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vikramsuryawansh6812
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Vikram Suryawanshi

portrait drawing and painting artist । agriculturist । self thought writer । 😊

www.instagram.com/vic.vikram

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Vikram Suryawanshi

किनारा..........!

वोह ..पूनम कि रात थी..............!
..अर्सो बाद मिलने कि बात थी.......!
.....इसी किनारे हुई अपनी पहली मुलाकात थी........!
समंदर भरा पडा था.......!..अंदर भी ....बहार भी..!
थंडी हवा के साथ हिच्कोले खा राहा था...
.....अंदर भी बाहर भी .......!
....क्यून कि वोह पूनम कि रात थी...!

...पता नहि तुम मुझे कैसे पहचानो गी ..?
...पता नहि तुम मुझे कैसे पहचानो गी ..?

पर ये किनारे कि रेत मुझे पहचान गयी थी..!
मेरे पैरो को लिपटकर यही तोह कह रही थी !!

पल भर के लिये ऐसा लगा.. कि वोह आ गयी थी....!
तोह लहरो से भी तेज. मेरी धडकने चलने लगी थी ...!

फिर अहसास हुवा..
जहा से उसने पहली बार समंदर देखा था मेरी नजरो.. से
वोह जगाह.आयी थी...!

मिलना तो यही था हमे उस वक़्त भी ...और आज भी....!
वोह घडी आ भी,, गायी थी...!
"और वोह पल भर के लिये बादलो से धका हुंवा मेरा चांद मेरे सामने आया था..!
"और वोह पल भर के लिये बादलो से धका हुंवा मेरा चांद मेरे सामने आया था..!
वोह एक पल था ...और ये भी एक पल है...!
जब लहरो से race जीतकर भी ...मेरा दिल हारा था...!
क्यून कि.....! आज....! मै उसका बिता हुवा कल था..!

देख के मुझे .....! 

देख के मुझे ....उसने अपना पलको का 'किनारा' भिगोया था ..!
लेकीन उसे क्या पता था के......
सामने जो है वो पुरा समंदर हि मेरा था.....
.....................विशाल

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Vikram Suryawanshi

 #किनारा
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Vikram Suryawanshi

किनारा..........!

वोह ..पूनम कि रात थी..!
..अर्सो बाद मिलने कि बात थी..!
इसी किनारे हुई अपनी पहली मुलाकात थी..!
समंदर भरा पडा था..!..अंदर भी..बहार भी..!
थंडी हवा के साथ हिच्कोले खा राहा था...
.....अंदर भी बाहर भी...!
....क्यून कि वोह पूनम कि रात थी..!

...पता नहि तुम मुझे कैसे पहचानो गी ..?
...पता नहि तुम मुझे कैसे पहचानो गी ..?

पर ये किनारे कि रेत मुझे पहचान गयी थी..!
मेरे पैरो को लिपटकर यही तोह कह रही थी !!

पल भर के लिये ऐसा लगा.. कि वोह आ गयी थी....!
तोह लहरो से भी तेज. मेरी धडकने भी चलने लगी थी ...!

फिर अहसास हुवा..
जहा से उसने पहली बार समंदर देखा था मेरी नजरो.. से
वोह जगाह.आयी थी...!


मिलना तो यही था हमे उस वक़्त भी ...और आज भी....!
वोह घडी आ भी,, गायी थी...!
"और वोह पल भर के लिये बादलो से धका हुंवा मेरा चांद मेरे सामने आया था..!
"और वोह पल भर के लिये बादलो से धका हुंवा मेरा चांद मेरे सामने आया था..!
वोह एक पल था ...और ये भी एक पल है...!
जब लहरो से race जीतकर भी ...मेरा दिल हर था...!
क्यून कि.....! आज....!मी उसका बिता हुवा कल था..!

देख के मुझे .....! 

देख के मुझे ....उसने अपना पलको का 'किनारा' भिगोया था ..!
लेकीन उसे क्या पता था के......
सामने जो है वो पुरा समंदर हि मेरा था.....!


