र"
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