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अमर पान्डेय अनुरागी

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अमर पान्डेय अनुरागी

उनसे मिलने की चाहत, बड़ी पुर-जोर होती है,
आजकल तन्हाईयाँ मेरी, अनोखा शोर होती है!

बदलता रहता हूँ करवटें, मैं बिस्तर पर लेटे - लेटे,
जाने अब बाद-ए-सबा, उनकी किस ओर होती है!

बस तकती हैं उनका रस्ता, पलकें बिछाए आँखें,
वो आते नहीं, तो इनसे बारिश, घनघोर होती है!

उनकी सूरत हर किसी में, आती नज़र है मुझको,
बता क्या इश्क़ करने से,  आंखें कमजोर होती है! 

बस एक ही दुआ, या रब, जो भी मिले ना बिछड़े, 
टूटे ना कभी जो, "अमर" इश्क की डोर होती है! #love
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अमर पान्डेय अनुरागी

ज़िन्दगी एक अज़ीब , कशमकश में है,
साँस भी मेरी अब, तेरे  ही  वश  में  है! 
दिल सुकूं ही नहीं पाता, तेरे  बिन  अब,
तू लहू बन के बह रहा,  नस नस में है!! #ज़िन्दगी
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अमर पान्डेय अनुरागी

इश्क़

इश्क़

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अमर पान्डेय अनुरागी

वो इश्क़ क्या जिसमें,  हमसफ़र पर नाज़ ना हो,
वों इश्क़ क्या जिसमें, दर्द का ही आगाज़ ना हो!

इश्क़ तो मजहब है जिसका, आशिक़ ही खुदा है,
इश्क़ का तो हर एक बात, होता औरों से जुदा है!
वो इश्क़ ही क्या,   जिसका अलग अंदाज़ ना हो,
वों इश्क़ क्या जिसमें, दर्द का ही आगाज़ ना हो।

इश्क़ आग है, दरिया है, और समन्दर का पानी है,
इश्क़ की उम्र नहीं, ये बच्चा है, बुढ़ा है जवानी है!
वों इश्क़ क्या जिसमें,   धड़कनों की साज ना हो,
वों इश्क़ क्या जिसमें,  दर्द का ही आगाज़ ना हो।

इश्क़ से कहो ऐसा, जिसे मैं सुनूँ, आवाज़ ना हो,
इश्क़ है अगर, फिर दरम्याँ अपने,  राज़  ना  हो!
चलो इश्क़ की एक, "अमर" दुनिया बसाए हम,
जहां मिल के, बिछड़ने का,  कोई रिवाज़ ना हो। 

वो इश्क़ क्या जिसमें,  हमसफ़र पर नाज़ ना हो,
वों इश्क़ क्या जिसमें, दर्द का ही आगाज़ ना हो।। 


✍️ अमर पान्डेय अनुरागी इश्क़

इश्क़ #कविता

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अमर पान्डेय अनुरागी

कुछ कहो जिसे बस मैं सुनूँ, लेकिन आवाज़ ना हो,
पर ध्यान रहे अपने दरमियाँ,  कुछ भी राज़ ना हो! 
मिलना बिछड़ना, बिछड़ना मिलना, ये अच्छा नहीं, 
  चलो चलते हैं, जहां बिछड़ने का ही, रिवाज ना हो!! 

                               
                          ✍️अमर पान्डेय "अनुरागी" शे'र

शे'र #कविता

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अमर पान्डेय अनुरागी

कविता

कविता

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अमर पान्डेय अनुरागी

ये न पूछो सनम, तुमसे  क्या चाहता  हूँ, 
मैं  तुझे  इश्क़  में, बे-इंतिहा  चाहता  हूँ! 

              मैं अकेले तड़पता हूँ,  रातों  में  अक्सर,
                खुद से ज्यादा तुम्हें, जानेजा  चाहता हूँ! 

चाहता हूँ कि हरपल, देखता रहूँ तुमको,
बस तुझे देखने की ही, रज़ा  चाहता  हूँ! 

                  चाहता हूं तेरे बाहों में,  दिन   गुजारुँ   मैं, 
                     तेरी धड़कन का ही मैं तो पता चाहता हूँ! 

चाहता हूँ 'अमर' हो,दास्तां आशिकी की, 
संग  में  तेरे  मैं, मरना-जीना  चाहता  हूँ!! 

✍️ अमर पान्डेय अनुरागी


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