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arundhuwadiya5485
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arun dhuwadiya

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arun dhuwadiya

 एक ग़ज़ल

तुझे यादों से मैं आज़ाद करके।
बहुत रोया हूँ दिल नाशाद करके।

तमन्नाओं की गठरी बांध ली है।
चला जाऊँगा तुझको याद करके।

एक ग़ज़ल तुझे यादों से मैं आज़ाद करके। बहुत रोया हूँ दिल नाशाद करके। तमन्नाओं की गठरी बांध ली है। चला जाऊँगा तुझको याद करके। #nojotophoto

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arun dhuwadiya

 लहजों की तलवारें ताने रोज सितमगर जाने क्यों?
जिनसे थी उम्मीद प्रेम की, वो है पत्थर जाने क्यों।

नफरत की ये आग लगाये, शब्दों की चिंगारी से।
 अपनों की आई बारी तो, रोए मुनव्वर जाने क्यों।

आसानी से मुझको बोली, यार जुदा अब हो जाये।
मेरे जाने पर कमरे में, रोई छुपकर जाने क्यों।

लहजों की तलवारें ताने रोज सितमगर जाने क्यों? जिनसे थी उम्मीद प्रेम की, वो है पत्थर जाने क्यों। नफरत की ये आग लगाये, शब्दों की चिंगारी से। अपनों की आई बारी तो, रोए मुनव्वर जाने क्यों। आसानी से मुझको बोली, यार जुदा अब हो जाये। मेरे जाने पर कमरे में, रोई छुपकर जाने क्यों। #nojotophoto

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arun dhuwadiya

मजहबी पखण्ड का उपचार हो।
और जिहादी सोच पर भी वार हो।

ये नहीं चाहा कभी आवाम ने।
कौम से इंसानियत की हार हो।

नफरती लोगों को समझाओ जरा।
प्रेम की इस धरती पे बस प्यार हो।

मज़हबी उन्माद वाली कोढ़ का।
प्यार ही उपचार का आधार हो।

सारी दुनियाँ को मिटाने की सनक।
तुम तो योद्धा हो नहीं, बीमार हो।

मातमी चीखों पे अठ्ठाहस हुई।
सोचों तुम, इंसाँ नहीं आज़ार हो ।

तुमसे अब उम्मीद *आशू* क्या करे।
दुश्मन-ए- इंसानियत खूँखार* हो। (खून पीने वाले)

आशू रतलाम मजहबी पखण्ड का उपचार हो।
और जिहादी सोच पर भी वार हो।

ये नहीं चाहा कभी आवाम ने।
कौम से इंसानियत की हार हो।

नफरती लोगों को समझाओ जरा।
प्रेम की इस धरती पे बस प्यार हो।

मजहबी पखण्ड का उपचार हो। और जिहादी सोच पर भी वार हो। ये नहीं चाहा कभी आवाम ने। कौम से इंसानियत की हार हो। नफरती लोगों को समझाओ जरा। प्रेम की इस धरती पे बस प्यार हो।

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arun dhuwadiya

#AprilFoolDay  तमाम दोस्तों से दूरियां बहुत अच्छी।
अभी से जंग की तैयारियां बहुत अच्छी।

जरा से दिन में ही घबरा गए कफ़स से तुम
सुनो तो मौत से ये बेड़ियां बहुत अच्छी।

तुम्हारे मेरे घरों में न मौत दस्तक दे।
इसीलिये ये जबरजस्तियाँ बहुत अच्छी।

किसी को लठ पड़े है और कोई बन्दी है।
अगरचे समझो तो ये झाकियां बहुत अच्छी।

तुम्हारे दिल को अगर चीरता है सन्नाटा।
कज़ा के चीख से ये चुप्पियाँ बहुत अच्छी।

जरूरी है कि रहे बंद मौत के रस्तें।
ये अधखुली हुई सी खिड़कियां बहुत अच्छी।

खुले गगन का कभी बादशाह था *आशू*।
मगर अभी तो ये पाबंदियां बहुत अच्छी।

आशू रतलाम तमाम दोस्तों से दूरियां बहुत अच्छी।
अभी से जंग की तैयारियां बहुत अच्छी।

जरा से दिन में ही घबरा गए कफ़स से तुम
सुनो तो मौत से ये बेड़ियां बहुत अच्छी।

तुम्हारे मेरे घरों में न मौत दस्तक दे।
इसीलिये ये जबरजस्तियाँ बहुत अच्छी।

तमाम दोस्तों से दूरियां बहुत अच्छी। अभी से जंग की तैयारियां बहुत अच्छी। जरा से दिन में ही घबरा गए कफ़स से तुम सुनो तो मौत से ये बेड़ियां बहुत अच्छी। तुम्हारे मेरे घरों में न मौत दस्तक दे। इसीलिये ये जबरजस्तियाँ बहुत अच्छी। #Aprilfoolday

