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Sukhvinder Singh

सुखविंद्र सिंह मनसीरत,कवि,लेखक,समीक्षक,गीतकार,गायक,नृत्यक हरियाणा सरकार के अंतर्गत शिक्षा विभाग में अंग्रेजी प्रवक्ता,

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Sukhvinder Singh

Unsplash 1222 1222 1222
***बगल  बैठे अगर  दो यार होते हैं***
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बगल  बैठे    अगर   दो  यार   होते  हैं,
हँसी – मुखड़े   सुखी   संसार  होते  हैं।

गिला–शिकवा  नहीं कोई शिकायत भी,
ग़मों से दूर कोसों,मन नहीं खार होते हैं।

दुखों की साँझ  सांझी,हो न दिल भारी,
नदी   के   दो   किनारे    पार  होते  हैं।

मिले आ कर गले लग कर  सखा कोई,
जुड़े  टूटे   हुए  दिल  के  तार   होते हैं।

न मनसीरत खफा रहता किसी पल भी,
खुले  जीवन  के सदा अखबार  होते हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत 
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

©Sukhvinder Singh #library
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Sukhvinder Singh

White *मन  करता है लंबी उड़ारी भरूं*
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मन  करता  है  लंबी उड़ारी भरूं,
सपनों की मंजिल मैं चलती चलूं।

लम्हें जो भी हो,जी लूं जी भरकर,
मर्यादा में रह कर आगे बढ़ती रहूं।

फल मिले या न मिले,नहीं परवाह,
निज कर कमलों से हर कर्म करूं।

बहुत छोटी  सी मिलती हैं जिंदगी,
खुल कर सारी दिल की बातें कहूं।

खुदा की  रजा में राजी  मनसीरत,
कुदरत की  फितरत से  सदा डरूं।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत 
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

©Sukhvinder Singh #sad_quotes
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Sukhvinder Singh

White तंग अंग  देख कर मन मलंग हो गया
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तंग अंग देख कर मन मलंग हो गया,
प्रेम रंग तन - मन मंढ अपंग हो गया।

उचंग से  मन मचल उमंग से जा भरा,
प्रीत की रीत जीत कर पतंग हो गया।

हाल  देख गात का हिय में तरंग उठी,
रंग  रूप देख कर झट दबंग हो गया।

चाल  ढाल ताकते भंग सा नशा चढ़ा,
ढंग से बेढंग हो ये मन  मृदंग हो गया।

रंग ढंग गये बदल जमीं से कदम उठे,
अंग से  अंग मिला कर  तंग हो गया।

मतंगिनी  लावण्य से लिप्त मनसीरत,
घनी सुरंग में फंस मन भुजंग हो गया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत 
खेडी राओ वाली (कैथल)

©Sukhvinder Singh #sad_quotes
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Sukhvinder Singh

White ** ऑंखों से बरसते मोती **
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आँखों  से  बरसते  मोती  हैं,
दुख  पीड़ा को  जो  धोती है।

गैरों   की गौर  में  जीने लगे,
अपनों  की गोद  में रोती है।

कोई  क्या जाने दर्द ए दिल,
किस्मत किस कोने सोती है।

काले  कर्मों की सजा मिली,
कालिख़  मुखड़े पर पोती है।

दिल के अरमान बिखर गए,
मद्धिम हुई जीवन ज्योति है।

सपने भी कसकर बांध लिए,
ढीली  पड़ गई बंधी जोती है।

घर-आंगन छूटा है मनसीरत,
दुश्मन  बन गए सब गोती हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

©Sukhvinder Singh #sad_quotes
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Sukhvinder Singh

White *यूँ आग लगी प्यासे तन में*
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क्यों  भूल  गये  हमें  मन में,
क्या भूल हुई है इस जन में।

