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prabhatsinghbhar4083
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Prabhat Singh Bharti

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Prabhat Singh Bharti

“तबीयत” 

आज तबीयत में थोड़ी खराबी सी है।
थोड़ी तीखी,थोड़ी मीठी जबाबी सी है।।

उम्मीद तो नहीं की वो याद भी करती होगी।
जाने क्यूं, मगर हिचकियां थोड़ी पहचानी सी है।।

मौसम सर्द होरहा हैं, थोड़ा दर्द होरहा हैं।
बैठा हूं तेरे यादों की जद में,मन भी थोड़ी गुलाबी सी हैं।।

जिंदगी तो फ़ना: हो ही जायेगा,
तेरे बाहों में सर रखकर सो ही जायेगा। 
मगर,
उम्र का ये दौड़ भी कैसा मज़ेदार है, 
की,मन भी थोड़ी शराबी सी है, थोड़ी नबाबी सी है।।

धैर्य की धूरी अब टूट गई, क्या हुआ.?
 जो सनम ही रूठ गई,
सपने सारे जाने मेरे ख़्वाबी सी है, शबाबी सी है।

तेरी-मेरी कहानी “Prabhat” किताबी सी है…..2.।।

                       शेर :-
"अबकी बरसी सावन तो वो गमगीन थी बारिश।
आंखों से उतरी तो वो नमकीन थी बारिश"।।

©Prabhat Singh Bharti
  "तबीयत"

"तबीयत" #शायरी

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Prabhat Singh Bharti

तबीयत” 

आज तबीयत में थोड़ी खराबी सी है।
थोड़ी तीखी,थोड़ी मीठी जबाबी सी है।।

उम्मीद ही तो नहीं की वो याद भी करती होगी।
जाने क्यूं, मगर हिचकियां थोड़ी पहचानी सी है।।

मौसम सर्द होरहा हैं, थोड़ा दर्द होरहा हैं।
बैठा हूं तेरे यादों की जद में,मन भी थोड़ी गुलाबी सी हैं।।

जिंदगी तो फ़ना: हो ही जायेगा,
तेरे बाहों में सर रखकर सो ही जायेगा। 
                   मगर,
उम्र का ये दौड़ भी कैसा मज़ेदार है, 
की,मन भी थोड़ी शराबी सी है, थोड़ी नबाबी सी है।।

धैर्य की धूरी अब टूट गई, क्या हुआ.? 
जो सनम ही रूठ गई,
सपनों सारे जाने मेरे ख़्वाबी सी है, शबाबी सी है।
तेरी-मेरी कहानी “Prabhat” किताबी सी है…..2.।।

                        शेर :- 
"अबकी सावन बरसी तो वो गमगीन थी बारिश।
आंखो से उतरी तो वो नमकीन थी बारिश"।।

©Prabhat Singh Bharti
  तबीयत....

तबीयत.... #शायरी

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Prabhat Singh Bharti

कलम से बड़ा कोई तलवार नही,
 हालाकि ये मुझे स्वीकार नही। 
बीन धुएं की आग लगी है शहर में,
सच है की कोई अदाकार नही, कलाकार नही।
                 
                           मैं लिखूं भी तो क्या लिखूं?                             
  इश्क़ लिखूं,या इंकलाब लिखूं,
  या गूंगे बहरों की औकात लिखूं। 
 ये जो शाहिलों पे मुंतजिर बैठाए हो,
 उसका ज़िम्मेदार कौन है,
 क्या तू,या तेरी बेवफाई,जो अब तक मौन हैं।
 इस मन से अधिक और कुछ भी नही 'जलता, 
 जीवन के इस कर्मभूमि में ‘Prabhat', 
'मरता क्या न करता'।

©Prabhat Singh Bharti
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Prabhat Singh Bharti

'वो दिन भी,क्या दिन थे'?

