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bshivsagar5906
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शिव सागर

विचलित भावों को शब्दों में पिरोने की आदत है।

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शिव सागर

ग़ज़ल

बाकी न हैं तरीक़े अब इज़हार के लिए
बस मामुली से लफ्ज़ हैं इसरार के लिए

कुछ यूं किया है तल्ख़ हमें राह-ए-इश्क़  ने
होती नहीं खुशी हमें अग्यार के लिए

ताकत मेरे कलाम में अब वो नहीं रही
आया हूं इसलिए तेरी दुत्कार के लिए

अब क्या कहें कि क्यूं हैं हम अब तक यूं मुंतज़िर
उनको समय नहीं मिला इंकार के लिए

कुफ्फार पर हुआ है रह-ए-खुल्द का करम
दौज़ख़ नसीब में है परस्तार के लिए

ऐसा नहीं कि कोह से छुटते ही खुल पड़े
दरिया को वक्त चाहिए रफ़्तार के लिए 

                               :- परवाज़ रायपुरी
                                     (शिवसागर)

©शिव सागर

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शिव सागर

ग़ज़ल

मयकश नहीं हैं इस का निहायत मलाल है
वरना तमाशा दर पे तिरे क्या कमाल है?

जाते हैं जब सफ़र में तो रख लेते हैं किताब
पढ़ते हैं या नहीं ये अलहदा सवाल है

हम इंतज़ार गर न करें तो करें भी क्या
ये राह मुस्तकिल है भले पायमाल है

सारे जहां से लड़ के हम आए थे तुमको पर
तुमने झिड़क के कह दिया मिलना मुहाल है

अपनों से फासले न मिटाएंगे उम्र भर
बस कल को ये कहेंगे की इसका मलाल है

वो पूछते हैं काम का इतना क्या शौक़ है
कैसे कहें मकान का वीरान हाल है

तुमने बस इक दफा मिरी तारीफ़ की थी और
चहरा ये शर्म से अभी तक लाल-लाल है।

                                   :- परवाज़ रायपुरी
                                        (शिवसागर)

©शिव सागर #beinghuman
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शिव सागर

ग़ज़ल

ग़फ़लत का जो मिज़ाज तुझे शोखियां लगे
वो मेरे ज़ब्त-ए-दिल को कठिन इम्तेहां लगे

जितना भी देख लें तुझे उम्मीद से मगर
चाहत विसाले-यार की बस दास्तां लगे

वो हाल था हमारा तिरे इंतज़ार में
जां पर खड़े थे पांव के वां पर निशां लगे

कहते थे बाद-ए-हिज्र तुझे सुख मिले मगर 
दिल पर चले छुरी तू अगर शादमां लगे

ज़ंजीर-ए-ज़िम्मेदारी ने जकड़ा है इस क़दर
बर्बादियों की चाह भी अब रायगां लगे

परवाज़ कौन तेरे मुक़ाबिल खड़ा नहीं
हर सांस अब वफ़ा की कोई इम्तेहां लगे।

                               :- परवाज़ रायपुरी
                                    (शिवसागर)

©शिव सागर

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शिव सागर

ग़ज़ल

हमारे ज़ीस्त में तेरा निशां इस कद्र मिलता है
कि मुस्तकबिल का सोचें तो लबों से तू निकलता है

निगाहें चौंक उठती हैं तिरे दीदार से अब भी
सहर के शम्स को सूरजमुखी हर बार तकता है

अगर चाहें शबे-हिज्रात का हम मुख्तसर होना
तो गर्दिश-ए-जहां तब तंज़ कस के आप रुकता है

उसी सरगर्म की दीवानगी मकबूल होती है
जो ज़िंदां की फ़सीलों पर रुमानी नज़्म लिखता है

खुदी के हाथ से जज़्बात चकनाचूर करते हैं
मुहब्बत का फ़साना जब कभी फिर से उभरता है

दबाए हैं दिले-नादान के जज़्बे बहुत अंदर
मगर दीदार से तेरे मिरा जज़्बा निकलता है

रकीबों से दगा खाकर हमारे पास आई तो 
हमारे इश्क़ की अज़मत दिखाकर तंज़ कसना है

                           :- परवाज़ रायपुरी
                                (शिवसागर)

©शिव सागर

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शिव सागर

नज़्म :- विसाल की घड़ी

 तरसी थी जिसे आंख वो लम्हात यहां है
आख़िर को अब आए हैं तिरे पांव मिरे दर
कुहराम सा कूचे में मचा तेरी वजह से
भागे हुए आते हैं सभी दोस्त मिरे घर 

दिल नाच उठा है तिरे आने की ख़ुशी में
पर दिल के सब अरमान अभी रोक लिये हैं
इम्कान है ये सिर्फ़ ठिठोली हो तिरी बस
सो कील दरे-दिल पे अभी ठोक लिये हैं

सीने से लगेंगे सभी जज़्बात जुनूं के
शोखी के हर अरमान पर अंजाम करेंगे
जिस काम के करने पे दिवानों को चिढ़ाया
दीवानों के मानिंद वही काम करेंगे

