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shrutimanprabal8787
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Shrutiman Shukla Prabal

मैं यूपी के बाराबंकी जिले का निवासी कवि हूँ। वर्तमान में राष्ट्रीय हिंदी दैनिक डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट का ब्यूरो चीफ हूँ। सबसे ज्यादा गर्वित हूँ कि मैं देश के प्रसिद्ध साहित्यकार व पत्रकार श्री योगेंद्र मधुप जी का पुत्र हूँ। मोबाइल व व्हाट्सएप नम्बर है 8299431888

https://www.facebook.com/shrutiman.shukla

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Shrutiman Shukla Prabal

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Shrutiman Shukla Prabal

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Shrutiman Shukla Prabal

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Shrutiman Shukla Prabal

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Shrutiman Shukla Prabal

अगर दोनों तरफ से है...

अगर दोनों तरफ से है... #कविता

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Shrutiman Shukla Prabal

कैसा ये लॉकडाउन, कैसी ये लूट है।
रोटी नहीं बिकेगी, दारू पे छूट है।

श्रुतिमान शुक्ल 'प्रबल'

©Shrutiman Shukla Prabal बुरा न मानो तो कहे

बुरा न मानो तो कहे

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Shrutiman Shukla Prabal

बेताब थी कलम जो घंटों से बंद है।
"मां" लिख दिया तो और जरूरत नहीं पड़ी।

■ श्रुतिमान शुक्ल  'प्रबल'

मातृ-दिवस पर सभी बेटों को समर्पित मेरा ये शेर।। शुभकामनाएं। सभी माताओं को प्रणाम।

©Shrutiman Shukla Prabal #MothersDay2021
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Shrutiman Shukla Prabal

मौत अपने ही बिछाए जाल में फंस जाएगी।
यहां बिछड़ने का तो ऊपर है दौर मिलने का।।

श्रुतिमान शुक्ल प्रबल
Mobile- 8299421888

©Shrutiman Shukla Prabal नकारात्मकता में सकारात्मकता

नकारात्मकता में सकारात्मकता

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Shrutiman Shukla Prabal

■ वर्तमान हालातों पर पेश है मेरी यह रचना (गजल)■


देख लो हर आदमी अब किस कदर मजबूर है।
जिसको जितना चाहते हैं उससे उतना दूर हैं।

अब जुदाई गम नहीं राहत समझते है सभी।
आज इन तन्हाइयों में जिंदगी भरपूर है।

वक्त है रुकता कहां है, बीत जाएगी वबा।
मिल भी जाएगी जो मंजिल आज इतनी दूर है।

हर पहेली से 'प्रबल' हरदम रही इंसानियत।
जीत तय है इसलिए हिम्मत नहीं काफूर है।

■ श्रुतिमान शुक्ल "प्रबल'
बाराबंकी, उप्र।
मोबाइल- 8299431888

©Shrutiman Shukla Prabal #... हिम्मत नहीं काफूर है।

#... हिम्मत नहीं काफूर है। #शायरी

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Shrutiman Shukla Prabal

काट डाले जंगल,
ध्वस्त कर दिए घोंसले,
बम से उड़ा दिए पहाड़,
मशीनों से चीर डाले पठार,
मोड़ दी नदियों की धारा, 
तुझसे तो प्रकृति का कण-कण हारा।
फिर अब क्यों बनता है बेचारा।
आखिर क्यों है हताशा,
अरे बोये हैं बबूल फिर फूल की आशा।
करोड़ों अरबों या कहें अनगिनत,
पशु पक्षी कीड़े मकोड़े तक खा गए,
और बहुत तो दुनिया में आने से पहले
तेरे पेट में समा गए।
यह खेत तेरे, खलिहान तेरे,
यह जंगल तेरे, मैदान तेरे।
उड़ने के लिए आसमान तेरा,
पानी के लिए पाताल तेरा,
अरे मां धरती भी चकित है
इस बंटवारे पर,
इस व्यवहार पर,
इस क्रूरता पर,
दुखी है प्रकृति भी मानव ह्रदय
की कुरूपता पर।
जा अब जीत जीत कर हार।
इतना सब करके भी खुद को बताता है निर्बल,
चारों ओर मची है हलचल।
अभी भी इस रात की सवेर हो जाएगी।
प्रकृति बहुत 'प्रबल' है,
संभल जा वरना बहुत देर हो जाएगी।

■ श्रुतिमान शुक्ल प्रबल
बाराबंकी, उत्तर प्रदेश
8299431888

©Shrutiman Shukla Prabal अब नहीं सोचा तो कब सोचेंगे...?

अब नहीं सोचा तो कब सोचेंगे...?

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