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harendramishra3446
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Harendra Mishra

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Harendra Mishra

ऐ जिंदगी 
तुझसे नाराज तो नहीं 
हैरान परेशान जरूर हूं 
और हाँ! तेरे सवाल! 
इतने मासूम भी नहीं हैं

©Harendra Mishra
  zindagi
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Harendra Mishra

मेरे कुछ हिस्से हैं जो यूँ तो अलग थलग हैं मुझसे
मगर खुद में पूरे हैं, देखना कुछ तुम्हारे पास होंगे
कभी दिए थे हमनें इक दूसरे को संजो कर प्यार से
यादों के वो टुकड़े अब सूखे पत्तों से हो गए होंगे
पता नहीं उन हिस्सों का तुमने क्या किया होगा
क्या तुम अब भी कभी कभी बात करते हो उनसे? 
या बस कहीं पड़े हैं किसी डायरी में कोने पर
सच कहूं तो कुछ यादों के टुकड़े, सूखे गुलाब, पत्ते
मैने भी संभाल रखे हैं किसका कौन सा है पता नहीं
यूं तो उनसे मुद्दतों बात नहीं होती मगर कभी कभी
अचानक कुछ खोइ चीजें ढूंढ ने की जद्दोजहद में
सामने आ जाते हैं तो मैं बहुत पीछे चला जाता हूँ
हाल चाल पूछ लेता हूँ, उनकी धूल साफ करता हूं 
उन्हे निहारता हूं और वापस रख देता हूं संभाल कर 
अलमारी के एक खाने में मेरी तेरी यादों के किस्से
पुराने खत, डायरियां, कार्ड, कैसेट, कलम, किताबें
ये भी अनोखी दौलत है अगर महसूस कर सको तो

©Harendra Mishra #FriendshipDay
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Harendra Mishra

बिकते है सब यहाँ कभी न कभी 
कीमत सब की एक सी नहीं होती 
जिन्हे दौलत से खरीदना मुश्किल हो 
अक्सर जज्बातों से लूट लिए जाते हैं

©Harendra Mishra #bestfrnds
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Harendra Mishra

दरिया भी हो सकता हूँ
किनारा भी हो सकता हूँ
बड़ी कशमकश में हूँ 
ठहर जाऊँ कि बह जाऊं

©Harendra Mishra
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Harendra Mishra

किस से पूछें पता ही नहीं

©Harendra Mishra
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Harendra Mishra

हमेशा कोई जीता भी तो नहीं
जीतने का लुत्फ़ लेना आसान है मगर... 
हारने का मज़ा जो लेले वो तो हारा ही नहीं

©Harendra Mishra
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Harendra Mishra

वज़ूद के लिए इक आग चाहिए
बाहर लपटें भले ऊंची ना हों
मगर भीतर तपते ख्वाब चाहिए 
सर्द मौसम में निगाहे-ज़माने में
कोई गम नहीं के हम राख  होते हों
बस इक सुलगुती सी चिंगारी राख में 
छोटी ही सही मगर बड़ी आस समेटे
बुलंद हौसले लहराती बिंदास चाहिए
चिंगारी शोला बनेगी ये एहसास चाहिए
वज़ूद के लिए बस इक आग चाहिए

©Harendra Mishra #passion
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Harendra Mishra

ये कशमकश ये फासले बढ़ेंगे अभी और भी 
बवंडर है हवा का रुख बदलेगा अभी और भी 
ये कांटे रास्तों से आसानी से कम नहीं होंगे 
अभी तो झूठ का काफिला बस शुरू हुआ है 
सच के दुश्मन हजार मिलेंगे अभी और भी 
मुफ्त में बेतहाशा बांटते फिरते झूठी किस्मतें 
रहबर के लिबास में रहजन मिलेंगे अभी और भी 
नकली सुनहरे ख्वाब असली जरूरतमंदों को दिखा कर
जहन पे गर्द डालने वाले मिलेंगे अभी और भी 
सौदेबाजी भरपूर होगी चुनाव का बाजार गर्म है
गैरत न बेचना किसी से कुछ भी मुफ्त ना लेना 
आज मुफ्त हाथ में रेशमी डोरियां दे कर उन्हीं से
कल तुम्हारे हाथ बांधने वाले मिलेंगे अभी और भी

©Harendra Mishra #SunSet
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Harendra Mishra

मरहले हज़ार, किस किस को और कहाँ तक़ ढोया जाए 
रोज़मर्रा की कशमकश में जिदंगी की कुछ यूं किया जाए
जो कुछ लम्हें सुकून के महसूस हो जाए गर दिन में कभी
उन्हें कमाई में बरकत के तौर पे बही में लिख लिया जाए 
जो ठोकरें मिली उनको सबक के खाते में चढ़ा दिया जाए 
और बाकी सब कुछ जो गुजर रहा है वक्त के साथ साथ 
रोज इक परचे पे कामों की फेहरिश्त सा लिख लिया जाए 
रोज़ निपटा के सब कुछ, परचे को फाड़ के फेंक दिया जाए
और रोज़ बस दो घड़ी सोने से पहले बही खाता देखा जाए 
यूं ही जिंदगी को रोज़ बस इक रोज़ की मान के जिया जाए

©Harendra Mishra #Travelstories
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Harendra Mishra

वो गांव वो डगर, छोर पर डगर के
वो प्यारा सा आंगन वो छोटा सा घर 
इक वक़्त था वहाँ जमती थी महफिलें
हंसती थी जिंदगी और बसती थी रौनकें
अरमान मचले यूँ तरक्की के लिबास में
माला का मोह उपजा जीवन की प्यास में
छोड़ आये कुछ मोती धागों की आस में 
चुन चुन के मोतियोँ को धागों में पिरोया
माला जो बन गई तो बड़े गौर से निहारा
मोती कई जडे़ थे तालीम के, दौलत के
ओहदों के, शोहरत के, तरक्की के मगर
जो छोड़ आए थे हम वो ही सूकून के थे

©Harendra Mishra #hills
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