चुपचाप-सी रातों में तुझे ठंड लगे तो
फ़ौरन तिरे शानों पे गरम कोट रखेंगे
मशरूफ़ मुहब्बत के तक़ाज़ों से हुए तो
सब दोस्त तग़ाफ़ुल का तब इल्ज़ाम धरेंगे।

                    :- परवाज़ रायपुरी
                        (शिवसागर)

©शिव सागर

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शिव सागर

नज़्म - विसाल की घड़ी

 तरसी थी जिसे आंख वो लम्हात यहां है
आख़िर को अब आए हैं तिरे पांव मिरे दर
कुहराम सा कूचे में मचा तेरी वजह से
भागे हुए आते हैं सभी दोस्त मिरे घर 

दिल नाच उठा है तिरे आने की ख़ुशी में
पर दिल के सब अरमान अभी रोक लिये हैं
इम्कान है ये सिर्फ़ ठिठोली हो तिरी बस
सो कील दरे-दिल पे अभी ठोक लिये हैं

सीने से लगेंगे सभी जज़्बात जुनूं के
शोखी के हर अरमान पर अंजाम करेंगे
जिस काम के करने पे दिवानों को चिढ़ाया
दीवानों के मानिंद वही काम करेंगे

चुपचाप-सी रातों में तुझे ठंड लगे तो
फ़ौरन तिरे शानों पे गरम कोट रखेंगे
मशरूफ़ मुहब्बत के तक़ाज़ों से हुए तो
सब दोस्त तग़ाफ़ुल का तब इल्ज़ाम धरेंगे।

         :- परवाज़ रायपुरी
           (शिवसागर)

©शिव सागर

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शिव सागर

ग़ज़ल

तर्ज़े-नर्मी ना दिखा उल्फत कुचलने के लिए
ताकि गुस्सा हो सकें दिल के संभलने के लिए

जानते हैं पुख्तगी पर दस्तरस मुमकिन नहीं
पुख्तगी तो बस बहाना है निख़रने के लिए

खुश नहीं मायूस करता है हमें तेरा जमाल
तेरी सूरत ही बहुत है आस खोने के लिए 

क्यूं ज़माना हाथ धोकर पड़ गया पीछे मिरे
राह सच्ची मिल गई शायद पकड़ने के लिए

मुफलिसी बेरोज़गारी में असर उतना नहीं
तेरी चाहत में असर जो है सुधरने के लिए

नक्शे-पा भी जान लेते हैं मिरा मेरे रकीब
चाहिए हिम्मत तिरे दर से गुजरने के लिए

वुसअतें तालीम की एहसास छोटेपन का दें
इल्म जो हासिल किया था ऊपर उठने के लिए

                             :- परवाज़ रायपुरी
                                  (शिवसागर)

©शिव सागर

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शिव सागर

ग़ज़ल

वो हम को परख़ने को हदें पार करेंगे
हम पार हर इक मंज़िले-दुश्वार करेंगे

वो ज़ख्म अभी सब्ज़ है पर हमको गवारा
दीदार तिरा कर के वहीं वार करेंगे

दामन न मयस्सर तो कम-अज़-कम हो मयस्सर
कुछ ज़ुल्फ जिसे जोड़ के हम दार करेंगे

अब और जिगर की न सुनेंगे ये कहा था
हर बार हम इस बात से इंकार करेंगे

ये क्यों हो ज़रूरी की उदासीन रहें बस
इमकान है वो स्वागते-इज़हार करेंगे

कोमल है कभी और है बेबाक कभी वो
वो ठान चुके हैं हमें लाचार करेंगे।

                        :- परवाज़ रायपुरी
                              (शिवसागर)

©शिव सागर

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शिव सागर

ग़ज़ल

कुछ पल ही मुसाफ़िर भी ठहरते हैं वहां पर
दीवाने तिरे आज भी रहते हैं जहां पर

अब हाथ तअल्लुक को मिला भी तो मिला क्या
क्या ज़ोर है ज़ंजीर का कश्ती-ए-रवां पर

मालूम नहीं किस के फ़साने ये सुने हैं
जिस कल्ब का दावा है वही कल्ब कहां पर

कहते थे कि तुमको तो मुहब्बत न गवारा
गमगीन हो पर तर्के-मुहब्बत के बयां पर

तुलसी पे चढ़ाया है बहुत आब मगर अब
कुछ तो हो तवज्जोह गुले-आहो-फुगां पर।

                      :- परवाज़ रायपुरी
                            (शिवसागर)

©शिव सागर
  #AWritersStory
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शिव सागर

ग़ज़ल

कुछ पल ही मुसाफ़िर भी ठहरते हैं वहां पर
दीवाने तिरे आज भी रहते हैं जहां पर

अब हाथ तअल्लुक को मिला भी तो मिला क्या
क्या ज़ोर है ज़ंजीर का कश्ती-ए-रवां पर

मालूम नहीं किस के फ़साने ये सुने हैं
जिस कल्ब का दावा है वही कल्ब कहां पर

कहते थे कि तुमको तो मुहब्बत न गवारा
गमगीन हो पर तर्के-मुहब्बत के बयां पर

तुलसी पे चढ़ाया है बहुत आब मगर अब
कुछ तो हो तवज्जोह गुले-आहो-फुगां पर।

                      :- परवाज़ रायपुरी
                            (शिवसागर)

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