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jaigupta6696
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जय

कुछ ख्यालातों से मिलना तेरा बाकी है अभी बिखरे पन्नो में भी मेरी इक कहानी है अभी।।✍️✍️ शायरी से मुहब्बत और ग़ज़ल में प्रेम है मेरा✍️ @jai_gupta_rocks follow me on insta frnzz

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जय




कविता - पितृत्व प्रेम

घर से दूर रहकर जब जब  मैने पिता से बातें की...

हमेशा एक ही सवाल 
कैसी चल रही है नौकरी?
नौकरी के होते हुए भी 
उनका हमेशा पूछ लेना

बेटा!!

पैसे तो नहीं चाहिए तुम्हें..

घर से वापसी पर बिन कहे 
जेब में पैसे का रख देना

और घर के हाल पूछने पर खुशी से 
झूमते हुए कह देना...सब बढ़िया है... 

बेटा!! 

तुम खुद का ख्याल रखना 
तुम्हारी चिंता में माँ कई दफा रो देती है

अपनी आंखों के आसूं माँ की झोली में डाल 
किस तरह पिता अपने पिता होने का निःस्वार्थ 
प्रेम परोस देते हैं

सच ......

पिता होने के लिए पिता जैसा बनना पड़ता है।।

©जय 
  #DiyaSalaai
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जय

कौन कहता है भारत ऊँची उड़ान भर नहीं सकता ज़रा देखो
यहाँ रूस का लूना विफल और चाँद पर तिरंगा लहराया है।।❤️✍️❤️
 (जय शायर)

©जय 
  #चन्द्रायान
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जय

प्रेम में पड़े आशिक़ का 
शायर हो जाना बताता है
किस लहज़े में उसने 
मुहब्बत को पाक रखा..

©जय 
  #galiyaan
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जय

कविता:★★

प्रेम में बिछड़े प्रेमी 
कभी जुदा नहीं होते।।

उनका कुछ न कुछ अंश 
बाकी रह जाता है,
जो कभी बादल बनकर 
बंजर जमीन को उपजाऊ
तो कभी कविता बनकर 
विचारहीन कवि में
एक नई रचना को उत्पन्न करता है।।

©जय 
  #RajaRaani
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जय

रात की मर्यादित रोशनी में 
जुगनू का चमकना उतना ही 
मनोहर प्रतीत होता है ,,

जितना एक शायर का अपनी 
ग़ज़ल में अपनी प्रियतमा को
सम्बोधित करना!!

©जय 
  #Iqbal&Sehmat

#iqbal&Sehmat

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जय


ग़ज़ल

बह्र :- २१२२-२१२२-२१२२-२१२

हिज़्र ए गम और शिक़वा ख़ैर छोड़ो जाने दो
किस क़दर खुद में हूँ बिखरा ख़ैर छोड़ो जाने दो।।१

दिल भी तन्हा मैं भी तन्हा और तन्हा यादें हैं 
क्या बताऊँ कितना टूटा ख़ैर छोड़ो जाने दो।।२

ख़ामुशी में चीख़ और अल्फाज ज़िंदा लाश उफ़्फ़!
पूछना फिर खैरियत का खैर छोड़ो जाने दो।।३

मुन्तज़िर था हर घड़ी बस इक झलक भर देख लूं
हाय! उन नज़रों का मिलना ख़ैर छोड़ो जाने दो।।४

बेबसी औ' बेख़ुदी में कट रही रातें सभी 
बेबफा होना तुम्हारा ख़ैर छोड़ो जाने दो।।५

यूँ मयस्सर ज़ीस्त से हासिल हुआ #जय कुछ नहीं
औ' तुम्हारा रूठ जाना ख़ैर छोड़ो जाने दो।।६

©जय 
  #snowfall
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जय

जिस लहज़े में हमने कहा
       'ठीक हैं हम'
उससे कहीं ज्यादा आसान
तरीके में तुमने मान लिया
   ’वाकई ठीक हैं हम'

इस वाकया के होने में
जो वक़्त गुज़रा
उस गुज़रे वक़्त ने फिर
कभी न खत्म होने वाली
दूरियाँ बना दी।।

©जय 
  #Sawera
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जय

कविता ~~

अतीत की अदाकारी 
और वक़्त की मासूमियत 
में लिपटा इंसान अक्सर भूल 
जाता है कि जो आज हमारे साथ है 
उसके मायने क्या हैं 

हमेशा हर पल वर्तमान को 
अतीत के तराज़ू में तौलने वाला 
इंसान कभी कभी अपनों को
खोने का कारण बन जाता है।।

©जय 
  #humantouch
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जय

ग़ज़ल

वज़्न - १२१२-११२२-१२१२-११२/२२

जहाँ कहीं भी रहो बस मेरी नज़र में रहो
सुनो! न जान मेरे साथ हर पहर में रहो।।१

बहुत शिकायतें हैं हम कहीं प जाते नहीं
पता चलेगा तुम्हें चार दिन तो घर मे रहो।।२

कि क्या हो जाये यहाँ कल को कौन जानता है
तो जब तलक हो सुहाने से इस सफर में रहो।।३

सुकूँ में है वो जो रहते हैं अपने गाँव मियाँ
हमारा हाल हो गर जानना नगर में रहो।।४

हमें खबर मिली तुम लिखते भी हो जानी मगर
ग़ज़ल कहो या कोई कविता बस हुनर में रहो।।५

सुना है इश्क़ का तुमको नशा चढ़ा है "जय"
दुआ है तुम भी मुहब्बत की इस डगर में रहो।।६

©जय 
  #walkingalone
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जय

ख्यालों का सैलाब हो
वक़्त की तुरपन हो
       या
तन्हाई की चादर हो

सब कुछ ठीक वैसा 
सा ही है जैसा
शांत सागर में लहरों
का उठना हो

दोनों की स्थिति 
देखने सोचने में 
मनमोहक मगर
हक़ीक़त दुखदायी है।।

©जय 
  #doori
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