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kumardinesh3555
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Kumar Dinesh

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Kumar Dinesh

एक गीत...

नेह के अनुबंध का इक गीत लिखना चाहता है
ये हृदय हर साँस पर अब प्रीत लिखना चाहता है
द्वार की दहलीज से लौटी
प्रतीक्षित कामनाएं,
मन के मंदिर में समाहित
कुछ अधूरी याचनाएं

एक मधुर अहसास का नवगीत लिखना चाहता है
ये हृदय हर साँस पर अब प्रीत लिखना चाहता है

कई जन्मों से अधूरी
आस लेकर जी रहे हैं,
तृप्त जो धड़कन करे वो
प्यास लेकर जी रहे हैं,

हार कर खुदको मिले जो वो जीत लिखना चाहता है
ये हृदय हर साँस पर अब प्रीत लिखना चाहता है

ले रही अंगड़ाईयाँ अब
चाह की परिकल्पनाएं,
वारने का मन किसी पर
प्रेम की सब सर्जनायें,

प्राण एकाकी ये अब मनमीत लिखना चाहता है
ये हृदय हर साँस पर अब प्रीत लिखना चाहता है

©Kumar Dinesh
  #Hriday
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Kumar Dinesh

दश्त किनारे,इश्क़ पुकारें और कहें...ये तुम ही हो
हर मरहम का घाव लगालें और कहें... ये तुम ही हो

सबनें क्या क्या रूप गढ़े हैं... तेरी हुस्न-बयानी में
हम दरिया से चाँद निकालें और कहें... ये तुम ही हो

जितने इश्क़ कहें हो सबनें और सुने हों जितने भी
सबकी इक तस्वीर बना लें और कहें... ये तुम ही हो

दुनिया की फुलवारी में..जो सबसे सुंदर तितली हो
उस तितली का हुस्न सँवारें और कहें.. ये तुम ही हो

जिस चिड़िया ने पिंजरा तोड़ा..इश्क़ किया आज़ाद हुई
उस चिड़िया के पंख निहारें और कहें.. ये तुम ही हो

©Kumar Dinesh
  #brokenbond
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Kumar Dinesh

ज़मीं,फिर दर्द का ये सायबाँ...कोई नहीं देगा
तुझे ऐसा कुशादा आसमाँ... कोई नहीं देगा

अभी ज़िंदा हैं,हम पर ख़त्म कर ले...इम्तिहाँ सारे
हमारे बाद कोई इम्तिहाँ... कोई नहीं देगा

जो प्यासे हो तो अपने साथ रक्खो...अपने बादल भी
ये दुनिया है,विरासत में कुँआ... कोई नहीं देगा

हमारी ज़िंदगी, बेवा दुल्हन...भीगी हुई लकड़ी
जलेंगे चुपके चुपके सब,धुँआ... कोई नहीं देगा

सायबाँ =शरण
कुशादा = विस्तृत

©Kumar Dinesh
  #Chalachal
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Kumar Dinesh

हमें मिली ही नहीं यार...ये सहूलत भी
रही अधूरी तुझे भूलने की... हसरत भी

सितारा आंखों का..मैं भी कभी रहा हूँ मगर
मैं उस ज़माने में...लोगों की था ज़रूरत भी

हमारी ज़ात कि हम...दुख पे उफ़ नहीं बोले
हमारे अपनों ने... बरती नहीं मुरव्वत भी

हमारे दुख में दिलासा... जो देने आए थे
रखे थे पाँव में...जाने की कोई उजलत भी

किसी के वास्ते जीना हमारा... लाज़िम है
सो रोज़ मरने की... डाली गई है आदत भी

हमें उजाड़ने वाला मिला तो... हँसने लगा
दिखा तो सकता था... थोड़ी बहुत नदामत भी 

फ़क़त शज़र से नहीं गिरते...ज़र्द पत्ते यहां
हमारे घर ने निभायी है...ये रिवायत भी

ज़ात = व्यक्तित्व  मुरव्वत =नर्मी/लिहाज
उजलत =जल्दबाजी   नदामत=पश्चाताप
शज़र= पेड़   ज़र्द =पीले पत्ते

©Kumar Dinesh
  #Wochaand
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Kumar Dinesh

ज़रूरत के तकाज़े में...सहारे टूट जाते हैं
सभी धागे तालुक्क के...हमारे टूट जाते हैं

तमाशे खूब करता है... भरी दुनिया में जादूगर
मगर जब आंख मिचती है...तो सारे टूट जाते हैं

हक़ीक़त हो के गिरता है... मेरा डर सामने मेरे
दुआ की सोचता हूँ तो... सितारे टूट जाते हैं

