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vishwaspradhan8372
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Vishwas Pradhan

जिंदगी के समझ को शब्दों में पिरोकर, कुछ मिलने की उम्मीद में जो ना पाया उसे खोकर, कभी इश्क़ कभी सबक या तंज करता किरदार हूँ। कहानियां समेटकर दुनिया की, पन्नो पे लिखता मैं एक कलमकार हूँ।।

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Vishwas Pradhan

बीत गई, रातें कई
कई कल्प सा गुजरा दिन।
मैं तुमको चाहूं, चाहता रहूं,
कैसे संभव है तुम बिन।।

होकर के खड़ा गंगा तट पर
बस समय बिताऊं लहरे गिन।
मैं तुमको सोचूं,सोचता रहूं,
कब तक ये संभव है तुम बिन।।

निशा की घोर घनेरी में,
उस छाया की है तलाश हमें।
एक पल का भी जुगनू बनके,
उस छटा को छांट दिखाए दिन।।

मेरे पतित प्रेम का अतिशय तुम,
मेरे ख्वाब गीत का अलंकार।
मेरे जीवन-लेखनी का व्याकरण,
तुम हो समस्त कविता का सार।
तुमसे जन्मा मेरा प्रेम राग,
उन हसरतों का तुम हो आधार।
जहां शब्द खत्म होते तुम पर
तुम गहरे मन का हो विचार।।

सब लिखता मैं जब होती तुम,
फिर से लिखना अब नहीं मुमकिन। 
आशा की उषा अब ढलने लगी,
किरदार बदलना हुआ कठिन।
कैसे चाहूं, कब तक सोचूं,
सब कैसे संभव है तुम बिन।।।

©Vishwas Pradhan #Prem #MyPoetry #hindi_poetry
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Vishwas Pradhan

-जब से दिखी वो मेरे सपने में, कोई और फिर आया ही नही।
असल में वो मिली ही नहीं, मन को मैंने समझाया ही नहीं ।
प्रेम के किस्से हर घर में खोजे नहीं जाते।
कहानी मेरी उससे बनी नहीं,किरदार कोई और बनाया ही नहीं।।

©Vishwas Pradhan #shayri #hindi_poetry
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Vishwas Pradhan

नीतियों की बुद्धि मैने मां से सीखी,

पिता से सीखी जिम्मेदारी।

रिश्तेदार सीखा रहे रिश्तों का होना,

दुनिया को देखा तो प्रेम समझ आया।

इस जीवन का डोर उस प्रभु ने है पकड़ा

अहंकार क्यूं जब कुछ है ही नहीं अपना।

क्या खोया क्या पाया, इस भीड़ में कैसे आया।

मन से क्यूं ना पूछा,क्यों न खुद को समझाया।

अलग था मैं सबसे, अलग काम मेरा मगर

उलझनों में सिमटा रहा, उसको भी ना समझ पाया।

क्या हो कि उम्र की, अंतिम सीमा पता हो

जो चाहिए वो क्या हासिल कर लोगे या

हो अगर आखिरी पल ही बस कल तो,

खुद को जीयोगे याकि दुनिया जीतोगे।

मन को मारकर सब मिल भी जाए तो

खुद से मिलना हो कभी कैसे मिलोगे,

कर्जे के जीवन में खुद का क्या बनाया,

पूछ ले जो कोई तो क्या हिसाब दोगे।

चार दिन के जीवन के निहित चार मूल्यों को पढ़ लो।

दो में जियो जीवन को, एक में जीवन जानो,

समझ लिए जो एक में जीवन, एक में जीवन सुखी समझ लो।

प्रभु की माया कर्म रचित है, कर्म करो खुद को पहचानो।।।

©Vishwas Pradhan #Motivational #mydiary
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Vishwas Pradhan

जब तक समय है शेष मुझमें
रुक जाए सब, मैं चलता रहूंगा।

दौर चाहे बदले समय का
बदले सब, मैं ढलता रहूंगा।

कुछ जीतने की दौड़ में,
किस्मत भले ना संग हो।

 कुछ सीखने की होड़ में 
मैं खुद से ही लड़ता रहूंगा।।

सपनो की कई डालियां ,
है पनपती रोज मुझमें।

पर एक शाखा है की जिसका
शय सुकून देता मुझे।

रोज गिरता, रोज चलता,
 जब कभी थक जाता मैं।

कुछ और पल, फिर ख्वाब पूरे,
ये जुनून देता मुझे।

सपनो के उस शाख को 
जीवित रखूंगा जीत तक।

 पर,जीत ना पाया अगर

उस भाव को सहेजकर ,
जिंदा रखूंगा ख्वाब को
रास्तों के ठोकरों से मैं 
खुद ही संभलता चलूंगा।।


