क्या कहूं अपने बारे में, कभी मैं धूप हूं, कभी छाया हूं कभी गली गली हूं, कभी मनचली हूं कभी रास नहीं आता, एक लफ्ज़ भी कभी बहुत बाते करने का मन होता है कभी मन चाहता ही नहीं एक कतरा भी कभी हर लम्हें संजोने का मन करता है कभी हंसती बहुत हूं, कभी खुल कर रोने का मन करता है कभी हूं मै कठोर इमारत सी, और कभी करती हूं ढेरो शरारत भी कभी कोई बहुत प्यारा लगता है, कभी सिर्फ एक हंसी नज़ारा लगता है कभी आंखों में एक समंदर बसता है कभी दिल रोता है और चेहरा हंसता है कभी फिक्र होती है हर एक बात की कभी बेपरवाह बहुत होती हूं, कभी समेटे रखती हूं हर पुरानी चीज अक्सर अपनी पसंदीदा चीज भी खो देती हूं
Rachna Paul
Rachna Paul
Rachna Paul
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