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deepaksharma6023
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Deepak Sharma

जीत का रास्ता दरीया के दिल से निकलेगा। उजाला फिर अंधेरों के साहिल से निकलेगा। दीपक शर्मा

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Deepak Sharma

मुझे पसंद है हो  तरक्की किसी की।
शे'र किसी  का  , शायरी किसी की।

मुझे मयस्सर हुआ है सफर में इतना,
घर किसी  का है ,  गली किसी की।

टूटी हुयी है कश्ति पतवार भी नंही,
किस्मत मेरी है लिखाई किसी की।

मॉं और मॉंसी हैं अलग अलग क्यों,
क्यों उर्दू किसी की हिंदी किसी की।

हुयी मोहब्बत  मुझे हरेक शख्स से,
आँखें उसकी बातें किसी किसी की।

~~दीपक

©Deepak Sharma
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Deepak Sharma

पुण्य का और पाप का भोगी रहा हूं,
मैं  कई  सदियों  तलक योगी रहा हूं।
जी गया  हूँ  पुष्प  सा मैं कंटकों पर,
हर विरोधाभास में भी मैं जी रहा हूं।

मैं वही व्याकुल ह्रदय का एक क्षण हूं,
मैं  श्रापित  कृष्ण  का अन्त:करण हूं।

रिक्तियां प्रसाद  हैं और वरदान हठ है।
मैं वही जिसके निकट ये तम विकट है,
तुम मरूस्थल में प्रकट अम्रत सरीखी,
और मुझे ये प्राप्त गरल निर्मित घट है।

छोड़  कर। जो  आ गये हैं स्वर्ग सारा,
मैं उन्हीं  सब देव का जीवन मरण हूं।
मैं  श्रापित  कृष्ण  का अन्त:करण हूं।

~~~दीपक

©Deepak Sharma
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Deepak Sharma

तुमसे पुछेगा जगत कल ,थी  जरूरी   क्या   मेरीॽ
 यह कठिन ह्रदयविदारक ,सी  मेरी   परिक्षा   प्रिय।
नंही मिलेगा हल तुम्है जब,गीत मेरे यह। कहें  तब।
मैं करूं हर जन्म केवल,बस तुम्हारी प्रतिक्षा प्रिय।।

कल   चढ़े  कोई   तुम्हारी,  देहरी  ह्रदय  की लेकिन,
मैं  करूं अपने  ह्रदय में  आगमन  वर्जित  सभी का।
मांगता   वरदान  मैं  यह  ,कर  सकूं   संचय ह्रदय में,
वियोग की हर दर्द पीड़ा और दुख अर्जित सभी का।

त्याग कर मुझको तुमअब, रचो नया संसार कहीं पर,
यही रहेगी अब  मिरे  इस,जीवन  की  समीक्षा प्रिय।

कल सजेगी देह तुम्हारी उस अमर श्रृंगार से और,
मैं जियुँगा वेदना  का  पथ  प्रेणय का त्याग लेकर।
जीत  लेगा कल तुम्हारा मन कोई प्रणय समर में,
मैं जियुँ लेकिन  प्रणय का  ये श्राप  वैराग्य लेकर।

कल तुम्हारी छांव में लेगा शरणं विजय का सुर्य लेकिन
मैं तुम्हारे वक्ष पर धर शीश रो लूं,बस यही है आखरी इच्छा प्रिय।

कल  तुम्हारी   मांग  में   कोई भरेगा स्वप्न अपने,
जब  तुम्हारे  प्रेम  के  आंचल तले विश्राम लेगा।
कल तुम्हारा  हाथ थामे  कोई  फिरेगा साथ फैरे,
जब तुम्हारा और अपना साथ में वह नाम लेगा।

जब कभी ये तुमसे पुछ लेगें निज अश्रुपूरित नयन  यह,
इस  जन्म। प्रणय समर में,क्या बुरा क्या अच्छा प्रिय।

~~~दीपक

©Deepak Sharma
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Deepak Sharma

तुमसे पुछेगा जगत कल ,
थी  जरूरी   क्या   मेरीॽ
 यह कठिन ह्रदयविदारक ,
सी  मेरी   परिक्षा   प्रिय।

