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vishwaspradhan8372
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Vishwas Pradhan

जिंदगी के समझ को शब्दों में पिरोकर, कुछ मिलने की उम्मीद में जो ना पाया उसे खोकर, कभी इश्क़ कभी सबक या तंज करता किरदार हूँ। कहानियां समेटकर दुनिया की, पन्नो पे लिखता मैं एक कलमकार हूँ।।

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Vishwas Pradhan

White  उस चश्म को हम, आयतें-आफताब लिखते हैं।
रुखसार को,  रोशन-ए-महताब लिखते है।
इन ख्यालों में जिसकी तवज्जो है इतनी,
उस भ्रम को हम हुस्न की किताब लिखते हैं।

आंखों में डूबने को शबाब लिखते हैं ।
मयखाने की मल्लिका को शराब लिखते हैं।
नासाज़ कर दी जिसने जवानी ये मेरी,
उस नशे को हम दोपहरी-ख्वाब लिखते हैं।।२

इश्क एक-तरफा हो तो खराब लिखते हैं।
शायरों को अक्सर, ग़में-मिजाज लिखते हैं।
केवल जानकी वियोग का हिसाब रखने वाले,
मोहन तड़पें तो, प्रेम लाजवाब लिखते हैं।।३

एक अरसे तक चाहा, जिसे आज लिखते हैं।
महज़ शायरी नहीं, हम तल्ख़े-ताज़ लिखते हैं।
खुदगर्ज होना हो भले दस्तूर जमाने का,
आज भी अपने गीतों में, उसे ही साज़ लिखते हैं।।४

©Vishwas Pradhan #love_shayari  hindi poetry urdu poetry #Jeevan #Prem #kavita #Shayari #kahani

#love_shayari hindi poetry urdu poetry #Jeevan #Prem #kavita Shayari #kahani #Poetry

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Vishwas Pradhan

White  फख़्त ये आजमा लेना, भले दस्तूर जो भी हो।
निहायत इश्क होगा तो, चांद बदनाम भी होगा।।

 बदलते मौसमों का एक कुनबा साथ है मेरे,
फ़िदायीन रात जाने दो, मुबारक़ शाम भी होगा।

मंजिल दूर जरा ख्वाबों की फेहरिस्त है लंबी,
मुसाफ़िर आज हैं तो क्या, हमारा नाम भी होगा।

मुद्दतों की तंगदस्ती से कुछ पल का ही रिश्ता है,
मुश्किल आज है तो, कल सफ़र आसान भी होगा।।

©Vishwas Pradhan #मोटिवेशनल #हिंदी #कविता #शायरी
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Vishwas Pradhan

White ध्येय का चिंतन, कर्म-चयन,
पूर्ण साधना, सही पथ सुझाव,
हे पार्थ भले हम रथ पे हों,
लड़ो युद्ध अगर हो खुद का चुनाव।।

एक हार से किंचित मन क्यूं हो,
वसुधा के पटल पर जाना हो जो।
देवों का जीवन सहज नहीं,
तुम तो फिर भी ,एक मानव हो।।

चाहे दिखे कि आगे हार ही है,
रथ के पहिए भले शिथिल पड़े।
तुम लड़ो कि अंतिम युद्ध यही,
हो अर्जुन या श्रीकृष्ण खड़े।।

सब निहित भले हो जन्मों से,पर
खुद को खुद लिखने वाला।
सुनो पार्थ, रण-विजयी हुआ,
अंतिम तक युद्ध लड़ने वाला।।

©Vishwas Pradhan #Motivational
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Vishwas Pradhan

White एक प्रेम है पनपा पन्नो पे,
तसवीर सिमट गई सांसो में।
कुछ आस जगा अंतर्मन में,
मन फिर उलझा उन बातों में।।१
एक चितवन सी काया खातिर,
 ये आंख जगी फिर रातों में।
 फिर से तारों से बात हुई,
 कुछ ख्वाब सजे फिर आँखों में..।।२