विशाल

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Vikram Suryawanshi

एक दिन मेरी किताब चोरी हो गयी,
वो दिन ऐसा जिंदगी मे आया क्या हुआ कुछ समझ हि ना पाया,
दिल बस घबरा सा गया क्युनकी जो मेरा था वो किसी और का हो गया,
हाँ हाँ वो मेरी किताब थी 
जैसे मेरे चहरे पर बैठी एक नकाब थी,
जैसे शराबी को मिली महेंगी शराब थी,
हाँ हाँ वो मेरी किताब थी,
जब याद करनेकि कोशिष् कि तो याद आया किताब मैने आखरी बार बेंच पर रखी थी 
शायद मुझसे हि हुई भुल थी
पर क्या फरक पडता है किताब तो मेरी थी,
अब उस चुराने वाले को क्या मै होशियार कहूँ या बेवकुफ,
होशियार इसलीये क्युनकी वो किताब हि ऐसी थी जिसपे किसिका भी दिल आ जाये 
बेवकुफ इस लिये क्युनकी किताब तो मुझे समझी नही शायद ऊसे हि कुछ समझा पाये,
जब देखा होगा उसने मेरा नाम पहले पनने पर तो ऊसे भी मिटाने कि कोशिष् कि होगी 
लाख खरोन्दनेके बाद भी कूछ धब्बे रह गये होगे तो मेरे नाम का पन्ना हि फाडने कि कोशिष् कि होगी,
शायद मुझसे हि पढनेमे हुई देरी थी 
पर क्या फरक पडता है किताब तो मेरी थी,
मैने एक दिन उस चोर को पकड लिया..
बोला वो किताब मेरी है 
उसने किताब पे नयासा लिखा नाम दिखाया और किताब पे अपना हक जताया,
मै उसे कूछ बोला नही बस मेरी किताब को देखा और खामोश होकर वाहां से निकल आया,
बस दुःख हो राहा था एक चीझ का..
शायद उस दिन मुझसे ना हुई होती वो भुल
तो आज मेरे किताब पे ना होती ये धुल,
अजभी देखता हूँ उसे किसी और कि बाहोंमे तो मुझे उसकी मोहोब्बत मेरी चोरी हुई किताब जैसी लगती है,
शायद मुझसे हि समझने मे हुई देरी थी
पर क्या फरक पडता है मोहोब्बत तो मेरी थी

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Vikram Suryawanshi

शायद मुझसे हि पढनेमे हुई देरी थी 
पर क्या फरक पडता है किताब तो मेरी थी

( read caption for full poem )

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Vikram Suryawanshi

मै इतना जो चल रहा हुं आखीर काहां तक जाउंगा?
आखोंके अथरूसे ना जाने कब छुटकारा पाउंगा

मेरी बेखाँफ कलम को कब रझा अदा फर्मायेगी
'तेरी बेवफाईसे कब तक मेरे पंने भिगायेगी
हर रोज निकलता हूँ यही सोचके कि आज तेरा जिक्र ना होगा 
चार कदम चलनेके बाद रुक जाता हुं सोचके तेरे बिना इस कलमकार का आकार क्या होगा 
माना मै गलत था तो तुने हाथ छोड दिया 
अब किसी राहपे टकरा भी गयी तो मुझे देख मुस्कुरानेका भी तुझे अधिकार ना होगा 
गलत तो वक्तभी होता है जब हम ऊसे किसी औरको सौप देते है 
उसी नजदिकियो कि वजहसे गलत वक्तमे भी हम मदहोश होते है 

मै इतना जो चल रहा हुं आखीर काहां तक जाऊंगा?
आखोंके अथरूसे ना जाने कब छुटकारा पाउंगा

किसी कोहिनूर से भी अब बात करता हुं जैसे मेरी जुबान असुरी हो
वजह मेरी रुह पर भी 'तेरी याद लिपटी है जैसे हिरन कि कस्तुरी हो 
इंतजार के राही संग कच्ची सडकेभी लगे जैसे नायाब हो
भगवान ने झोली मे अमृत दिया वो भी तेरे बिना लगा जैसे वाह्यात हो 

मै इतना जो चल रहा हुं आखीर काहां तक जाऊंगा?
आखोंके अथरूसे ना जाने कब छुटकारा पाउंगा
- विक्रम #HerDarkShadow
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Vikram Suryawanshi

शायद उसपे आज कोई मूसीबत आयी है ।
तभि मुझे वो मिलने बुलाई है।
शायद उसके रुह पे भी मुसिबत छायी है ।
तभी इस जीसम कि उसे याद आयी है।
जब देखा कि उसकेे सुरत पे उदासी छायी है।
शायद साथ मे दर्द के कुछ नगमे साथ लायी है।
मैने पुछा क्या हुआ तो बोली,
वो उसे पा ना सकी,
लाख कोषीशो के बाद भी दिलसे दिल मिला ना सकी।
अब क्या इलाज करू मै उसके इस दर्द का ।
क्युनकी मैने भी इसी दर्द के लिये दवा मंगवायी है।।
- विक्रम #lovemedicine #shayri #heartbreak
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Vikram Suryawanshi

मत आजमा जवानी और जोश किसी बेबस लाचार पर 
कुछ पल और हव-ऐ-सुकून के लिये किसी को ताउम्र बरबाद मत कर 
डर उस खुदसे जो शर्मीन्दा है तुझे इन्सान बना कर 
इंसाफ जब होगा उन चिख-ऐ-दर्द का तो आग होगी तेरे जीसममे और जलेगी 'तेरी रुह तक #JusticeAndRevenge
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Vikram Suryawanshi

तेरी मोहब्बत थोडी इलम मुझे भी बुरादे 
जिस रबको तू पूजती उस रब से मिलादे
तुझसे बस इक फिर्याद है
कैसे मुझे भुली मुझेभी तो सिखादे #unforgettable
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Vikram Suryawanshi

राहिकी राह पे रह मत वरना खुदाकी रहमतसे भी राहत ना मिले,
राहिकी इजाजत लेके सुराही से शाही लेकर इलाही लिखु तभी इस राही को मिले वाहवाही वरना तबाही फिर बानेगा सिपाही इस नौकारशाही का #राही
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