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surekha4871
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सुरेखा पैठणे

निवेदिका..वक्ता..कवयित्री..... मैं लिखती नही महज अल्फाजो को. मैं सिंचती हूँ मेरे हर इक दर्द को

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सुरेखा पैठणे

*वक्त के काटे लमहें*
तेरे बाजूओ के धारामे बहा करता था कभी
'तेरी सांसो के संग चलता था कभी
वो वक्त न जाने कहां खो गया।
कौनसा दरिया है जो बार बार
आँखो मे उतर आता है
ये कौनसा पहर है जहां ना दिन है ना रात है।
रात चली आती है बेबस हालात सी
रात के सर पे ना साया है 
न कोई सरमाया है।
ये वक्त पत्थरो मे तब्दील हो रहा है
ये वक्त कल मे शामिल हो रहा है।
साथ मे बुने थे जो पल  वो अब
बर्फ से जमने लगे है।

©सुरेखा पैठणे वक्त के काटे लमहें

#seashore

वक्त के काटे लमहें #seashore

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सुरेखा पैठणे

सुनो, मैं तुमहें खत लिख रही हूँ

#Dreams

सुनो, मैं तुमहें खत लिख रही हूँ #Dreams

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सुरेखा पैठणे

सुना है की तूम सून पाते हो बस आते जाते सांसो की आहटे भी आजकल
क्या तुमहें मेरी खमोश लबो से निकली आहे कभी सुनाई दी थी☺️ खमोश आहे

#citysunset

खमोश आहे #citysunset

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सुरेखा पैठणे

असा दाटला पाऊस
त्याला भार हा सोसेना
कुठे करू मी रिता 
घडा माझा भरलेला।।
माझ्या घड्याची कहाणी 
युगेयुगेची पुरानी
जशी राधा गोकुळेची
वेड्या हरीची दिवाणी।।
असा दाटतो पाऊस
आसवाना येई भरते
मेघ आकाशात जमा
त्यांचा भार मी वाहते।।
असा दाटतो पाऊस
जसा दाटतो हा ऊर
मेघ बरसण्यासाठी 
आसवाना येतो पूर
असा कसा पावसाचा
मला लागलेला लळा
जमू लागता हे ढग
माझा रुंदावतो गळा।।।

©सुरेखा पैठणे #rain

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सुरेखा पैठणे

बदन का नमक

बदन का नमक

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सुरेखा पैठणे

#नस्ले हो या फसलें हो

#नस्ले हो या फसलें हो

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सुरेखा पैठणे

जिस ढलांनो से तुम गुजरे थे कभी
जीन गहरी खाईयो से 
काटा था अपना तनहा सफर
वो ढलाने अब उपजावू जमिनो 
मे तब्दील हो चुकी है
अब उसमे फसले उगती है
वैसे देखा जाये तो नस्ले और फसलो 
के बीच फासला कम ही है
जमीन तो आखीर जमीन होती है
चाहे बंजर हो चाहे उपजावू
वो आसमान को नापती नही ।
ना ना ये गुरुर नहीं
ये तो उसकी पहचान है
नसले हो या फसले 
उपज तो जमीन की उसकी 
अपनी विरासात होती है।

सुरेख #alone

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सुरेखा पैठणे

कुछ चिखे खुलकर नहीं निकलती
कुछ दर्द आँखो से नहीं गुजरते
उठ जाती है आदतन उंगलीया
कुछ सवाल बेजवाब खनकते है।

सुरेख

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