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shashibhushanmis9249
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Shashi Bhushan Mishra

I am a science graduate from UP. currently working in an Indian multinational pharma company as Sr RBM. I love poetry. I write poems and Gazals.

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Shashi Bhushan Mishra

तूफ़ान  बनके  आया  बंगाल में कहर, 
दिखता है तबाही में रीमाल का असर,

उजड़ी है कई बस्ती उखड़े हजारों पेड़,
कुदरत के सामने हुआ विज्ञान बेअसर,

विकराल हवाएं थीं बारिश भी बेशुमार,
आए हैं इसकी जद में देखो कई शहर, 

गर्मी से तप रहा है बेहाल हुआ जीवन, 
मौसम की त्रासदी से अवाम पुर-असर,

लू की  चपेट  लील  गई  हैं कई  जानें,
यह नौतपा का रौद्र रूप कैसे हो बसर,

हम कैद घरों में ही रहने को हुए बेबस, 
सुनसान पड़ी  सड़कें  गमगीन दोपहर,

गुंजन थे बदनसीब सुबह देख ना सके, 
गर्दिश भरी  रातों का  होता नहीं सहर,
     ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
              प्रयागराज उ•प्र•

©Shashi Bhushan Mishra #तूफ़ान बनके आया#

#तूफ़ान बनके आया# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

भाग्य ने डँसा, 
घर नहीं बसा, 
यार भी बदले,
मन नहीं जँचा,
है अंधेरी  रात, 
कैसे कटे बता,

दो हौसला हमें,  
फ़िक्र मत जता,
कश्ती डुबा गये, 
किसकी है ख़ता,
टूटा  ग़ुरूर  जब, 
घेला  नहीं  बचा,

नीयत में खराबी, 
किसको है पचा,
लुट चुकी  बहार, 
शोर  अब  मचा,
'गुंजन' ये आबरू, 
जितनी बची बचा,
-शशि भूषण मिश्र 
'गुंजन' प्रयागराज

©Shashi Bhushan Mishra #जितनी बची बचा#

#जितनी बची बचा# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

हाँ में हाँ है,
ना में ना है, 
झूठी कसमें
प्रेम कहाँ है,
मन भरमाये
यहाँ वहाँ है,

ढूँढी खुशियाँ
जहाँ तहाँ है,
बंद है आँखें
दृष्टि कहाँ है,
तन्मयता से
ढूँढ जहाँ है,

अंतर्मन यह
दर्द  सहा है,
भवसागर में
जब नौका है, 
ज्ञान से गुंजन
पार  हुआ  है,
--शशि भूषण 
  मिश्र 'गुंजन'
  प्रयागराज

©Shashi Bhushan Mishra #प्रेम कहाँ है#

#प्रेम कहाँ है# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

White झूठ फ़रेब के ताने-बाने, 
बनते फिरते लोग सयाने, 

ख़ुदगर्जी है आदत उनकी, 
औरों  की ख़ातिर  पैमाने,

भाग खड़े होते  मौके पर, 
करते फिरते  झूठ बयाने,

औरों पर रखते निगाह जो, 
करे गलत जाने-अनजाने,

शक की सूई बचाती आई, 
लोग  समझते  जाने-माने,

करतब जग-जाहिर होने पे,
रोज बदलते  नये  ठिकाने,

कर्मों का फल पड़े भुगतना, 
'गुंजन' यहाँ  न चले  बहाने,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      प्रयागराज उ• प्र •

©Shashi Bhushan Mishra #बनते फिरते लोग सयाने#

#बनते फिरते लोग सयाने# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

धूप से  खिलवाड़ घातक, 
प्यास से मर गया चातक,

ढूँढते  फिरते  हैं  ठण्डक, 
परेशाँ  सब  वृद्ध जातक,

नर्क  जैसी  यातना   यह, 
बन गया हर कोई पातक,

एक सा है असर  सब पर, 
रहे अनपढ़ या हो स्नातक,

सृष्टि की समदृष्टि सब पर, 
ज्ञान  समता बोध द्योतक,

भटकना  पड़ता जगत में, 
बंद  कर ले भाग्य फाटक,

पात्र हैं  हम  सभी 'गुंजन',
ज़िन्दगी  है  एक   नाटक,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     प्रयागराज उ▪︎प्र▪︎ •

©Shashi Bhushan Mishra #धूप से खिलवाड़ घातक#

#धूप से खिलवाड़ घातक# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

White बेशुमार   खज़ाने  हैं, 
कुदरत के नज़राने हैं,

ये मुक़ाम भी पाने में, 
हमको लगे ज़माने हैं,

बिला जरुरत के सारे, 
रिश्ते  भी   बेगाने  हैं,

ख़बरें सारी दुनिया की,
ख़ुद से ही अनजाने हैं,

हर कोई इस बस्ती का, 
कुदरत  के  दीवाने  हैं,

ढूढ़ोगे  रब कहाँ-कहाँ,
कितने और ठिकाने हैं,

'गुंजन' है पहचान यही, 
हंसी-खुशी   पैमाने  हैं,
  --शशि भूषण मिश्र 
    'गुंजन' प्रयागराज