नजरे चंचल कछ कहती हैं,
होंठो पे हसी ही गहना है।
चेहरा जैसा हो खिला चांद,
श्रृंगार ने उसको पहना है।।३
इस सिथिल पडे तामस मन पर, 
चल जैसा कोई शूल गया,
चित अधीर हुआ वो ऐसे दिखी,
तन करवट लेना भूल गया।।४

फिर हृदय ने छेड़ा मोह राग,
धड़कन ने गाया गीत नया।
सांसों ने छोड़ा साथ मेरा,
मैं मुझसे बगावत करके गया।५
ये माना की है भ्रम ये मेरा,
फिर भी मन पूर्ण समर्पित है।
कविता के सारे अलंकार,
रस-छंद सब तुमको अर्पित है।।६

मैं थमा हुआ कोई तट जैसे, 
तुम लहरों सी बलखाती हो।
सांसों का बहना थम जाता,
जब तुम यादों में आती हो।७
मैं आधा बेसुर गीत कोई,
तुम कोकिल कंठ-सी गाती हो।
मैं चुप बस खुद को सुनता हूं,
तुम सबको ग़ज़ल सुनाती हो।८

अगर ये सपने सच होते,
मैं कहता तुम वो साथी हो।
अवसित हुई जहां तलाश मेरी, 
तुम प्रभु की वो तराशी हो।।९
मन भटका हुआ है घाटों पे,
तुम राह दिखाती वासी हो।
मैं बिखरा हुआं हूं गलियों सा,
तुम मेरी सुंदर काशी हो-2।।९०

©Vishwas Pradhan #love_shayari  hindi poetry poetry on love poetry in hindi

#love_shayari hindi poetry poetry on love poetry in hindi #Poetry

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Vishwas Pradhan

श्रृष्टि में खुद प्रेम लिखा ,और
शक्ति को भी स्वयं चुना , पर
प्रेम को परिभाषित करने को,
शिव भी वर्षो रुके रहें।।

शक्ति ने प्रेम स्वीकार किया,
जिसका शिव ने आधार दिया, 
पर लिखा प्रेम पाने को भी,
 शक्ति ने,वर्षो ताप सहे।।

सहज नहीं है जीवन मिलना,
मुश्किल है की प्रेम सरल हो।
देवों ने भी किया समर्पण,
फिर कैसे ये सहज हो नर को।

©Vishwas Pradhan #shivshakti #premkavita
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Vishwas Pradhan

White जब पहली बार प्रेम लिखा गया,
मतलब था, दो जीवो का एक होना।
क्योंकि श्रृष्टि का संचालन सुदृढ़ करना था।

दो स्वच्छंद विचारो का जब मिलना होगा,
प्रेम होगा, श्रृष्टि के क्रम में, निरंतर ये ही चक्र चलेगा।

ना कहीं करूण-क्रदन ,ना ही वियोगित मन।
यथावत चल रहा था, जैसा लिखा गया था।

फिर प्रेम हुआ, साक्षात ईश्वर को हुआ।
वो प्रथम जीवंत प्रेम था, अनंत तक चलने वाला,

अखंड , मगर रचना के विरुद् होने वाला,
यहां जप भी था और तप भी, 
 करूणा और वियोग भी।
संताप में श्रृष्टि तक को भस्म करने वाला,
यह पहला प्रेम था जो पूर्ण हुआ।

©Vishwas Pradhan #Shivashakti #MyPoetry #Hindi
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Vishwas Pradhan

भीड़ में जयघोष का सैलाब लेके आया था,
लाज़िमी है कि वो लड़का ख़्वाब लेके आया था।
ये ज़मीं फिरदौस कहता, ये वतन आजाद है,
 वो महज लड़का आजादी का, इंकलाब लेके आया था।।

©Vishwas Pradhan #bhagatsingh #Deshbhakti #bharatsher
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Vishwas Pradhan

