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laxmankumar1950
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Laxman Kumar

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Laxman Kumar

तुम्हारे मुस्कुराने पर लगता है
जैसे पृथ्वी ने पूरा किया हो 
अपना अक्ष बिल्कुल सही वक्त से 
कि रात से फिर दिन हो सका है।

-Lakshi

©Laxman Kumar
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Laxman Kumar

दिल मेरा थाम कर वक्त सारी शाम ठहरता है
 ऐसा तो इस शहर में हर इक रोज़ होता है।
रंग-रंग होती घुलती फिर धुलती है ज़र्द कोई यादों की 
और किस्सा भी सारा फिर भूल जाना होता है 
ऐसा तो इस शहर में हर इक रोज़ होता है।

-Lakshi

©Laxman Kumar
  #शाम
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Laxman Kumar

दिल मेरा थाम कर वक्त सारी शाम ठहरता है
 ऐसा तो इस शहर में हर इक रोज़ होता है।
रंग-रंग होती घुलती फिर धुलती है ज़र्द कोई यादों की 
और किस्सा भी सारा फिर भूल जाना होता है 
ऐसा तो इस शहर में हर इक रोज़ होता है।

-Lakshi

©Laxman Kumar #शाम
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Laxman Kumar

मेरी कविताएं बेवक्त बैठती हैं
अंधेरे बस स्टैंड पर,
पहचान की दुकान के छज्जे में
जहां स्कूल वाले रात के बूढ़े चौकीदार
ने छोड़ा है हाथ से बने गद्दे का बिस्तर।

मेरी कविताएं लौटते हुए तलाशती हैं
रोशन हुए रास्तों की बेढंगी स्ट्रीट लाइट,
हॉस्टल पहुंचकर घुल चुकी वॉलीबाल में
ढूंढती है सबसे निपुण हाथों की चोटें
और मुड़ी हुई उंगलियों का संतोष,
पिछली रात के जन्मदिन में
सबसे ऊंचे और छत तक पहुंचे
केक के थपेड़े देखती है वो
जहां साफ करना भूल गए थे लोग।

मेरी कविताएं उसे पुकारती हैं
जिसे संयम की समझ हो
जिसके अंतर्मन में बातें
बस पूर्ण विराम से खत्म ना होती हों
और जिसे जवाब से पहले
सवाल के सबसे गहरे उतरना आता हो।

-Lakshi

©Laxman Kumar #Darknight
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Laxman Kumar

जब भी मेरी नज़रों से ऊंचे जाते हैं पहाड़
उनसे गिरते बरसाती झरनों के नीचे भीगता हूं
सड़क के एक तरफ आकाश सा शून्य होता है
और बच्चों की खिलखिलाहट से
अजनबी गांव वो बहुत खुश लगता है
तब तुम्हें ही याद करता हूं
तुम होती तो अपने ही लहज़े में
आंखें बड़ी कर लेती,
मेरे कुछ बोल पाने से पहले ही
मेरे चौदह - पंद्रह बालों वाले गालों को
अनगिनत बार छू चुकी होती
जैसे हरी भरी नई घास को छेड़ती है हवा

जब भी ये पगले बादल घूमते हैं धूप के साथ
और सुबह - सुबह बना लेते हैं घाटी में बहती
उस नदी के ऊपर एक और नदी
मैं तुम्हें ही याद करता हूं
तुम होती तो हम भुलाकर
विज्ञान के सारे समीकरण
नौका बनाते एक खयालों की
और बहुत धीरे बढ़ते उस नदी के पार वाले शहर
कि बहुत जल्दी ही ना पहुंच जाते वहां
दोपहर होने तक
जहां मिल सकता है
 तुम्हारी पसंद का सबसे मीठा शाही पनीर। 

-Lakshi

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Laxman Kumar

खरीद कर टांक दिया तिरंगा टैक्सी पर
दीवाना देश के लिए एक ऐसा देखा
कुर्बानियां भगत सिंह की चिपकी थी सीसे से उसकी
मगर किराए का भाव उसने मजबूरियों से देखा

जंग की बातें हर रोज़ होती थी
उबाल बच्चे - बच्चे के खून में देखा
जाने क्या पढ़ लिखकर लड़ने लगे लोग
ऐसे लड़े कि किसी को मरते नहीं देखा

ज्यादा जहमत की थी उम्मीद सबको
सो चेहरा शहर वालों तक का ढका देखा
जो चली ज़रा सी हवा उस ओर
सबने किले को भी हिलते देखा