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arun dhuwadiya

 इस तरह आज जी रहे हैं सब।
उधड़े ख्वाबों को सी रहे हैं सब।

झूठी दुनियाँ के साथ चलने को।
अपने आँसू भी पी रहे हैं सब।

मुझको तन्हाई का दिया अहसास।
औ मेरे साथ भी रहे हैं सब।

इस तरह आज जी रहे हैं सब। उधड़े ख्वाबों को सी रहे हैं सब। झूठी दुनियाँ के साथ चलने को। अपने आँसू भी पी रहे हैं सब। मुझको तन्हाई का दिया अहसास। औ मेरे साथ भी रहे हैं सब। #nojotophoto

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arun dhuwadiya

बड़बोले बस बोल रहे है।
शब्दों से विष घोल रहे है।

भाग रहे है जो घर से भी।
काम तंत्र का तोल रहे है।

रखवाली का जिम्मा जिनको।
वो ही तालें खोल रहे है।

जन सेवक ओ चारागर ही।
सब हीरें अनमोल रहे हैं।

दुनियाँ भर पे आफत *आशू*।
अचल अडिग भी डोल रहे है।

आशू रतलाम बड़बोले बस बोल रहे है।
शब्दों से विष घोल रहे है।

भाग रहे है जो घर से भी।
काम तंत्र का तोल रहे है।

रखवाली का जिम्मा जिनको।
वो ही तालें खोल रहे है।

बड़बोले बस बोल रहे है। शब्दों से विष घोल रहे है। भाग रहे है जो घर से भी। काम तंत्र का तोल रहे है। रखवाली का जिम्मा जिनको। वो ही तालें खोल रहे है।

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arun dhuwadiya

 आपके लिए ग़ज़ल

आपके लिए ग़ज़ल #nojotophoto

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arun dhuwadiya

जहाँ जाती नज़र कुछ भी नहीं है।
जहां में मोतबर कुछ भी नहीं है।

बता क्या होगा उन सब मुफ़लिसों का।
न खाना है न घर कुछ भी नहीं है।

तुझे बस सावधानी ही बचाये।
दवाओं में असर कुछ नहीं है।

सुनो अब लाठियां रोकेगी तुमको।
अपीलों में कसर कुछ भी नहीं है।

ये दुनियाँ लॉकडाउन है समूची।
तेरा मेरा नगर कुछ भी नहीं है।

 कहीं ये झूठ भारी पड़ न जाये।
मैं कहता हूँ कि डर कुछ भी नहीं है।

वो देखे बस हमारी मुठ्ठियों को।
कि हाथों में मगर कुछ भी नहीं है।

झुका लो सर अगर जीना हो *आशू*।
बिना जां के ये सर कुछ भी नहीं है।

आशू रतलाम जहाँ जाती नज़र कुछ भी नहीं है।
जहां में मोतबर कुछ भी नहीं है।

बता क्या होगा उन सब मुफ़लिसों का।
न खाना है न घर कुछ भी नहीं है।

तुझे बस सावधानी ही बचाये।
दवाओं में असर कुछ नहीं है।

जहाँ जाती नज़र कुछ भी नहीं है। जहां में मोतबर कुछ भी नहीं है। बता क्या होगा उन सब मुफ़लिसों का। न खाना है न घर कुछ भी नहीं है। तुझे बस सावधानी ही बचाये। दवाओं में असर कुछ नहीं है।

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arun dhuwadiya

 आपके लिए
ग़ज़ल

आपके लिए ग़ज़ल #शायरी #nojotophoto

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arun dhuwadiya

अगरचे ख़ाक ही होना तो दिल्लगी कर लो।
गुलामी करनी ही चाहों तो इश्क़ की कर लो।

ये बोला मेने की बिन तेरे जी न पाऊँगा।
बड़े ही प्यार से बोली वो, खुदखुशी कर लो।

दिलो दिमाग की बनती नहीं मुहब्बत में।
कहूँगा सोच समझ कर ही आशिक़ी कर लो।

वो मेरी नजरों से नजरें मिला के कहती है।
शराब दूर रखो इनसे मैकशी कर लो।

यहाँ पे कोई नहीं आपका तो किसने कहाँ?
जहान भर से लड़ो और दुश्मनी कर लो।

अदावतें है तुम्हारी अगर मुहब्बत से।
तो मेरी जान सुनो मुझसे दोस्ती कर लो।

तुम्हें क्या इश्क़ है *आशू* मुझे भी बतलाओ?
वगरना दिल से कहूँगा कि मुख़बरी कर लो।

आशू रतलाम अगरचे ख़ाक ही होना तो दिल्लगी कर लो।
गुलामी करनी ही चाहों तो इश्क़ की कर लो।

ये बोला मेने की बिन तेरे जी न पाऊँगा।
बड़े ही प्यार से बोली वो, खुदखुशी कर लो।

दिलो दिमाग की बनती नहीं मुहब्बत में।
कहूँगा सोच समझ कर ही आशिक़ी कर लो।

अगरचे ख़ाक ही होना तो दिल्लगी कर लो। गुलामी करनी ही चाहों तो इश्क़ की कर लो। ये बोला मेने की बिन तेरे जी न पाऊँगा। बड़े ही प्यार से बोली वो, खुदखुशी कर लो। दिलो दिमाग की बनती नहीं मुहब्बत में। कहूँगा सोच समझ कर ही आशिक़ी कर लो।

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