White तुम मिले, मन मिला, सुकून जैसे ठहर गया,
की गांव का वो लड़का, जैसे अभी शहर गया।
खोजता भटक रहा , अधूरी थी तलाश अभी ,
आंखो को थकाते, कितनी रातों का पहर गया।


तुम मिली तो जैसे लगा, ख्वाबों को कुछ बल मिला,
थके हुए रातों को, भोर का कुछ पल मिला।
तलाश था की मेरे भी हिस्से में जरा प्यार हो।
तुमसे मिलके लगा जैसे, गांव से मैं कल मिला।।


खालीपन से लदा मुझमें, एक हिस्सा अब भी है। 
बिखरी हुई कहानियों का ,एक किस्सा अब भी है।
नसीब से नाराज़ था, किस्से में प्रेम क्यूं नहीं?
पाया तुम्हे पता चला, हिस्से में प्रेम अब भी है।।


अगर कबूल हो तुम्हे, तलाश को आयाम दूं?
प्रेम के इस किस्से के, किरदार को इक नाम दूंl
मैं राही अभी भटका हुआ, तलाश है एक मोड़ की।
मंजूर है अगर तुम्हे, इस सफर को एक अंजाम दूं?

©Vishwas Pradhan #love_shayari  love poetry in hindi

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Vishwas Pradhan

White जब तक समय है शेष मुझमें
रुक जाए सब, मैं चलता रहूंगा।

दौर चाहे बदले समय का
बदले सब, मैं ढलता रहूंगा।

कुछ जीतने की दौड़ में,
 किस्मत भले ना संग हो।

 कुछ सीखने की होड़ में 
मैं खुद से ही लड़ता रहूंगा।।

सपनो की कई डालियां ,
है पनपती रोज मुझमें।

पर एक शाखा है की जिसका
शय सुकून देता मुझे।

रोज गिरता, रोज चलता,
 जब कभी थक जाता मैं।

कुछ और पल, फिर ख्वाब पूरे,
ये जुनून देता मुझे।

सपनो के उस शाख को 
 जीवित रखूंगा जीत तक।

 पर,जीत ना पाया अगर
उस भाव को  सहेजकर

जिंदा रखूंगा ख्वाब को ,
रास्तों के ठोकरों से ,
मैं खुद ही संभालता चलूंगा।

जब तक समय है शेष मुझमें
कुछ पाने तक चलता रहूंगा।।।

©Vishwas Pradhan #motivational #mypoetry #hindipoetry 
#mondaymotivation

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Vishwas Pradhan

White  किसी सपने खातिर भागे क्या,
उसे जीने खातिर जागे क्या,
जिस जीवन का भरते हो दंभ
उसे पाने खातिर त्यागे क्या?

क्या लड़ा कभी खुद से तुमने,
तुम शर्त कभी कोई हारे क्या,
क्या चले हो ऐसे राह कभी,
जहां पता नहीं हो आगे क्या

उस मंजिल तक जाने खातिर,
जीवन से मौके मांगे क्या,
जिस जीवन का भरते हो दंभ,
उसे पाने खातिर त्यागे क्या??

विरले ही हुए हैं वीर यहां,
जो रण में कभी न हारे हों।
पर संघर्षों में तपकर ही,
वो साधक से वीर बने।

हर सपने का मोल कोई,
सबको ही चुकाना पड़ता है।
पर जिनके सपने असली हों,
बस वही अंत तक चलता है।

गिरकर चलना खुद सीखे क्या,
कहो सहा तंज कोई तीखे क्या,
जो लड़ते रहे अबतक खुद से तो,
कहो जंग कोई जीते क्या।

इस जीवन के तपोवन में,
हर छड़ लड़ना है युद्ध नया।
हारा है वही जो तपा नहीं,
जो सीखें दाव वो जीत गए।

असफलता के शिखर पर ही,
सबने लिखा है जीत गान, 
घूमता है निरंतर कर्म रथ,
जो किए कर्म, वो हुए महान।।

©Vishwas Pradhan #GoodMorning #mondaymotivation hindi poetry
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