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महेश मुकदम

हम शब्द वंश के हरकारे सच कहना अपनी परमपरा हम उस कबीर की पीढ़ी है जो बाबर अकबर से नहीं डरा

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महेश मुकदम

हाँ मैं तिरंगा हूँ , मैं राष्ट्र भारत का स्वाभिमान हूँ ।
मेरे होने की भनक इतनी है कि मैं हिंदुस्तान हूँ ।।
बस मेरी चाह इतनी है कि मैं हर भारतीय के दिल मे सम्मान से रह सकू क्योंकि मुझे तिरंगा होने में अनेको बलिदान हुए तब जाके आपके हाथों तक आया हूँ ।
मैं क्रांतिकारियों की अस्मिता का प्रमाण हूँ ।
उस मान का अपमान ना हो यह धयान रहे ।
बस ये संज्ञान रहे मैं राष्ट्र का पूर्ण सम्मान हूँ।।
हाँ मैं तिरंगा हूँ , मैं राष्ट्र भारत का स्वाभिमान हूँ ।।

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाए ।
महेश मुकदम✍️✍️🙏🙏

©महेश मुकदम #RepublicDay
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महेश मुकदम

निश्छल जल की तरह हूं !  एकाकी पन से मस्तमौला अंदाज में बह रहा हूँ, 
कोई अच्छा कहे या कोई गंदा कहे फर्क नहीं पड़ता ।
 बस इतना यकीन है ! प्यास ना सही,  आग तो बुझाने के काम आ ही सकता हूँ ।
इसी दिशा में प्रयासरत हूँ !  ना पद की चाह, ना प्रतिष्ठा का लोभ,  निष्कपट, निस्वार्थ, निर्मोह समाज एवं राष्ट्र हित की ओर अग्रसर हूँ । 
यही मेरा राष्ट्र एवम समाज हितेषी धर्म है ।
इसका मुझे विश्वास है ! लक्ष्य प्राप्ति के साथ मेरे ना रहने के बाद मैं इसी नाम से पहचान से जाना जाऊंगा ।

महेश मुकदम✍️✍️

©महेश मुकदम #coldnights
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महेश मुकदम

सृष्टि के साथ भी 
सृष्टि के बाद भी 
सखी- साथी

©महेश मुकदम #withyou
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महेश मुकदम

चटक जाते है रिश्ते जो वो खुद कमजोर होते है 
किसी को तोड़ दे कोई किसी मे दम नही होता 
| जिंदा शायरी |
✍️✍️रवि यादव "रवि"

©महेश मुकदम #Morningvibes
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महेश मुकदम

Alone  नभ  में छाया घना अँधेरा 
जीवन  परछाई  से  हारा
कोन भरे मन का खलीपन
कौन  दिखाए  नया  सवेरा
किन्तु जब विश्वास लिखो तुम
मेरा मन गिरने ना देना ❗
मुझको अपरिचित मरने ना देना ‼️

कोहरे  सा  चिपक गया है
मेरी दृगों से लिपट गया है
मैं  हूँ  एक आवारा बादल 
मेरा  रस्ता  अटक गया है
किन्तु जब प्रयास लिखो तुम
मेरा कद गिरने न देना ❗
मुझको अपरिचित मरने ना देना ‼️

सिमट  गया  हूँ  खुद  ही ऐसे 
टूटे  वृक्ष  की  छाया  हो जैसे
मूर्छित  हो   चली  जिज्ञासाएं
मन व्याकुल है बस कुछ ऐसे 
किन्तु जब अहसाश लिखो तुम
मेरा वचन गिरने ना देना ❗
मुझको अपरिचित मरने ना देना ‼️

"महेश मुकदम"✍✍

©महेश मुकदम #alone
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महेश मुकदम

~अनकहे अल्फ़ाज़~
बड़ी प्यास थी❗ तेरे अंजुमन में आके,  मिटी ना मिटी
पर बुझ गई 
एक आस थी❗ दर  पे   देखे   तुझे,    मिटी  ना  मिटी 
पर बुझ गई 
मन  के   द्वार   हर    बार   मुहब्बत  का  सूरज  जलाएं  रखा हमने
वफ़ा खास थी❗हॄदय  में  उतरे तुम्हारे,  मिटी  ना मिटी
पर बुझ गई

            Mahesh Mukdam✍️✍️

©महेश मुकदम #WatchingSunset
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महेश मुकदम

अंतर्मन में थकान जब भी आती है 
जीवन की सच्चाई से रूबरू करा जाती है ।
मृत्यु के अलावा कुछ भी सत्य नहीं 
और अंतरात्मा एवं परमात्मा के बिना 
कोई सच जानता भी नहीं , दोंनो दीखते भी नहीं ।
मेरे मन मेरी आत्मा  से निकले कुछ शब्द कुछ पंक्तियाँ 
आत्मा  और परमात्मा दोनो को समर्पित । 
ये एक ऐसी कविता 
जो हर शब्द  के साथ दृगों को नम करती रही  । 

मुझे बेशक उम्मीद ना हो नाउम्मीद  नही होना तुम 
भावो का देकर अमर प्रेम शब्द श्रृँगार सजाना तुम
कह  देना जो कहना  हो तन  मन मे जो चलता हो
मुझ  छलिया पर  इतनी कृपा  और  दिखाना  तुम 

मुझसे बेशक दूर रहो  मेरी अंत्येष्टि में  आजाना तुम 
देकर कन्धा मेरे शव को अतीत मे आग लगाना तुम 
कर  देना  हिसाब  वही  मेरे किये  सब अपराधों का 
घृणित मेरी अपराध देह को केवल आग लगाना तुम 
जब  भष्म  हो  जाए  ये  नश्वर  मेरा तन 
ना रहे हवाओ तक मे कोई एक भी कण 
प्रेम की सरसैय्या संग मेरेमन कोभी अग्नि देजाना तुम

हर अस्थी  पर रहोगी  सुसज्जित एक-२ उठाना तुम 
दो  बूँद  गंगा जल  के बुझी राख  पर छिड़काना तूम 
पिण्ड दान की नहीं अभिलाषा पाप यूँही धुल जाएँगे 
सब अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने जाना  तुम
 मुझसे बेशक दूर रहो  मेरी अंत्येष्टि में  आजाना तुम 
"महेश मुकदम" ✍✍😢

©महेश मुकदम #Hopeless
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महेश मुकदम

गद्दारो  की  कमी  नही  है मेरे देश मे :
मगर  देशभक्ति   का  आश्मा  यही है ‼️
हाँ है  बड़े उलझे  शियासत के फैसले ;
मगर सुलझे  फैसलों की जमी यही है ‼️
महेश मुकदम✍️✍️

©महेश मुकदम #Dussehra
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महेश मुकदम

~अनकहे अल्फ़ाज़~
मन ही मन इतना व्याकुल हुआ इस विकलता में,
तुम  ही    तुम   बसे   हॄदय   की   अविरलता  में;
मन    मे    अनेको   प्रशन  प्रेम   पथ   पर   चले,
चिंता   मुझे   इश्क़  खो   ना  जाये  विफलता  में;
✍️महेश मुकदम

©महेश मुकदम #withyou
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महेश मुकदम

"मैं श्रेष्ठ हूँ" यह आत्मविश्वास है !❗
 लेकिन "सिर्फ मैं ही श्रेष्ठ हूँ" यह अहंकार है ‼️
~महेश मुकदम~✍️✍️ #Darknight
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