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rituraj8829
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Ritu Raj

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Ritu Raj

सीखाया 
आयेगी रौशनी भी - अभी जो काली रात है |

थी किस्मत खिलाफ फिर भी  वो 
हालात को मात देकर हमारे साथ है |

With her journey 
with her presence
 who teaches loads of things

 without saying much anythings.

    " ऐसे गुरु को प्रणाम 🙏 " 



-Ritu Raj

©Ritu Raj
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Ritu Raj

तू जूगनू रात की - चराग़ मैं बुझाऊॅं क्या,
बसी ज़हन में - तो तूझसे दूर जाऊॅं क्या,

दुनीयाॅं की नज़रें - टिकी है तूझपे जान-ऐ-जाॅं,
काज़ल तू खूद - मैं तेरी नजरें उतारुॅं क्या |

सजाने मांग तेरी - सारे सीतारों से,
जमीं पर तोड़ कर मैं तारें - ले आऊॅं क्या ?

रखना निशानीयाॅं तू मेरी मेहफ़ूज सनम,
तेरी हॅंथेली पर दिल मैं - दे जाऊॅं क्या ?

प्यासा हुॅं कबसे मैं - बूॅंद की तलाश में,
होठों को चूमूॅं मैं - तूझमें खो जाऊॅं क्या ?

मैं चाहुॅं रेहना सनम तेरे ही आसरे,
सीने से लग कर मैं तेरे - सो जाऊॅं क्या ?

तेरी चाहत़ में ग़र तू मुझे ईजाज़त दे - चुरा कर आसमाॅं से चाॅंद - ले आऊॅं क्या ?
यादें बसी है तेरी - रुह़ के हर कोने में मेरी,
तूझे ना भूलूॅं - मैं यादें भूलाऊॅं क्या |

है मोहब्बत़ के किस्से अपनी जो ,
 कहो तो हर - पन्ने में - तूझे ही लिख जाऊॅं क्या ?

जो ईश़्क हुआ तूझसे - मेहबूब़ मेरे,
बना कर ग़वाह - मैं रब को बुलाऊॅं क्या ?

            बना कर ग़वाह 
               मैं रब को
             बुलाऊॅं क्या ?

Your ♥️
                      -Ritu Raj

©Ritu Raj
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Ritu Raj

White                                              " बेटी थी वो " 

                          सौ सपने और - आंखों में ख्वाब लिए बैठी थी वो
                                               " बेटी थी वो "

                           ना कोई तर्क जिनका उन बातों को सेहती थी वो
                                              " बेटी थी वो "

                                           
 ये ज़ालिम समाज बेहरे भी और आंख के होते अंधे हैं ,
 खुद का ईमान भी बेच केहते अपने तो धंधे हैं |
    पर उन धंधों में बर्कत भी जो देती थी जो ,
                   " बेटी थी वो "

                 
                 डर है, पाबंदियों के डर से पैड़ों में - बेड़िया ना कोई पड़ जाये,
                       कब कहाॅं इंसान जैसा - पिछे भेड़िया ना कोई पड़ जाये |
                                             ऑंखों में अश्क लिये - लौटी घर को पर
                                               इक लफ़्ज़ भी ना केहती थी वो
                                                          " बेटी थी वो "

            " फिर आई रात कयामत इक दिन "

जीन ख़्वाब भरे ऑंखों को देख - सूबह बाप को था- सूकून मिला,
 हुई रात काली  उन ऑंखों से - बाप को बेहता खून मीला |
 राम-राम केहने वालों - सीता खून से लथपत - लेटी थी वो

                   " बेटी थी वो "      💔
  -Ritu Raj।

©Ritu Raj #Kolkata
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Ritu Raj

Black Friday फरीयाद़ खुदा़ की हो जैसे - दिखती है मुझे आशिकी तेरी,
सबर ना पुछो हाल-ए-दिल  की मेरे - दे ख़बर तू मुझे आज की तेरी |

वो जो मंदिर में थी - दूपट्टे में तू ,
लाल बिंदी में दिखी मुझे रस्ते में तू |

सावन में नाचती जैसे कोई मोर - इस दिल को नचाए सादगी तेरी ||

         - Ritu Raj

©Ritu Raj #BlackDay
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Ritu Raj

Black Friday फरीयाद़ खुदा़ की हो जैसे - दिखती है मुझे आशिकी तेरी,
सबर ना पुछो हाल-ए-दिल  की मेरे - दे ख़बर तू मुझे आज की तेरी |

वो जो मंदिर में थी - दूपट्टे में तू ,
लाल बिंदी में दिखी मुझे रस्ते में तू |

सावन में नाचती जैसे कोई मोर - इस दिल को नचाए सादगी तेरी ||

         - Ritu Raj

©Ritu Raj #BlackDay
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Ritu Raj

White कुछ मैं कहूं - कुछ तुम कहो ,
खामोशी में भी - कुछ तो कहो |
आज चांद भी है कहीं खो गई ,
कहो जान-ऐ-जाॅं - तुम खुश तो हो  ?