©Shashi Bhushan Mishra #हँसी ख़ुशी पैमाने हैं#

#हँसी ख़ुशी पैमाने हैं# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

राह नहीं आसान, 
पग-पग पे हैवान, 
डरने  की है  बात, 
रस्ता भी सुनसान, 
मोह में  फँसा रहे, 
कितना है  नादान, 
आदत  से मज़बूर,
लुटा  रहा  है जान, 

धोखे  का व्यापार, 
नफ़रत की दूकान, 
गया है खाली हाथ, 
खाली पड़ा मकान, 
छल प्रपंच का मेल, 
सबसे था अनजान,
बेच   रही   दुनिया, 
दहशत का सामान, 

जोखिम का  सौदा, 
भरना  पड़े  लगान, 
वक्त के मजलिस में,
कठिन है इम्तिहान,
दिल में हो जब दर्द, 
कड़वी लगे ज़ुबान,
पैसों  का  है  मोल, 
'गुंजन'  करे बयान,
--शशि भूषण मिश्र 
 'गुंजन' प्रयागराज

©Shashi Bhushan Mishra #राह नहीं आसान#

#राह नहीं आसान# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

परिधानों  से  लाज  ढाँपती
                                 नज़रों में छुप जाती थी, 
                             लज्जा बसती थी आँखों में 
                               मन ही मन सकुचाती थी,

पर्दे के पीछे का सच भी  डर की जद में सिमटा था, 
लोक लाज के डर से नारी अक्सर चुप रह जाती थी,

बचपन का वो अल्हड़पन दहलीज जवानी की चढते, 
खेतों की  मेड़ों पर  चलती  इठलाती  बलखाती थी,

सावन  में  मदमस्त नदी सी चली उफनती राह कभी, 
देख  आईने में  ख़ुद को  नटखट कितनी शर्माती थी,

प्रेम  और  विश्वास  अडिग  वादे  थे   जीने मरने  के,
रूप सलोना फूलों सा  कितनी सुंदर  कद-काठी थी,

माँ  बाबूजी  भैया  भाभी  सबके  मन में  रची-बसी, 
सखियों के संग हँसी ठिठोली मिलने से घबराती थी,

भावुक हृदय सुकोमल काया मन से भोली थी 'गुंजन',
बात-बात पर नखरे शोखी नयन अश्रु छलकाती थी,
       ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
               प्रयागराज उ •प्र •

©Shashi Bhushan Mishra #लज्जा बसती थी आँखों में#

#लज्जा बसती थी आँखों में# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

White कुनबे  का  सरदार  है  तू, 
लाखों दिल का प्यार है तू,

गज़ल  कही  है  रूमानी, 
धड़कन की झंकार है तू,

दिखलाई  दे  दूर  तलक, 
ताक़तवर  मीनार  है  तू,

करे  सुरक्षा  सरहद  की, 
इक  अभेद्य दीवार है तू,

प्यास बुझाए प्यासों की, 
मीठा जल  रसधार है तू,

तप्त धरा का जनजीवन, 
सावन माह  फुहार  है तू,

'गुंजन'  रब  से  वाबस्ता,
फसलों  का  श्रृंगार है तू,
 -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       प्रयागराज उ• प्र•

©Shashi Bhushan Mishra #फसलों का श्रृंगार है तू#

#फसलों का श्रृंगार है तू# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

White बे-रहमी   से   तोड़ा  उसने, 
कलियों को ना छोड़ा उसने, 

बागवान    ठहरा    बेचारा, 
हाथ-पांव तक जोड़ा उसने, 

दो दिन की रोटी भिजवाकर,
पीटा   खूब   ढिंढोरा  उसने,

पत्थर  का  हो  गया आदमी, 
दिल को नहीं झिंझोड़ा उसने,

काट  दिए  कच्चे  नींबु सा, 
काफी  देर  निचोड़ा  उसने,

अरमानों  के  ज़ख़्म कुरेदे, 
मन को रक्खा कोरा उसने,

क़ामयाब मक़सद होने तक, 
दिल पर  डाला डोरा उसने,

ख़ुद से गलती किया ठीकरा, 
औरों  के  सर  फोड़ा उसने,

प्रेमी  बन  हटवाया  'गुंजन',
दूर   राह   का  रोड़ा  उसने,
 --शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
       प्रयागराज उ• प्र•

©Shashi Bhushan Mishra #बे-रहमी से तोड़ा उसने#

#बे-रहमी से तोड़ा उसने# #कविता

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