दिन - रात सताये हमें  यादें,
यूँ आग लगी  प्यासे तन में।

जीने   नहीं    देगी   तन्हाई,
बसने लगे हो कण-कण में।

ये प्रीत बड़ी अनमोल सदा,
कुछ नही धरा मोह  धन में।

तुम ही  तीर्थ  हो मनसीरत,
बाँहो  में चाहूँ  हर  क्षण में।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत 
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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Sukhvinder Singh

*फूलों  सी डाली  सा झुकता प्यार हो*
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फूलों  की  डाली  सा  झुकता प्यार हो,
धोखा  देने  वाला  ना  जग में  यार हो।

शूलों  से भी लड़ कर  भी जी लेंगे यहां,
यूं ही खुशियों से जगमग घर संसार हो।

तन·मन·धन की चिंता से कोसों दूर हो,
मजबूती से जुड़ता  जीवन  आधार हो।

कैसा  भी आलम हो कुदरत के रंग का,
सुख·दुख में साथी सारा ही परिवार हो।

मनसीरत  की प्रभु के चरणों में है रजा,
दरिया के जल सा बहता  कारोबार हो।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत 
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

©Sukhvinder Singh
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Sukhvinder Singh

White *जाते–जाते दिल पर सितम ढा गई*
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तीखी  तीर ए नजर मन को भा गई,
एक  मदहोशी सी तन मन  छा गई।

शायरी  का रंग  इस कदर चढ़ गया,
गीत , गजलें , नगमे प्रेम  के गा गई।

रौनक ऐसी  लगी,आंगन खिल गया,
खुशियों की  झड़ी दर पे  बरसा गई।

माजरा जो भी था वो पता चल गया,
बातों–बातों  में पगली  नसमझा गई।

मनसीरत जड़  सा खड़ा देखता रहा,
जाते–जाते  दिल  पर सितम ढा गई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत 
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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Sukhvinder Singh

White ** ज़ुल्म से ज़ुल्मी ख़ामोशी है **
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ज़ुल्म से  ज़ुल्मी कहीं खामोशी है,
लोगों   की  फ़ितरत फ़रामोशी है।

फ़ितूर में खुराफात  आम होती है,
ख़िलाफ़त से बुरी तो गर्मजोशी है।

रंक का न देखा कहीं साथी कोई,
अमीरजादों  की तो ताजपोशी है।

औरों के भविष्य को बताता फिरे,
अपनी  नहीं  जानता ज्योतिषी है।

उसने तो सुध-बुध सब खो दी है,
मुखड़े  पर छाई रहती बेहोशी है।

मनसीरत अपना उल्लू सीधा करे,
ये तो पूर्णत अहसानफरामोशी है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

©Sukhvinder Singh #sad_quotes
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Sukhvinder Singh

White ** ये दुनिया बहुत गोल है **
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ये  दुनिया  बहुत  ही गोल है,
करती  रहती  भाव - मोल है।

बातों - बात  बिगड़ती  रहती,
समझ  से परे नाप - तोल है।

रहन - सहन के  ढंग  निराले,
अलग-अलग बोलते बोल है।

पूर्ण  कोई  जन   हो न पाया,
कोई   न  कोई  तो  झोल है।

रातों -  रात  बदलती  रहती,
पृथक नगाड़े  और  ढोल  हैं।

काम-काज  के पंथ जुदा से,
सभी  के भिन्न-भिन्न रोल है।

पल में  श्वेत पल में सियाही,
तन-मन पर पहरावे खोल हैं।

मनसीरत भेद जान न पाया,
ये मानव जाति  अनमोल हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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Sukhvinder Singh

White *** दिल की हसरत ***
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दिल की हसरत पूरी हुई,
अंधेरी   रातें   नूरी   हुई।

दूरी पर आपस मे कदम,
रिश्तों  में कम  दूरी  हुई।

कब से वो आये ना नज़र,
ऐसी  क्या  मजबूरी  हुई।

ग़म में थी वो गाई ग़ज़ल,
महफ़िल  में मशहूरी हुई।

मनसीरत  हारी  मेहनत,
हासिल ना मज़दूरी हुई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

©Sukhvinder Singh #sad_quotes
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