      - Ritu Raj

©Ritu Raj #flowers
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Ritu Raj

बैठा हुॅं लगाए आश - अपनी तू खबर दे दे ,
चूनर की - छाॅंव में अपनी तू - थोड़ी जगह दे दे |

लगी है धुॅंध ऑंखों में दिन भी अब - रात लगती है ,
मेरी साॅंसें तू छिन ले या फिर - जीने की वजह दे दे || 

- Ritu Raj

©Ritu Raj
      Wajah se de

Wajah se de #शायरी

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Ritu Raj

बैठा हुॅं लगाए आश - अपनी तू खबर दे दे ,
चूनर की - छाॅंव में अपनी तू - थोड़ी जगह दे दे |

लगी है धुॅंध ऑंखों में दिन भी अब - रात लगती है ,
मेरी साॅंसें तू छिन ले या फिर - जीने की वजह दे दे || 

- Ritu Raj

©Ritu Raj     Wajah se de

Wajah se de #शायरी

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Ritu Raj

2008- से ऐसी - हुॅं सूनाता जो कहानी है,
लिखता हुॅं मैं - पर उनकी जुबानी है |
खो़या ईकब़ाल को उन्होंने जैसे जन्नत खोया,
सबको सम्भाल लीख दी - आग पर जैसे पानी है ||

                                                                                            थी हालात़ बिखड़ी -  रूह मज़बूर था ,
                                                                          घर चलाने 600 से - जल जाता उनका खून था |
                                                                                     कायनात़ ने फिर ऐसी - रहम़त दिखाई,
                                                                     जो था उनका जूनून वो- बन गया अब सूकून था ||

संभालने को घर भूल - गई तबियत़ अंग वो,
चोटें लगी - खो बैठी ऑंखें रंग वो |
लाख काॅंटे सा दर्द़ उन्होंने - खुद ही था सह लीया,
पहुॅंची फिर घर रख - जुबाॅं पे  नाम बजरंग वो ||

                                                                                               सब भूल बैठी - हो गई बेहोश वो ,
                                                                                      जैसी ढुॅंढ़ती हो - माॅं की ही आगोश वो |
                                                                                                मौत़ को भी मात़ देकर लौटी थी,
                                                                       थी माॅं की दुआ जो - करती थी सज़दा रोज वो  ||

अपनों को देख रोते - हुए ऑंखें नम उनके,
जैसे एक साथ आये हो - सभी मीलने ग़म उनके |
फिर भी ना टूटी वो - पत्थर जैसी लड़की थी,
छलांग मारी ऐसी - उनके रूके कदम नहीं ||

                                                                         जि़न्दा दिल लड़की है - जीती अपनी ख़्वाब वो,
                                                                           देती मुस्कूराहट से  - रक़िबों को जवाब वो |
                                                                                      होगा कोई शहर का भी बादशाह,
                                                               खुद ही से  - खुद ही में - है पाक़ सीरत़ से नवाब़ वो ||

" मेहनत है की वो - फिर  मीली जो कर्मा है,
जो खुद ही - टूट कर समेट जाये - ऑंचल शर्मा है " 
                                                                                ☺️   By-  Ritu Raj 🙏
                                                                             ( Your Obedient Student )

©Ritu Raj
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Ritu Raj

जो हुआ सबसे अलग और - खुद के संग हुॅं मैं,
तो दुनीयाॅं कहती है अब बेरंग हुॅं मैं |
 
हारने पर मेरे जिसने खिर खाई थी,
वो क्या जाने बेचारे - खुद ही जंग हुॅं मैं ||

गुमनाम खंज़र भी मुझे किसने मारा,
बेनाम चेहरों से देखो तंग हुॅं मैं |

बेनकाब़ जो हुए थे लश़्कर गीरने पर मेरे,
लश़्कर भी निकले अपने ही - अब भी दंग हुॅं मैं ||

- Ritu Raj

©Ritu Raj #truecolors
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