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saurabhdubey5766
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Saurabh Dubey

यायावर।।

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Saurabh Dubey

जब हम बहुत खुश हो रहे होते हैं,
ठीक उसी समय कहीं कोई दिल 
टूट रहा होता है।
प्रेम की अपरिमित और असीमित दुनिया में 
वह बिलकुल अकेला होता है।
वह रोता है चीखता है और पूछता है 
ऐसा मेरे साथ ही क्यों?
उस समय उसे कोई जवाब नही मिलता।
 प्रकृति ने उसके लिए ऐसी ही नियति रची है,
जिसे वह आगे समझेगा और उसे एहसास होगा 
जो हुआ अच्छा हुआ और जो होगा वह भी अच्छा  होगा।।
                  -सौरभ दुबे

©Saurabh Dubey #allalone
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Saurabh Dubey

वसुधा पर जब अत्याचारो का
घनघोर कुहासा था छाया, 
मुक्त कराने वसुधा को तब
माधव ने ली मानव काया।।
बालरूप में ही मोहन ने अपने चमत्कार दिखलाये थे,
पर अधर्मी उनकी माया अब तक समझ न पाये थे।
साक्षात् परमेश्वर को साधारण समझ रहे थे अभिमानी,
जो बंधनमुक्त है उसे बांधने की कर रहे थे नादानी।।
चला बाँधने दुर्योधन ईश्वर को
पर वह उनको छू न पाया,
मुक्त कराने वसुधा को तब
माधव ने ली मानव काया।१।

©Saurabh Dubey #DearKanha
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Saurabh Dubey

नाम ही जिनका लेने से
बन जाते सारे काम,
प्रेम,त्याग और तप की 
पुण्य स्मृति हैं मेरे राम।।
पिता के वचनों का जिसने हर दम ही मान बढ़ाया,
मर्यादाओं में रहना जग को राम ने है सिखाया।।
जिसने शबरी की श्रद्धा को था निज शीश पे धारा,
प्रेम घुले जूठे बेरो में राम ने निज अंतर था हारा ।।
जिनके पौरुष के आगे
नतमस्तक होते सारे धाम,
प्रेम,त्याग और तप की
पुण्य स्मृति हैं मेरे राम।१।
सिया-राम का प्रेम है गंगा जल सा पावन,
दोनों की जोड़ी जग में लगती सबसे मनभावन।
प्रेम में त्याग की नई परिभाषाएं राम थे नित गढ़ते,
पथ प्रदर्शित करती सीता और थे राम आगे बढ़ते।।
भव सागर को पार कराता 
है उनका ही नाम,
प्रेम,त्याग और तप की
पुण्य स्मृति हैं मेरे राम।२।
राम की पीड़ा राम ही जाने क्या जानेगा भौतिक जग,
लांछन देने वालों तुम न चल पाओगे राम के जैसा एक पग।
राम ने जीवन भर मानव को आदर्शों का पथ दिखलाया,
मानव से महामानव होने का मन्त्र राम ने है बतलाया।।
उनकी सुधियों में ही गुजरे 
अब मेरी हर एक शाम,
प्रेम,त्याग और तप की
पुण्य स्मृति हैं मेरे राम।३।

                  -सौरभ दुबे “संकल्प”
                    २३/०८/२०२१

©Saurabh Dubey #मेरे राम

#मेरे राम

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Saurabh Dubey

रास्ता कोई भी हो उसपर चलना हमे आता है,
तूफानों से कह दो जाकर लड़ना हमे आता है।।

लाख कोशिश कर ले जमाना हमे गिराने की,
मगर गिरने के बाद सम्भलना हमे आता है।।

गिला नही इसका की विरासत में कुछ मिला नही,
अपने हाथों से अपनी तकदीर बदलना हमे आता है।।

हम वो फूल नही जो बिन पानी मुरझा जाया करते हैं,
तपते मरुथल में भी नागफनी सा खिलना हमे आता है।।

ग़र मौत मेरी दुल्हन बनकर आये तो उससे कहूंगा मैं,
तेरी मोहब्बत में परवाने सा जलना  हमे आता है।।

                              -सौरभ दुबे "संकल्प"
                                ०९/०८/२०२१

©Saurabh Dubey #मोटिवेशनल_विचार
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Saurabh Dubey

एक मित्र होना चाहिए कर्ण और श्याम-सा,
जीवन हो जायेगा फिर पुण्य पावन धाम-सा।।
मित्रता की ढाल जिन्हें अपने आलिंगन से है ढाँकती,
जीवन में उसके फिर कभी कठिनाइयां न झांकती।
हो कितने भी विराट पर मित्र के आगे होना लघु,
जैसे केंवट की मित्रता को सर पर धारते थे प्रभू।१।
मित्रता के पथ पे तुम सदा चलना श्री राम-सा,
जीवन हो जायेगा फिर पुण्य पावन धाम-सा।।
                           -सौरभ दुबे "संकल्प"

©Saurabh Dubey #मित्रता_दिवस
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Saurabh Dubey

#KargilVijayDiwas   है नमन उन्हें जो करते मातृभूमि को अपना शीश दान,
लिख रहा हूँ आज मैं ऐसे, रणबांकुरों का शौर्य गान।।

माँ की लाज बचाने को खाई थी गोली छाती में,
लिखा हुआ था शौर्य उनका,उनकी अंतिम पाती में।
बह गई रक्त की बूंद-बूंद पर हिम्मत न हारी थी
कारगिल में भारत के बेटों ने तब बाजी मारी थी ।।
वीर सपूतों ने ही माँ भारती का बढ़ाया था मान,
लिख रहा हूँ आज मैं ऐसे, रणबांकुरों का शौर्य गान।१।