बंदोबस्त बड़ा कड़ा था
पूरब में थे सारे सिपाही मुड़े हुए
लेकिन उस दिन सुबह का सूरज 
मैंने पश्चिम से निकलते देखा।

-Lakshi

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Laxman Kumar

सब्ज़ (हरे - भरे) थे मेरे भी जंगल जाने क्या बात हुई
मुझ तक न पहुंची, यहीं पास में बरसात हुई

जंगल के जंगल खाली हुए धूप बड़ी तेज हुई
वारदात थी बड़ी मगर गांव में चर्चा नहीं हुई

मैं भी उसकी तारीफी का गुनाह क्यों सर ले लेता
उसने भी सिर्फ देखा, जैसे देखकर तसल्ली हुई

रो रो कर बताने लगा ग्यारहवीं - बारहवीं की मोहब्बत वो
बीच बीच में ये भी कहता था भाई ये शराब तो कमाल हुई

घर पर हुई आज की बात का जिक्र जो किया उनसे
उन्होंने मासूमियत में पूछा, क्या हमारी भी कोई बात हुई?

धुंध छटी जैसे ही घर के करीब से वो गुजरी
मगर शाम की थी आखिरी रोशनी, बुझी तभी रात हुई

रूह और जिस्म पर बड़ी संजीदा गुफ़्तगू करता था
मेरे यार तुझे ऐसी ही लड़की मिली तो बड़ी खुशी हुई

सभी हैं अज़ीज़ मुझे यार इस पुराने शहर में, क्या करूं!
अच्छा चलो आज की चाय यहां, कल आपके वहां हुई


-Lakshi

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Laxman Kumar

मुझे अक्सर लगा है मैं एक पिंजरा
और मेरे अंदर एक परिंदा रहता है
क्यूं जरूरी हो तुम! तो सुनो,
तुम होते हो तो वो आज़ाद रहता है।

मुझे अक्सर लगा है मैं एक जिल्द
और मेरे अंदर एक किताब रहती है
क्यूं जरूरी हो तुम! तो सुनो,
तुम होते हो तो वो खोली जाती है।

मुझे अक्सर लगा है मैं एक जिस्म
और मेरे अंदर एक रूह रहती है
क्यूं जरूरी हो तुम! तो सुनो
तुम होते हो तो वो महसूस होती है।

मुझे अक्सर लगा है मैं एक जहान
और मेरे अंदर कोई भी नहीं रहता है
क्यूं जरूरी हो तुम! तो सुनो
तुम होते हो तो कोई जीता है वहां।

-Lakshi

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Laxman Kumar

सिमट गया पानी चंद मिट्टी की परतों में ही
मगर मौसम तो कह रहा था खेलना नहीं है

"...सारी सीटें भरी हैं मत चड़ो यहां बच्चे को लेकर"
("और भी आती होंगी बसें अभी")
बताओ इन जाहिलों को माँ कि तुम्हें वक़्त नहीं है

उस दिन दिल में था तुम्हारे कि गले ही लगा लूं उसे
तुम आज मगर हो अकेले ही, वो लड़की कहां है

काट लोगे तुम सारी उम्र फरेब के इस नशे में ही
ये फैसला लिया था जिसमें, वो होश अब कहां है

मुद्दतों रहा इंतजार फिर नुस्खे भी व्यस्त रहने के किए बहुत 
बुरा ना मानो, जरूर आए होगे मगर तुम सा कोई याद नहीं है

फूट ही गए लो सीसे जो नैन - नक्श सिर्फ अच्छे ही बताया किये
ये तब समझ आया है यारो, यानी सच तो था कि सच भी झूठ है।

-Lakshi #fogg
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Laxman Kumar

आज फिर पी ली न स्वाद-नशे के मुताबिक ही!?
ग़ज़ल थी 'राहत' की और लगी आपको शराब-सी!

नई-नई ये जवानी आग लगी हुई
बच्चे ही हैं हम, हैं नहीं मंत्री-वंत्री

घसीट कर ले आए बहस यहां भी!
ये घर है जी, कोई संसद नहीं

ठहरी लग रही है जो, रुक ही जाओ 
ज़िन्दगी अभी है पीली ट्रैफिक लाइट-सी

लेकिन आप तो ऐसे सुलग रहे हैं आजकल
जैसे अब न मिलेंगी हमारी आंखें कभी।

-Lakshi #RIPRahatIndori
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