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rajputanaayushsi9395
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Rajputana Ayush Singh Chauhan

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Rajputana Ayush Singh Chauhan

Unsplash  चलते रहो तुम चलते रहो,
.............................................................
चलते रहो तुम चलते रहो,
सदा फूलों कि तरह खिलते रहो,, 
सीने में आग ले आशाहीनता का परित्याग ले, 
कठिनाईओं को मलते रहो, 
चलते रहो तुम चलते रहो,
 सदा फूलों कि तरह.............।
मसलना चाहेगी तुम्हें ये दुनिया अपने राजनीति के पैरों से, 
पर तुम कर्म करते रहो मतलब न रखो किसी गैरों से,
 बनने के लिए खरा सोना तुम इम्तिहान कि आग में जलते रहो, 
चलते रहो तुम चलते रहो,
 सदा फूलों कि तरह.........।
गिरने से तुम डरो नहीं क्यूंकि रीति है ये सृष्टि का, 
ढल कर उगना फिर चमकना नियम है प्रकृति का,
 सूर्य कि तरह तुम फिर से उगो चाहे कितना भी ढलते रहो, 
चलते रहो तुम चलते रहो, 
सदा फूलों कि तरह.........। 
कोशिशें इक दिन तुम्हारी जरूर निखर जाएगी,
 तुम्हें तुम्हारी सफलता के सिखर तक पहुंचाएगी, 
जीवन में सदा तुम फूलते और फलते रहो,
 चलते रहो तुम चलते रहो,
 सदा फूलों कि तरह खिलते रहो।

©Rajputana Ayush Singh Chauhan #snow  Writer Abhishek Anand 96  Nîkîtã Guptā

#snow Writer Abhishek Anand 96 Nîkîtã Guptā #कविता

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Rajputana Ayush Singh Chauhan

उसके छलावे को इश्क़ समझकर हम इस कदर कुबूल कर बैठे थे,
कि आकर उसके झांसे में गैर तो गैर अपनो से भी भूल कर बैठे थे।

©Rajputana Ayush Singh Chauhan
  Writer Abhishek Anand 96

Writer Abhishek Anand 96 #शायरी

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Rajputana Ayush Singh Chauhan

जिन्होंने मेरे लिए सदा घर से बाहर जिया है, 
मुझे देकर खुशियाँ खुद सदा गम को पीया है,
जीवन के कठिन मार्ग पर मुझे चलना सदा सिखलाया है,
जींदगी के हर उद्देश के बारे में मुझे बतलाया है,
पिता का जीवन होता बड़ा कठीन है,
उनके जीवन में अवकाश का ना होता एक भी दिन है,
पिता की भूमिका हमारे जीवन के लिए विशेष है,
उनकी पूजा करने के लिए और स्टेटस लगाने के लिए  केवल एक दिन ही नहीं शेष  है , केवल एक दिन नहीं शेष है।

©Rajputana Ayush Singh Chauhan #FathersDay Writer Abhishek Anand 96

#FathersDay Writer Abhishek Anand 96

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Rajputana Ayush Singh Chauhan

अभिमान में चूर रावण यह कर रहा विचार है कि कुम्भकर्ण के‌ बल पर वह युद्ध जीत जाएगा ,
नर नहीं नारायण हैं स्वयं प्रभु‌ श्री‌ राम बात रावण को अब कौन‌ ये बताएगा ,

जगाया कुम्भकर्णको वो छः माह से सोया था जो ,

ज्यों हि कुम्भकर्ण‌ जग जायेगा विचारता है रावण की अब शत्रु पीछे भग जायेगा ,

परन्तु कुम्भकर्ण विद्वान था अपार उसको ज्ञान था ,
सत्य को वह जान गया , हरी को वह पहचान गया ,
कही  कुम्भकर्ण नें रावण से बात स्पष्ट हो गयी बुद्धि तुम्हारी भ्रष्ट ,
अरे जिस सीता को तुमंने छल से उठाया है, 
तुमने अपने काल को खुद से ही बुलाया है ,
जाकर श्री राम को सीता सौंप  दो  महा विध्वंश को रोक दो ,
लेकिन रावण एक ना सुना , अपने विनाश का जाल वो स्व यं बुना ,
कुम्भकर्ण भाई  के स्नेह में फँस गया, रिश्तों के दल-दल  में‌ धंस गया ,
ज्ञात है अब यह‌  कुम्भकर्ण को‌ की‌ कोई‌ ना‌ उसे बचा पाएगा ,
ना‌ मान‌ कर कुम्भकर्ण की बात को रावण बरा पछताएगा ,  रावण बरा पछताएगा ।

©Rajputana Ayush Singh Chauhan Writer Abhishek Anand 96

Writer Abhishek Anand 96

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