" जब तुम नही थे
तो उम्मीदें बहुत थी
जब तुम आए,तो कोई मलाल न था
एक तुम थे,एक आरजू तेरी
बाकी सब छोड़ गया था 
मेरे हाथों से पतंग की डोर गई
मेरे चंपारण के शाम,पटना के भोर गई
अब वो मेरी नहीं
 रात-रानी अपनी डाली मरोड़ गई
अब तुम नही तो,कोई ख़्वाब नही
रात ही तो है,ढल जायेगी 'प्रभात'
 मेरे रब की माया है ये 
उस पर कोई सवाल नहीं "।

©Prabhat Singh Bharti
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Prabhat Singh Bharti

“तू जैसी भी है तुझ पर नाज़ है जिंदगी”।

•	गई रात बहुत अंधेरी मगर मैं अभी जाग रहा हूं।
ख़्वाब है कितने बदतमीज मेरे दोस्त की मैं क्या कहूं
 जला कर दीया एक तूफ़ान के आगे रख रहा हूं।

मेहनत तो चलो सगी है माना।,मगर एक बात भी तो हैं।
पराया ही सही माना लेकिन कुछ उसके सजदों का करामात भी तो हैं,
एक जीवन दूजा जिंदगी,ये दो-जहां है, मगर एक छत भी तो हैं।

किसी दिन रौशन होगी मेरी भी जिंदगी,
आसमानों से कभी ऐसी ख़बर भी आयेगी।
हमे कहानियां लिखने दो बहती दरिया पर,
इस समंदर मे एक लहर हमारी भी आयेगी।

जिंदगी और जंग ये दो अलग चीज़ है,
एक ओर मुहब्बत तो दूजी ओर जुदाई हैं।
अपने ही कोशिशों से लहू-लुहान किया है हथेली को अपने,
लकीरों को बदलने की हिमाकत जो दिखाई हैं।
मगर यार सुन, यार सुन एक तबियत की बात बताता हूं, ये जिंदगी हैं दोस्त,
साली बेवफ़ा भी निकली तो मुकद्दर बनाकर जायेगी।
पिघलेंगे कब ख़्वाब सफ़लता के तेरे, की ज़माना अब आना-कानी कर रहीं है।
हर रोज़ लगाना परता है दाव पर कुछ न कुछ, की, ज़रूरतें निरंतर अब तानाशाही कर रही हैं।
वो पल, जो तय करेगा कल यहीं अंजाम लिख रहा हूं।
कलम लिख रहा हूं, कलाम लिख रहा हूं,
हम अपने ही सर हर इल्ज़ाम लिख रहा हूं।
ठ़ोकर खाना भी ज़रूरी है कईबार जीवन मे मगर ‘Prabhat’,
हर जवां दिलों के मर्ज का मरहम लिख रहा हूं!?
          कृत:-  ✍️prabhat singh bharti✍️

©Prabhat Singh Bharti तू जैसी भी हैं, तुझ पर नाज़ है जिंदगी।?

तू जैसी भी हैं, तुझ पर नाज़ है जिंदगी।?

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Prabhat Singh Bharti

“कोई समझता ही नही, क्या हुआ? क्या खूब हुआ”। 

 बे-पनाह: मुहब्बत, बेहिसाब दर्द,  प्यार,ऐतबार भरपूर हुआ। हालातों के हाथ मजबूर हुआ, कसमें बदला, लोग बदले, ख्वाब चकना-चूर हुआ। 
बातें रहेंगी, मुलाकातें रहेगी, अब तुमसे कोई लगाव नही हैं। 
बात फूलों की है, खुशबुओं से कोई अलगाव नही हैं.।

 मिल जाए जो आसानी से उसका ख्वाहिश किसे है। 
आसान चीजों का शौखिन नही, मुश्किलें मुझको मज़ा देती हैं, मन को भाती हैं।
सफलता के सफ़र में फुर्सत कहां, मगर जब चोट लगती है “प्रभात”, तुम्हारी याद आती हैं।
दो पल की खुशी तो ख़रीद नही सका कभी अपने लिए, और शहर वाले धनवान समझते हैं।
मैं बदलते हालातों मे ढल जाता हूं, और देखनेवाले अदाकार समझते हैं।

मोहब्बत का सौदागर हूं, बस छोटी सी बात है।
देखें ही नहीं, मगर दिख जाए तो, नज़र नज़र की बात हैं।
 ✍️p s Bharti ✍️

©Prabhat Singh Bharti
  कोई समझता ही नहीं, क्या हुआ? क्या खूब हुआ ।

कोई समझता ही नहीं, क्या हुआ? क्या खूब हुआ । #कविता

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Prabhat Singh Bharti

दिल अमीर था मुकद्दर गरीब था,
अच्छे थे हम मगर बुरा नसीब था,
लाख कोशिश करके भी कुछ कर न सके,
घर भी जलता रहा और समंदर भी करीब था.....
Prabhat Singh Bharti

©Prabhat Singh Bharti
  बेबसी .....

बेबसी ..... #Shayari


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