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परिलोक

एक गुस्सा ही तो है जो इन्सान को अपने होना का यकीन दिलाता है वरना दुनिया आपका Existence आपके जीते जी दफना देती है

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परिलोक

कुछ उड़ानों से गिर कर हाँथ पाँव मल रहा हूँ,
मैं खुद अपने सुहाने ख्वाबों में पल रहा हूँ...

इस दोपहर की शाम शायद कभी होती होगी,
दोपहर सी जिंदगी में नंगे पाँव चल रहा हूँ...

- परिलोक

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परिलोक

ख़फ़ा और तुमसे रहूँगा नहीं अब
शिकायत भी कोई करूँगा नहीं अब

खुले जख्म या फिर छिले जिस्म मेरा 
किसी शर्त पे भी रूकूँगा नहीं अब 

अकेला शजर हूँ भले दश्त में मैं 
गिरूँ या कटूँ पर झुकूँगा नहीं अब

भले जोर कितना हवाएं लगा ले
सहर होने तक तो बुझूँगा नहीं अब 

घडी दो घडी बस रूको पास मेरे 
सुनो इससे ज्यादा कहूँगा नहीं अब 

नहीं आरजू अब शब-ए-वस्ल की भी
सितम हिज्र के भी सहूँगा नहीं अब 

जगह मिल गई परी दिल में अगर तो
जियूँ ना जियूँ पर मरूँगा नहीं अब

- परिलोक
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परिलोक

तुमसे इक दिन कहीं मिलेंगे हम
खर्च खुद को तभी करेंगे हम

धुप निकली है तेरी बातों की
आज छत पर पडे रहेंगे हम

किस ने ये रस्ते में उम्मीद रखी
इस से टकरा के गिर पडेंगे हम

आसमानों में घर नहीं होते
मर गए तो कहाँ रहेंगे हम

रोक लेंगे हमे तेरे आँसू 
ऐसे पानी पे क्या चलेंगे हम

- परिलोक

8 Love

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परिलोक

मैं कितने चेहरे पढा करूँ 
माँ तुझसा कोई मिलता ही नहीं.. 

हर लम्हें में इक हिसाब नज़र आता है, 
तेरा चेहरा ही इस जिंदगी की 
किताब नज़र आता है..!!

- परिलोक #mothers_day
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परिलोक

दर्द चरागों से मिला
 किताबों से नहीं...

बदन चाँद से जला 
आफताबों से नहीं..!!

8 Love

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परिलोक

Dil Shayari  मज़ाक़ सहना नहीं है हँसी नहीं करनी 
उदास रहने में कोई कमी नहीं करनी 

ये ज़िंदगी जो पुकारे तो शक सा होता है 
कहीं अभी तो मुझे ख़ुद-कुशी नहीं करनी 

गुनाह-ए-इश्क़ रिहा होते ही करेंगे फिर 
गवाह बनना नहीं मुख़बिरी नहीं करनी 

बड़े ही ग़ुस्से में ये कह के उस ने वस्ल किया 
मुझे तो तुम से कोई बात ही नहीं करनी 

- परिलोक

8 Love

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परिलोक

कधीतरी वाटतं पुरुन घ्यावे स्वतःला मातीमधे 
एखाद्या बीजाप्रमाणे,
आणि पुन्हा उगवावे निरागस रोपट्यासारखे !!
खरंच किती महाग करून ठेवलय...
आयुष्य, आपण उगाचच...!!
कितीतरी गाॅगल्स बदलून पाहिले 
पण रंगीत स्वप्न पडली नाहीत,
चांदणे फुकट मिळतं पण त्याची किंमत नाही,
आपलीच निर्थकता दाबत असते 
आपल्याच क्रयशक्तीला...!!!
आणि आपल्याला वाटत आपण
पुढे चाललोय परंतू, 
प्रत्येक क्षण आपल्याला ढकलत असतो
आपल्याच अपेक्षांच्या खोल काळोखात.. 
ज्याला अंत नसतोच कधी संपण्यासाठी
आपण संपलो तरी
आपण संपलो तरी.....

©️परिलोक ✍🏻 #footsteps
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परिलोक

नुक्स बहोत है माना मुझमें, 
पागल कोई दिवाना मुझमें 
आग लगी हो गली मोहल्ले,
मौसम हो शायराना मुझमें 

बाहर से हूँ मैं भीड़ का हिस्सा, 
अंदर एक जमाना मुझमें 
कलम उठाकर ढूँढ रहा हूँ, 
शक्स वो कहाँ पुराना मुझमें 

अक्स मेरा आईने के अंदर, 
बाहर कोई बेगाना मुझमें 
दरवाजे पर फूल है टाँगे, 
काटों का तहखाना मुझमें 

उमर गवाई सफर में परि, 
था जब मेरा ठिकाना मुझमें 

- परिलोक

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परिलोक

माझं मन...

जणू दवबिंदू...थंडीत कुडकुडणार्...उन्हात वाळणार
पायवाटेने चालणार्याच्या पायावर बसून दूरदूर जाणारं..
माझं मन...

जस् कोवळ्या उन्हात फुलं उमलणार...अन्
सायंकाळी पानांच्या कुशीत अलगद विसावणार..
माझं मन...

कधी वास्तवात तर कधी स्वप्नांत वावरणार 
जणू फुलपाखरूचं...स्वच्छंदी..बेधुंद..अस् 
माझं मन...

सर्वांमध्ये मिसळणारं...सर्वांना समावून घेणार..
कुणालाही आपलंस करणार..एकांतात हुंदके भरणार
माझं मन...

असंच वेड,
कुणालाही आपलंस वाटणार..
पण तिला मात्र न कळणार...
असंच...माझं मन...

- परिलोक #मन

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परिलोक

तुम्हें हुस्न पर दर सरस्त है 
मोहब्बत वोहब्बत बडा जानते हो 
तो फिर ये बताओ की तुम उसकी 
आँखों के बारे में क्या जानते हो 
ये इंजीनियरिंग प्लानिंग फलसफा वगैरा 
ये सब जानना भी अहम है 
पर जरा ये बताओ क्या तुम 
उसके घर का पता जानते हो...?

- परिलोक

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