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kavivinitbadsiwa3537
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KAVI VINIT BADSIWAL

जिंदगी में सितारों से लीजिए सबक, हर किसी को नहीं दिखती इनकी चमक।।🧡

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KAVI VINIT BADSIWAL

पैदा हुई जब घर में एक लड़की माथा पकड़ सब बैठ गए,
लड़का होता कपड़े मिलते बोल बूआ फूफा सब रूठ गए।।

भाई गया इंग्लिश मीडियम,उनको ना सरकारी भी नसीब हुई,
बहन किसको कोसेगी क्या वो इतनी बदनसीब हुई।।

बड़ी हुई जब वो उससे कॉलेज ने मुंह मोड़ लिया,
लड़की थी बस इसलिए ही शिक्षा ने नाता तोड लिया।।

जब भी अपनी इच्छा रखती,वो पराया  धन कहलाती थी,
ससुराल जाकर पूरी करना मां उसको बहलाती थी।।

जब वो सत्रह पार हुई,
शादी के लिए लाचार हुई,
वो बार बार गिड़गिड़ाई थी,कुछ तो सोचो मेरी भी न सोच सको तो भाई सी।।

ना सुनी किसी ने एक क्योंकि वो परिवार का एक बोझ थी,
तू लड़की नही तू लड़का होती सुनती ये सब वो रोज थी। 

सुसराल गई तो सास ने भी उसका भी भ्रम  उतार दिया,
पराए घर की लड़की है तू  ऐसा ताना मार दिया।।

©KAVI VINIT BADSIWAL #kanya #Massageoftheday
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KAVI VINIT BADSIWAL

कोरोना के कहर से सारा विश्व ये बोल रहा,
पर क्यों आम आदमी इसे जज़्बातों में है तोल रहा।।

कोरोना का ये कहर आया था वुहान से,
महामारी बन उभर रहा है अब हर एक जुबान से।।

आधा विश्व इससे मर रहा है,
और आधा इससे डर रहा है।।

सरकार उठा रही है ठोस कदम,
क्यों ना कुछ दिन तक हम घर में रहे हरदम।।

बन रहे है देश में कर्फ्यू के हालात,
जनता अब भी संभल जाओ दूर रख के जज्बात।।

समझना होगा हमें कोरोना का डर,
क्योंकि बहुत जानलेवा है इसका तीसरा स्तर।।

क्यों ना अपने अपनो को हम सब एक बात कहें,
क्यों ना कुछ दिन हम सब घर पर ही रहे।।

हम सब सख्ती से कर्फ्यू का पालन करे,
एकांत में रहकर कोरोना को भारत से चलता करे।।

कवि विनित बड़सीवाल #कोरोना एक महामारी

#कोरोना एक महामारी #poem

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KAVI VINIT BADSIWAL

कोरोना के कहर से अस्त व्यस्त हुआ जन जीवन,
घरों में कैद हुआ मानव,जंतु कर रहे विचरण।।

करे हम सब मिलकर कोरोना की ऐसी रोगथाम,
अपने खतरनाक मनसूबे को वो ना दे पाए अंजाम ।

हर घंटे में हम अपने हाथों को धो लेते है,
क्यों ना कुछ दिन घर पर हम जी भर कर सो लेते है।।

हम बना ले कुछ दिन सभी से सामाजिक दूरी,
ताकि बाद में यह न बन पाए हमारी मजबूरी।।

ना करे हम घर की लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन,
कुछ दिन खुद से ही बना ले अपना बंधन।।

कुछ दिन घर से ही करे प्रभु का वंदन,
कुछ दिन अपना घर और अपना चंदन।।

कोरोना के चलते सरकार ने किया बंद का ऐलान,
हम सब भी देशभक्त बनकर करे इसका सम्मान।।

कोरोना की प्रबलता से हम न बने अनजान,
घर पर ही रहने में है परिवार का कल्याण।।

कवि विनित बड़सीवाल #कोरोना को हराना

#कोरोना को हराना #poem

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KAVI VINIT BADSIWAL

जो मिट गई अभी वो याद बाकी है,
जो टूट गई अभी वो सांस बाकी है,
जो थम गई अभी वो रात बाकी है,
जो पूरा ना हो सका अभी वो हमारा साथ बाकी है।।

कुछ यादें कभी बनती बिगड़ती है,
कभी पैरो तले कुचली जाती कभी सिर आंखों पर चढ़ती है,
कभी दिल का अमूल्य हिस्सा तो कभी दिल के किसी कोने में सड़ती है,
ये यादे है साहब कभी बनती कभी बिगड़ती है।।