नंही मिलेगा हल तुम्है जब,
गीत  मेरे  यह। कहें    तब।
मैं  करूं हर  जन्म  केवल,
बस तुम्हारी प्रतिक्षा प्रिय।।

कल   चढ़े  कोई   तुम्हारी,  देहरी  ह्रदय  की लेकिन,
मैं  करूं अपने  ह्रदय में  आगमन  वर्जित  सभी का।
मांगता   वरदान  मैं  यह  ,कर  सकूं   संचय ह्रदय में,
वियोग की हर दर्द पीड़ा और दुख अर्जित सभी का।

त्याग कर मुझको तुमअब, 
रचो नया संसार कहीं तुम!
यही रहेगी अब  मिरे  इस,
जीवन  की  समीक्षा प्रिय।

कल सजेगी देह तुम्हारी उस अमर श्रृंगार से और,
मैं जियुँगा वेदना  का  पथ  प्रेणय का त्याग लेकर।
जीत  लेगा कल तुम्हारा मन कोई प्रणय समर में,
मैं जियुँ लेकिन  प्रणय का  ये श्राप  वैराग्य लेकर।

कल तुम्हारी छांव में लेगा शरणं,
कोई  विजय  का  सुर्य  लेकिन।
मैं तुम्हारे वक्ष पर धर शीश रो लूं,
बस यही है आखरी इच्छा प्रिय।

~~~दीपक

©Deepak Sharma
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Deepak Sharma

हो सका  तो फिर मिलेंगे किन्हीं ख्वाबों में।
जैसे मिलती है खुशबु फिर नये गुलाबों में।

मैंने बचा  लिया तुमको थोडा़ बहुत अपने,
तकिये  के नीचे  रखी प्रेम की किताबों में।

~~~दीपक

©Deepak Sharma
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Deepak Sharma

लगेगा जन्म हमें  इक और ये समझने को,
गिरेगा अभी और यंहा किरादार लोगों का।

~~~दीपक

©Deepak Sharma
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Deepak Sharma

एक वो जो मरता नहीं है किसी पर आसानी से,
एक  हम  हैं जो उसी पर मरते हैं,इश्क करते हैं।

दिल को हारते है फिर किसी सूरत पर मरते हैं,
हम  किन्ही आँखों  में उतरते हैं,इश्क करते हैं।

~~~दीपक

©Deepak Sharma
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Deepak Sharma

चाहता हूँ मैं तुमसे कहना बहुत कुछ पर,
ताल्लुक़ हमारा बहुत अजीब हो गया है।

~~~दीपक

©Deepak Sharma
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Deepak Sharma

वैसे तो सफ़र ये जिन्दगी  का है लम्बा बहुत,
मगर तुम ना से हाँ करदो तो छोटा हो जाए!

~~~दीपक

©Deepak Sharma
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Deepak Sharma

तुम   संतो  की  हो  वाणी ,तुम झरने का मीठा पानी,
तुम बचपन की  नादानी , तुम  माँ सी सरल  कहानी,
भावों  से  तुम  भरी हुयी तुम हिरण सी चंचल सी हो,
मन आँगन के मंदिर में तुम पावन तुलसी दल सी हो।

तुम पुष्पों की हो खुशबु , तुम अनल विरह का आँसु,
तुम भोर बनारस सी हो तुम शाम अवध का हो जादु,
अधर महज बस अधर नहीं है वेदों की है ऋचा कोई,
खंजन नयनों के अंजन की  द्रष्टि से कब  बचा कोई?

गुलमोहर के गुल सी तुम इक चिड़िया बुलबुल सी हो
मन आँगन के मंदिर में तुम पावन तुलसी दल सी हो।

तुम नदियों  सी  हो पावन, नजरों मे कोमल चितवन,
तुम गांव की अमराई तुम मीरा का कोई गीत भजन,
हसे   तुम्हारे  नयन कभी   तब  फसलें  तक लहराई,
चिंतन  में   तुम राम कथा  हो ,मन गीता की गहराई,

एक सघन  वन  देह  तुम्हारी नेह  भरी निश्चल सी हो,
मन आँगन के मंदिर में तुम पावन तुलसी दल सी हो।

~~~दीपक

©Deepak Sharma
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