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bablukumar7648
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Bablu Kumar

Veterinarian

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Bablu Kumar

हमने हर दफ़ा हर बार रखा,
नाम कितनी बार उसका,
जुबाँ के उसपार रखा...!

वो मिलने भी आए,
तो रात अमावस की थी..,
आसमान ने चाँद अपना,
पर्दे के उसपार रखा..!!

©Bablu Kumar #Seating
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Bablu Kumar

मेरी हर इक शाम जो,
एक घड़ी भर को तू हो जाये..!

इस मुसलसल रात को,
उम्र भर का फ़िर सुकून हो जाये...!

©Bablu Kumar #Pinnacle
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Bablu Kumar

तुमसे मुलाकात के..,
अब वो ख्वाब पूरे हो न सकेंगे..!

हम इतने अधूरे हो चुके...,
कि फ़िर पूरे हो न सकेंगे..!!

इस शहर के लोग पूछेंगे..?

जब मेरे हिज्र की कहानियां..!

मुस्कुरा देंगे मगर...
यक़ीनन बयां फ़िर कर न सकेंगे...!!

©Bablu Kumar #writing
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Bablu Kumar

बिछड़ कर ताउम्र भर ना पायेंगे....!
खाली हो चुके मकान....घर फ़िर हो ना पायेंगे
मर चुके थे......ये हम भी किनकी की याद में..,
टूटे हुए फूल फ़िर कभी जुड़ ना पायेंगे...!!

©Bablu Kumar #waiting
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Bablu Kumar

ऐ जिंदगी बता तू किस भंवर में है....
कोई मंजिलें ना जाने....कि हम किस सफर में हैं....!

इक तो ये नींद...जो मेरे आँखों में नहीं......
उस पर ये कितने सपने..अधूरे मेरे जहन में हैं....!!

सुनो तो....ये दिन क्या कुछ कहता है.....
कि डूबते सूरज की उम्मीदें....चाँदनी की रोशनी से हैं....!!!

©Bablu Kumar #Goodevening
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Bablu Kumar

मैं लिखता रहा....,
शब्द वो जो मुझसे सुनाए ना गए....!

लौट गए......, दिन के उजाले...
तो जुगनुओं से भी चेहरे छुपाये ना गए...!!

अब हम बेज़ुबानों की....,भला कौन सुनेगा...?
यहाँ जुबाँ वालो से दर्द........,अपने सुनाए ना गए...!!

©Bablu Kumar #bestfriends
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Bablu Kumar

ये रात,
कि ये रात कितनी दिवानी है....!

सितारों ने चंद बातें,
कुछ यूं कही हमसे पुरानी है...!!

जब चलने लगे हम...भुलाने को,
दिन के उजाले..!

रातों ने मुस्कुराकर कहा,
चाँद के नज़ारे अब भी वही पुराने हैं...!!

©Bablu Kumar #BookLife
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Bablu Kumar

अब हम वक्त से क्या फरमाइशें.....
किस तरह से..दुआ मांगे...?

कुछ पहर ठहर यहाँ...,
कि ये शाम..ढलने कि दुआ मांगे..!

जब हिज्र की रातें....
दिन के उजाले ही लाए...!

लोग दरिया में डूबकर....,
समन्दरो कि दुआ माँगे..!!

©Bablu Kumar #Love
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Bablu Kumar

कुछ-एक पल....,मैं खुद से मिल कर आता हूँ...!

तुम फ़िर किसी और दिन...,
मेरे ख्याल में आना..!!

ये सर्द रातें....,जब धुन्ध के सहारे काट लूँ..!

ए-चांद तुम फ़िर किसी और दिन...,
मेरे आसमान में आना..!!

लफ्ज और खामोशी तो...,एक साथ नहीं रहते....!

तुम फ़िर किसी रोज़ इश्क़ बनकर....,
मेरे लबों में आना....!!

इन सूखे दरख्तों से....,तुम्हारा क्या है कोई वास्ता..?

तुम मुस्कराते हुए....,फूल बनकर 
फ़िर एक बार मेरी ग़ज़ल में आना...!!

©Bablu Kumar #Moon
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Bablu Kumar

जब वो बादल कभी गरजते होंगे....!
तब दिन के उजाले भी...अंधेरों से लिपटते होंगे...!!

शायद तलाश थी...दूर जा चुके सुहाने दिनों कि..!
तभी तो जुगनू रोशनी लिए..रात भर भटकते होंगे.!!

©Bablu Kumar #Thoughts
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