सख्त आंखों से भी पानी बहा दे वो तेरी याद है,
कठोर हदय को पिघला दे जैसे प्रेम की बरसात है,
मस्तक में चलती जैसे सबसे लंबी रात है,
क्योंकि सख्त आंखों को भी बहा दे वो तेरी मेरी याद है।।

हमारी अधूरी पड़ी वो बात बाकी है,
हमारे वो दिलों को जोड़ते हाथ बाकी है,
तेरी मेरी एक होती प्रेम की जात बाकी है,
क्योंकि जो मिट गई अभी वो रात बाकी है।।

कवि विनित बड़सीवाल #जो मिट गई वो याद

#जो मिट गई वो याद #कविता

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KAVI VINIT BADSIWAL

आज फिर एक महिला उन हैवानों के सामने चिल्लाई होगी,
तुम्हारे घर में भी औरत है यह भी याद दिलाई होगी।।1।।

क्यों हम सब यह कृत्य देख मौन हो जाते हैं,
सरकारों को दोष देकर फिर चैन की नींद सो जाते है।।2।।

अकेली औरत को अवसर मानकर तुम चलती हुई को छेड़ते हो,
तुम्हारी बहन को कोई देख भी ले तो उसकी खाल को उधेड़ते हो।।3।।

बलात्कार को वो कपड़ों का दोष बताते हैं,
अरे साड़ी के पल्लू में कहीं अटक गई वो सांसें हैं।।4।।

पीड़िता की चीखें गूंज रही उन सत्ता के गलियारों में,
लाज उसे क्या आई होगी जो नाबालिक है अखबारों में।।5।।

पर कब तक हम यूं मोमबत्तियां जलाएंगे,
 उन हैवानों को जलाओ तो बलात्कार हि बंद हो जाएंगे।।6।।

अपने घर के आंगन से तुम अकेली औरत को बचाना सीखो,
तुम्हें देख वो डर ना जाए वह मानव धर्म निभाना सीखो।।7।।


कवि विनित बड़सीवाल #बलात्कार एक अमानवीय कृत्य

#बलात्कार एक अमानवीय कृत्य #कविता

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KAVI VINIT BADSIWAL

धुंध-धुएं के मिश्रण से बरस रहा यह कहर है,
प्रकृति का दोष क्या ये तो मानवता का जहर है।।1।।

पटाखों के धुएं से जल रहा है यह शहर,
मानवता विनाश की ओर चल रही निरंतर आठों पहर।।2।।

सरकार को दोष देता है हर मानव लाचार है,
नियमों के विरुद्ध जाता हर मानव समझदार है।।3।।

धीरे-धीरे खड़े हुए कचरे के पहाड़,
हरी-भरी जमीन हो गई दिन-प्रतिदिन उजाड़।।4।।

प्रदूषण से शहर में सांस लेना दूर्भर है,
मानवता तो समझदार है वह किस पर निर्भर है।।5।।

नियमों की धज्जियां उड़ाते हम चौड़े होते जाते हैं,
प्रकृति के प्रकोप में हम सरकार का हाथ बताते हैं।।6।।

धरती पर मानवता अपना एकाधिकार समझ चुका,
पर प्रकृति के विनाश का दरबार भी है सज चुका।।7।।

एक दूसरे पर आरोप लगाकर बच रही सरकार है,
बेजुबान जीव इस तुच्छ मानवता से लाचार है।।8।।

पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से जीवो के जीवन में अंधकार है,
संभल जाओ मानवता उनका भी धरती पर बराबर का अधिकार है।।9।।


कवि विनित बड़सीवाल #प्रदूषण: मानवता का ज़हर

#प्रदूषण: मानवता का ज़हर

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KAVI VINIT BADSIWAL

असफलता के समन्दर में,
विकृत मानवीय सोच।
कर्म किया कुछ नहीं,
क़िस्मत को देते दोष।।1।।

क़िस्मत के बल पर सफलता मिलती,
ऐसी रखी सोच तुमने।
मेहनत न करके भी,
क़िस्मत को दिया दोष तुमने।।2।।

क़िस्मत के कारण तुम्हारे मन में आ गया भ्रम,
क़िस्मत कि अधीनता में भूल गए करना तुम कर्म।।3।।

अभिनेता बनने कि लालसा में,
तुम समय को कर रहे बर्बाद।
इस विकट भयंकर स्थिति में,
कैसे क़िस्मत करे तुम्हें आबाद।।4।।

