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pratibhaagra5258
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pratibha

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pratibha

मेरे कुछ काम आए लफ्ज़ 
पास बैठे मुस्कुराए कुछ लफ्ज़
कभी खुल के बोले 
कभी लरजाए लफ्ज़
जब न मिली दर्द को जगह
कागज पर उतर आए लफ्ज़

©pratibha
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pratibha

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pratibha

मेरे रास्ते अक्सर ठहर क्यों जाते हैं
कदम ठिठक कर क्यों रह जाते हैं 
बन्द हवाओं की घुटन काफी न थी
चलती है तो सांसों के हिसाब बिगड़ जाते हैं 
कोशिशों के कामयाब होने के इंतजार में
दिन और रात के फर्क खत्म हो जाते हैं
सुबह को शाम करता है शाम को रात
सफर अपना कुछ इस तरह किए जाते हैं
न मायूसी रही ,और न ही मसर्रत की आदत
दुनिया में रह कर, दुनिया से दूर हुए जाते हैं
कुछ अचानक,कुछ आहिस्ता कुछ मुस्तकिल
इसी तरह से वक्त के मौसम गुजर जाते हैं

©pratibha
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pratibha

#Khayaal
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pratibha

इन  सेहराओ में किसने आग लगाई
फिजाओ में हर तरफ खुश्की छाई 
सूखे होठ कुछ इस कदर
कि आंसू पी कर प्यास बुझाई

©pratibha
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pratibha

जिंदगी का दूसरा नाम क्या होगा!
धड़कन होगा या तड़पन होगा
याद होगा या फरियाद होगा
सुबह होगा या शाम होगा
खुशी होगी या गम होगा
जिंदगी का दूसरा नाम क्या होगा
बचपन,जवानी या बुढ़ापा होगा
गर्मी की तपन या सर्दी की ठिठुरन होगा
बसंती हवा होगा या रिमझिम बरसात होगा
एक उपमा नहीं इस जीवन की
आती जाती सांसों को पलपल बदलना होगा
जिंदगी का दूसरा.....

©pratibha
  #नाम
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pratibha

#ए_ज़िंदगी जिंदगी
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pratibha

एक सफर ऐसा भी
जो अपने साथ जिया
जो अपने साथ किया
कभी आमने सामने बैठे अपने
और कभी मुंह फेर लिया
कभी बहुत सी बातें की
कभी चुपचाप गुजार दिया
एक सफर ऐसा भी
चले कभी जब कदम मिला
कटा फिर सफर खूब भला
हुआ कभी यू भी अक्सर
मन से मन जब नही मिला
एक सफर ऐसा भी...

©pratibha
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pratibha

किस किस तरह से जिदंगी करवट बदलती है
धीरे से दस्तक देती है देखो तारीख बदलती है

कब क्या , कब कौन,  कब कैसे  बदलता है
जैसे नजारा बदलता है  वैसे नजर बदलती है

©pratibha
  #तारीख
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pratibha

चाँद सितारे, मौसम सब अपने सफर पर है
धीरे ही सही,बात अपनी भी बढ़ चली है
आशाएं बहुत भटकी निराशा के जंगल मे
बमुश्किल कोई तो राह निकल चली है
दिन की धूप से शाम भी पिघल चुकी 
लौट आओ मुसाफिर कि रात हो चली है
हवा में अफवाहें है या अफवाहों की हवा
फ़िज़ा तो अब जहरीली हो चली है

©pratibha
  सफर
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