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vnviren5287
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(VरेN) Viren

रिश्ता यूँ निभाया ज़ख़्मों ने हो गई आदत ग़म सहने की। रहता तो हूँ मैं दिल्ली में मगर ख़्वाहिश है दिलों में रहने की। 🌹VरेN🌹

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(VरेN) Viren

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(VरेN) Viren

याद करने का तो,
बस यही है साहब,
ज्यादा वक़्त के लिए,
भूल जाओ 
तो साँसें भी बुरा,
 मान जाती है, 
हम तो फिर इंसान हैं।
🌹VरेN🌹 #Morning
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(VरेN) Viren

#Labour_Day मुश्किल तमाम ज़िन्दगी में बादस्तूर है।
मजदूर, मजदूर दिवस पे भी मजबूर है।

ख़्वाहिश तमाम देखो हैं काँच की बनी।
हर ख़्वाब हो चुका अब तो चकनाचूर है।

ज़िन्दगी है ख़ास बस रोटी की तलाश।
पापी पेट का होना भी साहब कुसूर है।

सफ़र बहुत है लम्बा मुश्किल से भरा।
हैं रास्ते पथरीले और मंज़िल भी दूर है।

क़िस्मत बड़ी काली, खाली रही थाली।
खाना भी कहाँ 'वीरेन' मिला भरपूर हैं।
🌹VरेN🌹
@alfaz_e_viren #Labour_Day
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(VरेN) Viren

ये हैं नन्हे-नन्हे प्यारे बच्चे।
कहना मानते हैं सारे बच्चे।

कोरोना से ख़ुदको बचाते।
गलती से ना बाहर जाते।
घर में रहते ना शोर मचाते।

हाथ धोते, मुँह को ढकते।
घर में खेल, मन को भरते।
दूर से ही सब बातें करते।

भला-बुरा बच्चे जानते हैं।
बड़ों का कहना मानते हैं।
🌹VरेN🌹

10 Love

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(VरेN) Viren

करनी है अगर 'वीरेन' मेरे ग़मों से मुलाक़ात करो तुम।

मगर कतरों की नहीं मुझसे समन्दर की बात करो तुम।
🌹VरेN🌹
@alfaz_e_viren

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(VरेN) Viren

🌹Part-5 Final *वक़्त*🌹
ये ज़र्रे को आफ़ताब बना देता है,
पहाड़ को धूल में मिला देता है,
ये समन्दर को भी सुखा देता है,
मुरझाए फूल भी खिला देता है

अब तू बता इसने तोड़ा आख़िर,
जहां में किसका अभिमान नहीं।
इस समय से बढ़कर तो 'वीरेन',
दुनिया में कोई भी बलवान नहीं।
इसके इशारे पे निकलता है चाँद,
और सूरज भी तो ढलता जाता हैं।
*वक़्त* हाथ से निकलता जाता है।
कहाँ क़ाबू में किसी के आता है।
*वक़्त* हाथ से निकलता जाता है।
🌹VरेN🌹
@alfaz_e_viren

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(VरेN) Viren

🌹🌹Part-4 *वक़्त*🌹🌹
इसको हल्का समझने की भूल,
हो गई थी सिकन्दर महान से।
तमाम ताक़त के बावजूद भी वो,
चला ही गया आख़िर जान से।

अगर रखना चाहता है वज़ूद में,
कभी भी ये किसी भी इंसान को।
ले आता पल में मौत के मुँह से,
ये निकालकर उसकी जान को।
ना रुके आना-जाना किसी का।
इंसान तो हाथ मलता जाता है।
*वक़्त* हाथ से निकलता जाता है।

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(VरेN) Viren

🌹🌹Part-3 *वक़्त*🌹🌹
हवा कुछ ऐसी ये चला देता है,
पत्थर-दिल को पिघला देता है।
हर बार कहाँ सुकून भला देता है।
ये तो अश्क़ों से भी जला देता है।

कभी नमक तो कभी मिर्च-सा,
कभी गुड की भेली हो जाता है।
वक़्त बदले तो राजा भोज से भी,
बेहतर इक गंगू तेली हो जाता है।
कहीं दिल को ये देता है सुकून,
कहीं निग़ाहों में खलता जाता है।
*वक़्त* हाथ से निकलता जाता है।

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(VरेN) Viren

🌹🌹Part-2 *वक़्त*🌹🌹
एक छत के नीचे रहते हुए भी,
ये ज़िन्दगी अधूरी बना देता है।
बिन देखे, बिन मुलाक़ात के भी,
दिल में मोब्बत पूरी जगा देता है। 

अपनों के बीच दूरी ला देता है,
ग़ैरों को भी अपना बना देता है।
खुली आँखों से जो कुछ देखो,
ये उसे भी सपना बना देता है।
ग़म को ख़ुशी, ख़ुशी को ग़म में,
ये तो हर पल बदलता जाता है।
*वक़्त* हाथ से निकलता जाता है।

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(VरेN) Viren

🌹🌹Part-1 *वक़्त*🌹🌹
कहाँ क़ाबू में किसी के आता है।
*वक़्त* हाथ से निकलता जाता है।

झुक ही जाते हैं इसके सामने तो,
बड़े-बड़े शख़्स भी इस ज़माने में।
नही लगाता है ये ज़रा-सी भी देर,
किसी भी राजा को रंक बनाने में। 

गलती अगर जो हो जाए तुमसे,
ये देता नहीं है सुधरने का मौक़ा।
समझता नहीं ये किसी को कुछ, 
ये वक़्त तो दे ही जाता है धोखा।
रुकता नहीं कभी रोके किसी के,
पहिया समय का चलता जाता है।
*वक़्त* हाथ से निकलता जाता है।

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