कर्महीनता से तुमने हि बर्बाद किया स्वजीवन को,
क़िस्मत को दोष देकर समझा लिया चंचल मन को।।5।।

सफलता की सीढ़ी पर चढ़ने की रखते हो तुम चेष्ठा,
किन्तु भूल गए हो मित्र तुम्हें बनना होगा श्रेष्ठ।।6।।

मेहनत रूपी मित्र कि सौगंध खा ले आज हम,
अपनी किस्मत ख़ुद से लिखने का करते हैं आगाज़ हम।।7।। #मेहनत या किस्मत

#मेहनत या किस्मत #कविता

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KAVI VINIT BADSIWAL

आज याद आती है मुझे रानी मेरे बचपन की,
वो सपना थी मेरा,वो प्यार थी मेरे लड़कपन की।।1।।

जब मेरे दोस्त मुझे उसके नाम से चिढ़ाते थे,
दिल के आंतरिक तार आपस में टकराते थे।।2।।

उसके लिए मेरे दिल में ढ़ेर सारी बातें थी,
शायद वो भी मुझे देखती हि जाती थी।।3।।

जब मैंने उसको पहली बार देखा था,
मुझे महसूस हुआ एक हवा का झोंका था।।4।।

जब वो मुझसे अप्रत्यक्ष वार्ता करती थी,
शायद वो भी मुझसे बातें करने से डरती थी।।5।।

वो मुझसे नज़रें मिलाने से कतराती थी,
पर मन हि मन मुझे देख मुस्काती थी।।6।।

ये किस्सा है एक छोटी कक्षा का,
मुझे जुनून था उसकी आत्मरक्षा का।।7।।

शायद उसके और मेरे प्रेम का इतना हि था सार,
मुस्काती-सी, इतराती थी वो मेरे बचपन का प्यार।।8।। #वो मेरे बचपन का प्यार

वो मेरे बचपन का प्यार #कविता

4 Love

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KAVI VINIT BADSIWAL

डुब रहा है जीवन जिनका परीक्षाओं के समन्दर में,
फंस गए हैं मानों जैसे प्रतियोगिताओं के बवंडर में।।1।।

हिम्मत जैसे हार रहें वो प्रतियोगी बाजारों में,
होड़ मची है आपस में कि आना है अखबारों में।।2।।

किसी को कोई परवाह नहीं कि वो कितने धंटे पढ़ता है,
इज्जत तेरी उतनी ही जितना तु  आगे बढ़ता है।।3।।

प्रतियोगिता के इस दौर में पैसे में बिकती शिक्षा है,
मेहनत अब जरूरी नहीं व्यापार हि अब दीक्षा है।।4।।

परीक्षाओं में असफलता से टुट जाते हैं हम दिल से,
धीरे धीरे पता नहीं कब दूर हुए मंजिल से।।5।।

मेहनत रुपी मरहम लगाओ इस टुटे हुए दिल पर,
सफलता तुमको पहुंचा देगी उस हारी हुई मंजिल पर।।6।। #मेंहनत का महरम

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KAVI VINIT BADSIWAL

तेरे आने से जीवन में हुई हलचल को मैं पन्ने पर उतार चुका हूं,
असल में मेरे इस दिल कि गहराई को भी मैं भाप चुका हूं।।1।।

मेरा दिल अब तुम्हें अच्छे से जानने लगा है,
ये खुद को तुम्हारा ही मानने लगा है।।2।।

मेरा दिल जमाने को भी तुम्हारा ही राग अलापता है,
कैसे समझाऊं इसको कि ये सब बस एक ख्वाब-सा है।।3।।

मेरा ये ज़िद्दी दिल तुमसे कुछ इस तरह आकर्षित है,
मानों प्रकृति कि बाकी चीजें इसके लिए प्रतिकर्षित है।।4।।

तुम्हारा नाम सुनते ही यह इस तरह हों जाता है शिथिल,
मानों खुद में ही सिध्दांत बनाता कैसे सकती हो इसको तुम मिल।।5।।

कभी कभी ये खुद कि हि गहराइयों में खो जाता है,
और खुद हि खुद में भावुक भी हो जाता है।।6।।

 जिस दिन ये तेरे प्रेम के समुद्र कि लहरों को सह नहीं पाता है,
उस दिन मेरा ये ज़िद्दी दिल फिर कवि बन जाता है।।7।। #अनदेखा प्रेम #भाग 8 #आखिरी अध्याय

6 Love

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