वफ़ा के आईने में देर तक... कोई नहीं रहता
मैं जितने अक़्स रचता हूँ... वो सारे टूट जाते हैं

किसी जाते को तकते हैं.. मुकम्मल ख़्वाब आंखों से
फिर उसके हिज़्र के मारे...बिचारे टूट जाते हैं

पतंगों का उफ़क़ छूना... गज़ब ढाता है चरखी पर
हवा जब साथ देती है.. हजारे टूट जाते हैं

कभी खोकर मुकम्मल हूँ.. कभी पाकर भी खाली हूँ
नफ़े आधे-अधूरे हैं... ख़सारे टूट जाते हैं

उफ़क़= क्षितिज   ख़सारे= नुकसान

©Kumar Dinesh
  #chaand
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Kumar Dinesh

तेरी हर शै से ख़ुद को अब तलक...मंसूब रखता हूँ
तुझे मैं दिल में अपने आज भी...महबूब रखता हूँ

मुझे मालूम है मुझसे..किसे कितनी मुहब्बत है
मैं कहता कुछ नहीं लेकिन.. निग़ाहें खूब रखता हूँ

किसी भी काम के मेरे नहीं हो तुम..मगर फिर भी
तुम्हें मैं दोस्तों में आज भी...महसूब रखता हूँ

किसी को भी अभी तक ये..भनक पड़ने नहीं दी है
मैं इन आँखों को आखिर किसलिए..मरतूब रखता हूँ

वही अच्छे को अच्छा हूँ.. बुरे को बुरा अब भी
मैं अपना आज भी पहले सा ही..उसलूब रखता हूँ
महसूब = शामिल
मरतूब= गीला
उसलूब=उसूल

©Kumar Dinesh
  #Sukha
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Kumar Dinesh

जग न बोले तो भला मेरी बला से
तुम न बोले तो लगा पतझर सा जग...
हर दिशा रंगीन,मौसम फ़ाग वाला
आचरण डूबे हुए अनुराग वाला,
स्वर लहरियाँ नेह के वातावरण की
उर व्यथाओं की व्यथा के त्याग वाला,
यदि न पहुंची प्यार की मधु-गंध तुम तक
व्यर्थ है मेरे लिए त्यौंहार सा जग,
जग न बोले तो भला मेरी बला से.....
एक बादल सा कहीं ज्यूँ फूटता हो
ज्यूँ कहीं कोई स्वजन फिर रूठता हो,
छूटता हो प्यार का पल्लू कहीं पर
या कहीं अनुबंध कोई टूटता हो,
तुम कहो कुछ तो,ध्वनित संसार हो ये
चुप रहो तो शोकमय उद्गार सा जग,
जग न बोले तो भला मेरी बला से
तुम न बोले तो लगा पतझर सा जग..

©Kumar Dinesh
  #BehtiHawaa
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Kumar Dinesh

गुज़रते वक़्त की आहट को...टाल देता है
ये वो लम्हा है जो... सदियों को चाल देता है

असर किसी की दुआ का ये... हक़ में है मेरे
कि डूबती हुई कश्ती को...उछाल देता है

सुपुर्द करता है  शोलों को...डायरी मेरी
वो इस तरह  मेरे फ़न को..कमाल देता है

हवा की है कोई साज़िश... या बागबां का कसूर
कि खिलते फूल से ख़ुशबू को...निकाल देता है

ये होशियारी भी देखी है.. हमनें बादल की
नदी की प्यास समंदर पे...टाल देता है

ये बात अलग कि अब कोई..रस्म-ओ-राह नहीं
मगर वफ़ा की वो मेरी...मिसाल देता है

रस्म-ओ-राह = मेलजोल

©Kumar Dinesh
  #Butterfly
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Kumar Dinesh

उदास लोगों की एक दुनिया अगर बनेगी कभी कहीं तो
ख़ुदा की नेमत से ग़म हैं इतने कि हम वहां के ख़ुदा बनेंगे

जो बख्शेगा वो फिर से हमें ज़िंदगी तो कसम है तुम्हारी
जो अब हैं उससे यूँ हटके इंसा हम कुछ ज़ुदा बनेंगे

©Kumar Dinesh
  #Parchhai
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Kumar Dinesh

इतना दिल में ज़र्फ़ नहीं था
जितने दिल पे ग़म गुज़रे

कितना कुछ हमसे गुज़रा है
कितने कुछ से हम गुज़रे
ज़र्फ़=सहनशीलता

©Kumar Dinesh
  #Butterfly
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