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akibkhan4573
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Akib

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Akib

जितना हो सकता था किया मैंने
दिल किसी को नहीं दिया मैंने

सोचने पर लगा ली पाबंदी
ख़ुद को ख़ुद में ही खा लिया मैंने

जो मेरे लम्स को तरसते थे
अब वो कहते हैं भेड़िया मैंने

मा'ज़रत .. ज़ख्मों अब तो माफ़ करो
पिछला मुश्किल से है सिया मैंने

उस नुजुमी ने सच ही बोला था
मरने को ज़हर ही पिया मैंने

वो जिसे सोचकर ही काँपे रूह
ऐसे लम्हात को जिया मैंने

©Akib Khan #Roses
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Akib

लिखते लिखते लिखना भी आ जाएगा
शे'र सुना है... कहना भी आ जाएगा

धीरे धीरे दरिया चलता जाएगा
फिर वो मिलन का रस्ता भी आ जाएगा

नए सुखनवर सोच रहे हैं शे'रों से
इक दिन जेब में पैसा भी आ जाएगा

©Akib Khan #शायरी 
Shadab Khan Maani ke Sukhan ABRAR  Arzooo Ehsaas"(ˈvamˌpī(ə)r)"Radio  

#leaf

शायरी Shadab Khan Maani ke Sukhan ABRAR Arzooo Ehsaas"(ˈvamˌpī(ə)r)"Radio leaf

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Akib

था खुद के वजूद से बेखबर लड़का
पगला गया है ये जानकर लड़का

 शाम ढले मिलने आने का वादा था
तकता रहा रस्ता सांझ भर लड़का 

गम ए फुरकत में बेतहाशा रोना चाहता था
चुप करा दिया उसे बोलकर लड़का

रोने का इख्तियार भी हासिल नहीं उसे
हैरत में पड़ गया है सोचकर लड़का

कर रहा है घर की पूरी ज़रूरतें
जी रहा अपने ख्वाब छोड़कर लड़का

जंत्री में लिखा है तो मान लिया गया
ज़िन्दगी में होगा नहीं कारगर लड़का

आज किसी ने प्यार से इसको देखा है
सोएगा नहीं अब ये रातभर लड़का

आए और जाने की ज़िद करने लग गए
 देख तो ले ज़रा आंख भर लड़का

ऐ खुदा! उसको मेरा बना देना
मिन्नतें करता है किस कदर लड़का

©Akib Khan #लड़का 

#Goodevening
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Akib

आओ कहीं मिलें ,मिलते हैं  कहीं।
तुम चाहो तो अपन ,चलते हैं  कहीं।।

ये भीड़ चारों ओर, क्यों घुमड़ रही है।
चलो बीराने में जाकर, संभलते हैं  कहीं।।

ज़ोर आज़माइश हम न कर सके।
अपनों से लड़कर लोग, चलते हैं कहीं।।

जो गए थे हमसे वादा ए वफा करके।
वो लोग आज भी, खलते हैं कहीं।।

जो लोग पक्के हो चुके हैं  टूट टूटकर।
उनके भी अश्क "आकिब" , निकलते हैं कहीं??

मुकम्मल न हो सके मगर ख़तम भी न हुए।
वो ख्वाब आज भी टहलते हैं कहीं ।।

हालातों की चोट खाए बैठे  हैं जो।
वो बच्चे खिलौनों से बहलते हैं कहीं??

रोज़ी हराम की तुमको मुबारक हो।
पैसे हराम के, फलते हैं कहीं??

©Akib Khan #darkness
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Akib

जो अपने हक के वास्ते खड़े न हो सकें ।
दिखते नहीं हैं पर हैं वो अपंग लोग।।

©Akib Khan #illuminate
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