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ashutoshdubey1143
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Ashutosh Dubey,

persuing graduation from BHU जज़्बात का लेखा हूं, हालात को पिरोता हूं... जरूरत नहीं व्याख्यान की, लेखनी से ही व्याख्या देता हूं....

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Ashutosh Dubey,

चैनो अमन से रहते थे कभी, उस घर में अब मकड़ियों का जला है,
तबाह कर हमे अंधेरा दिया जिसने उसके घर में उजाला है,
गमें रंजिशे बया करे अब किस दर पे ए खुदा,
एक भरोसा था तू ही, अब ये कैसी मुसीबत में हमें डाला है।


                   ~आशुतोष दुबे #उम्मीद
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Ashutosh Dubey,

उन्हे फिर से हम याद आने लगे है,
जिनको भूलने में कई जमाने लगे है,
प्यार, वफ़ा का जिन्हें इल्म नहीं,
वो हमे इश्क के नाम पे आजमाने लगे है,
मेरे मिटने से जिनके घरों में रानईया थी आती,
वो ही लंबी उम्र की आजाने लगाने लगे है,
ऐतबार नहीं था जिन्हें मेरे होने से कभी,
रुक्सत ए लिबास को वो जलाने लगे हैं,
कल तलक जो मिटाने पे तुला था घरौंदा मेरा,
इत्तेफाकन वो ही आशियाना बनाने लगे हैं,
जिनके जुबां पे बसे थे खुलूस मेरे दर्मिया,
वो अपने बेवफ़ाई का पर्दा उठाने लगे हैं,
खुरेदा जब वादों के चोट ए निशां को हमने,
वो कब्र की मिट्टी तले वादों को दबाने लगे हैं,
उन्हें फिर से हम याद आने लगे है,
जिन्हे भूलने में कई जमाने लगे हैं।। 



                                                ~आशुतोष दुबे #कई जमाने लगे हैं

#कई जमाने लगे हैं

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Ashutosh Dubey,

झूठ की पिटारी बांध कर किसी के अंदर चाहत लाने से अच्छा है,
 सच बोलकर उसके दिल तोड़ देना....................

              ~आशुतोष दुबे
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Ashutosh Dubey,

वक्त तेरे चोट से दरिया भी काप जाती है,
जो बीत गया जाने दो वक्त लौटकर कब आती है?
मैं मिट्टी हूं मिट्टी में रहना मंजूर है मुझे,
पत्थर में पानी से  नमी भी कहां आती है ।
आंखो मे समंदर रख कर आरज़ू को बहा देंगे,
बाद मारने के ये बदन भी कहा साथ जाती है,
जो है बस यही तक है मेरे दोस्त,
ये जिंदगी भी कितनी झल्लाती है।
बदहवास बोझ लिए इस जिंदगी की कब तक जिए कोई,
चल बादलों में ढलने को घटा बुलाती है।।

                       
                                              ~आशुतोष दुबे #वक्त की चोट

#वक्त की चोट

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Ashutosh Dubey,

इंतेज़ार की आश में यूं ही दरख़्त पिघल जाएगा,
वक्त तेरे बदलने से फिर  एक मौसम बादल जाएगा,
अजी समंदर बड़े से बड़े लहरों को भी निगल जाती है,
आशु के मोती सिसे पर गिरे तो कैसे सम्भल पाएगा।।


                    ~आशुतोष दुबे

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Ashutosh Dubey,

जिसे मनाते रहो न अक्सर वही रूठ जाता है,
भोरसा जिसपे ज्यादा करो उन्हीं से टूट जाता है,
गर्दिश में तो सितारे भी आसमान छोड़ देते है,
नाउम्मीद करो जिस हिस्से से  दूर जाने की,
 यकीनन उसी का साथ छूट जाता है  ।।




                                                                     ~आशुतोष दुबे

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Ashutosh Dubey,

मुझे यक़ीन है कल तुम भी चली जाओगी, इतना करीब क्यूं आ रही हो,
पास रहकर समझा है रिश्तों के एहसास, यूं ही किस्तो में क्यूं मिटा रही हो,
हमें यकीनन भुला देना तुम भी, रेतों का महल यूं ही क्यूं बना रही हो,
या तो मुझे अपना लो या इश्तिहार करो, गैरतलब मुझे इतना क्यूं सता रही हो।।


                                       ~आशुतोष दुबे
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Ashutosh Dubey,

लोग अक्सर हमसे ही क्यूं रूठ जाया करते हैं,
बेवजह मुझे ही इतना क्यूं सताया करते हैं,
उन्हे शायद कदर नहीं उनके इस अहमियत,
सच बताए तो इस दर्द से हम भी टूट जाया करते हैं।।  


                                        
                           
                                              ~आशुतोष दुबे
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Ashutosh Dubey,

शीशे सी बदन उसकी , पल्लू में पिघल रही थी,
आज पहली दफा देखा एक चांद धूप में जल रही थी,





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Ashutosh Dubey,

जा रही हो? जाओ! मैं रोकूंगा नहीं ,ये तुम्हारी मर्जी है,
मगर ज़रा सुनो सम्भल कर रहना, ख़्याल रखना ये मेरी आखिरी अर्जी है.... 




                          ~आशुतोष दुबे
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