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rudrapratapsingh7114
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Rudra Pratap Singh

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Rudra Pratap Singh

मुझे घर बनाने; घर से दूर निकलना पड़ा,
और गिरते-गिरते कई बार सम्हलना पड़ा।

हारा हिम्मत; टूटा हौसला कई बार, बेशक!
“कुछ दूर और!” कह कर बस चलना पड़ा।

थक कर चूर; जब सोया कभी इत्मीनान से,
नींद आई नहीं पूरी रात; बस करवट बदलना पड़ा।

याद आती रही मां, बाप से दूर होना खलता रहा,
मत पूछो, अपनों से दूर हो कितना मचलना पड़ा।

और गिरते-गिरते कई बार सम्हलना पड़ा।

©Rudra Pratap Singh
  मुझे घर बनाने घर से दूर निकालना पड़ा 
#घर  #होली #Festival #holi

मुझे घर बनाने घर से दूर निकालना पड़ा #घर #होली #Festival #Holi #Poetry

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Rudra Pratap Singh

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Rudra Pratap Singh

#OpenPoetry भूल जाने का हुनर मुझको सिखाते जाअो। 
जा रहे हो, तो सभी नक़्श मिटाते जाओ। 
चलो रस्मन ही सही, मुड़ के मुझे देख तो लो;
तोड़ते तोड़ते ताल्लुक़ को निभाते जाओ।

                  ©anonymous #OpenPoetry
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Rudra Pratap Singh

#OpenPoetry एक अरसा गुज़रा, उसके गुज़रे हुए,
जो गुज़रा वो जमाना अजीब था।

लाख कोशिशें की उसको भूलने की,
हर बार उसका याद आना अजीब था।

बिन बोले कुछ उसका आना ज़िंदगी में,
बिन कहे यूँ चले जाना अजीब था।

मुड़ कर देखना उसका बार-बार,
देख कर मुस्कराना अजीब था।

© रुद्र प्रताप सिंह #OpenPoetry
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Rudra Pratap Singh

तुम गंगाधर, तुम नीलकंठ
तुम भोले-शंकर, शिव-शंभु।
तुम महाकाल, तुम महा-रुद्र;
तुम आदि, तुम्हीं हो अंत प्रभु।

तुम कालजयी, तुम काल-पुरुष;
तुम ही मेरे संसार, प्रभु। 
हो मानवता के पोषक तुम,
हम सब के तारणहार, प्रभु। 

-रुद्र प्रताप सिंह
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Rudra Pratap Singh

अब मेरी कोई ज़िंदगी ही नहीं
अब भी तुम मेरी ज़िंदगी हो क्या #Life
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Rudra Pratap Singh

बड़ा दर्द था उन नज़दीकियों में,
ये दूरियाँ बेहद ज़रूरी थीं। #indianapp
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Rudra Pratap Singh

तू ख़ुद तो मुद्दतों बाद आता है,
क्या कहूँ कितना याद आता है।

-रुद्र प्रताप सिंह #cigarette
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Rudra Pratap Singh

आबादी वीरान हो जाएगी,
शहर सुनसान हो जाएगा,
धरती श्मशान हो जाएगी, 
और रक्त-रंजित आसमान हो जाएगा।
जिस बुरे दौर से गुज़र रहा,
ये दौर अपने
कि मरेगी इंसानियत,
और पत्थर-दिल इंसान हो जाएगा

-रुद्र प्रताप सिंह #MurderOfHumanity
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Rudra Pratap Singh

Goodbye बड़ी बद-सुलुकी की उसने इश्क़ में;
हमने तो सज़ा भी उसे तेहज़ीब में दी है।

-रुद्र प्रताप सिंह #goodbye
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