जब तक समय है शेष मुझमें
कुछ पाने तक चलता रहूंगा।।।

©Vishwas Pradhan
  #swiftbird
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Vishwas Pradhan

सबके साथ अच्छा होना कब तक,
सपनो का भी सपना होना कब तक,
मंजिल का मेरा होना या ना पाने का रोना,
जब सबकुछ हमे ही है सहना तो किसी से कहना कब तक।
हर पल में जो किरदार नए मुझ खातिर गढ़े गए हैं
हो सकते हैं वो भले, हमे पर कुछ ही पढ़े गए हैं।
मेरे जीवन के किस्सों में जो हिस्से अभी बचे है जिसमे
लिखा नियति में जो भी, हैं सब हमे मंजूर मगर,
हर किरदार निभा पाने का, बोझ उठाना कब तक
खुद की जीत की खातिर,सच को गलत बताना कब तक।
जब तक अच्छा हो चलने देते हैं, ख्वाब हो या रिश्ता कोई,
किसी लोभ के खातिर मनु को भी भगवान बनाना कबतक।।

©Vishwas Pradhan #duniya #MyPoetry #Hindi #hindi_poetry #Jindagi
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Vishwas Pradhan

अंधेरे से पूछो चराग का मतलब, जो खुद में भी खुद को न देख पाता है,
हुनर की अगर कदर ही न हो तो हुनर भी हताशा का सबब हो जाता है,
वो कहते हैं कि मंजिल की करो ना फिकर पर, दिखे ना डगर तो चले लोग कब तक।
एक तो घनेरी रात उसपे शिकन का शाया, है ख्वाब चांद सा जो दिन भर ठहर न पाता है।
ये किस्मत की चिंता शिकस्त ही है देती, गर चिंतन हो शास्वत समय साथ आता है ।
खुद से अगर मगर कर जो खुद को खोजते हैं
बंदिशों के पार देखने वाले पर्वत भी तोड़ते हैं
मुक्कदर में लिखे लकीरों से कोई वीर नहीं होता,
राणा हारता है सीखता है फिर रण जीत जाता है।।

©Vishwas Pradhan
  #Sitaare #motivatation #MyPoetry #hindi_poetry
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Vishwas Pradhan

सब की चिंता, सब का ख्याल, सारा काम पिता का है
मुझमें मां का हक जितना उतना नाम पिता का है,
दिन भर देखूं मां को तो सोचूं, मां पे क्या लिखना है,
मैं आराम से बैठ के सोचूं, ये एहसान पिता का है।

©Vishwas Pradhan
  #FathersDay
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Vishwas Pradhan

अंधेरे से पूछो चिराग का मतलब,
जो खुद में भी,खुद को न खोज पाता है।
हुनर का अगर कदर ही न हो तो,
हुनर भी हताशा में , शामिल हो जाता है।
वो कहते हैं, मंजिल की करो ना फिकर पर
दिखे न डगर तो चले लोग कब तक,
एक रात है घनेरी, उसपे शिकन का शाया।
एक ख्वाब हैं चांद सा,जो दिन भर ठहर न पाता है।
ये किस्मत की चिंता शिकन ही है देती,
अगर चिंतन हो शास्वत, समय साथ आता है।

खुद से अगर मगर कर, जो खुद को खोजते हैं,
बंदिशों के पार देखने वाले, पर्वत भी तोड़ते हैं।
मुक्कदर में लिखे लकीरों से कोई वीर नहीं बनता,
राणा हारता है सीखता है, फिर रण जीत जाता है।।

©Vishwas Pradhan
  #MyPoetry
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Vishwas Pradhan

हर शहर में हैं मेरे जानने वाले,
बस उसकी ही गली मेरा नाम पूछती है

©Vishwas Pradhan #loV€fOR€v€R

loV€fOR€v€R #ज़िन्दगी

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Vishwas Pradhan

अब जो चेहरे भी पढ़ लो तो खुद को काबिल समझना,
यहां मन के ऊपर मुखौटे बहुत हैं।।

©Vishwas Pradhan #thought_of_the_day 

#walkingalone
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