विजय दिवस मनता है उनकी स्मृतियों में हर साल,
मगर पूछने जाता नही अब कोई उनके घर का हाल।
कहाँ समय हैं जो नेता पोंछे आंसू उनके घरवालों का,
कविता पूछेगी उत्तर हरदम, दरबारों से इन्ही सवालों का।।
देना था हमे उन्हें जो वह मिला नही सम्मान,
लिख रहा हूँ आज मैं ऐसे,रणबांकुरों का शौर्य गान।२।
                                        
                                          -सौरभ दुबे “संकल्प’
                                             २५/०७/२०२१

©Saurabh Dubey #kargilvijaydiwas
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Saurabh Dubey

#नही बचाने आएंगे अब कृष्ण#
नही बचाने आएंगे अब कृष्ण,ध्रुपद सुताओं को चीर हरण से,
चंडी बन दुशासनों को मुक्त करो अब तुम जीवन और मरण से।।
समय हो चला है अब निज हाथों में शस्त्र उठाने को,
तोड़ो जंघा उनकी जो सोचे इसमें तुमको बिठाने को।
नही रही तुम शक्तिहीन अब,निकलो अपने आवरण से,
चंडी बन दुशासनों को मुक्त करो अब तुम जीवन और मरण से।।
रुदन और चित्कार से समस्या अब हल न हो पाएगी,
लिखो गाथा अपनी तलवार से जिसको दुनिया गाएगी।।
दुष्कर्मी का नाश करो अब तुम अपने निज प्रण से,
चंडी बन दुशासनों को मुक्त करो अब तुम जीवन और मरण से।।
नही रही अब अबला तुम,सबला बनकर वार करो,
थरथर कांपे शत्रु ऐसी अब रण में तुम हुँकार भरो।।।
नही लगेगा पाप तुम्हे अधर्मी के भक्षण से,
चंडी बन दुशासनों को मुक्त करो अब तुम जीवन और मरण से।।
       
                                             -सौरभ दुबे “संकल्प”
                                               १८/०७/२०२१

©Saurabh Dubey #नहीं बचाने आएंगे अब कृष्ण

#नहीं बचाने आएंगे अब कृष्ण

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Saurabh Dubey

#कर्ण#
त्याग,तप की प्रतिमूर्ति और था वह स्वाभिमानी,
जग में नही हुआ है फिर कर्ण सा कोई दानी।।
जन्म लेते ही राधेय को
आँचल मिला था जल का,
कहाँ पता था उत्तर देना 
होगा नियति के छल का।
सोचा उसने कुरु वंश को
अपना कौशल दिखलाऊँ,
निज शरासन से अपने शौर्य का,
परिचय जग को करवाऊं।।
मगर तभी सभा में 
एक आंधी सी आई,
योग्यता को निगल गयी,
जात-पात की खाई।।
उसी क्षण कर्ण ने कौन्तेय से प्रतिस्पर्धा थी ठानी,
जग में नही हुआ है फिर कर्ण सा कोई दानी।।
प्रतिस्पर्धा की चाह में वह
भटक रहा था वन में,
ज्वार सा उमड़ रहा था 
रक्त उसके तन में।।
अपने कौशल से उसने परशु को 
गुरुता करवायी थी धारण,
मन ही मन आनंदित थे दोनों
होने वाला था व्रत का पारण।।
पीड़ाओं पर विजय प्राप्त कर 
भी वह था हारा,
गुरु ने श्राप दिया रण में
भूलोगे ज्ञान सारा।।
गुरु को कर प्रणाम फिर उसने अपनी भूल मानी,
जग में नही हुआ है फिर कर्ण सा कोई दानी।।
दे रहे थे अर्घ्य सूर्यपुत्र 
पिता को जब जल से,
मांग लिया देवराज ने
कवच-कुंडल तब छल से।
देवराज ने यह सोच लिया
अब तो यह निर्बल है,
किन्तु सूर्यपुत्र का तेज 
बिन इनके भी और प्रबल है।।
बज उठी दुदुम्भी रण में 
सूर्यपुत्र कर रहे युद्ध की तैयारी,
कितने वर्षो बाद कौन्तेय 
वध की अब आई है बारी।
भीषण युद्ध की कालिमा अब दोनों ओर है छानी,
जग में नही हुआ है फिर कर्ण सा कोई दानी।।
फंसा गया अचानक रण में
जब सूर्यपुत्र का रथ,
केशव ने फिर दिखलाया पार्थ को 
वहीं विजय का पथ ।
असमंजस में थे पार्थ 
नियति के इस खेल से,
मन व्यथित था पार्थ का,
वास्तविकता के इस मेल से।।
संधान किया पार्थ ने फिर गांडीव का
और झोंक दिया अपना बल सारा,
इस प्रकार रण में कर्ण, 
गया भ्राता के हाथों मारा।।।
वर्षों बीत गए फिर भी अब तक न बदली कहानी,
जग में नही हुआ है फिर कर्ण सा कोई दानी।।
              -सौरभ दुबे "संकल्प"

©Saurabh Dubey ##कर्ण

#कर्ण

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Saurabh Dubey

त्याग,तप,करुणा और प्रेम से
करना होगा अपनी आत्मा को शुद्ध,
इसी प्रक्रिया से फिर मिलेंगे
धरती को गौतम बुद्ध।।
अपने कर्मो से जो बढ़ाते
हैं मानवता का मान,
वो भी पूजे जाते हैं वैसे
जैसे पूजे जाते भगवान।।
-सौरभ दुबे "संकल्प"

©Saurabh Dubey बुद्ध पूर्णिमा

बुद्ध पूर्णिमा

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Saurabh Dubey

#लंगड़ा कुत्ता#
आज पहाड़ी पर एक लंगड़े कुत्ते को देखा,
उसके पंजे कटे हुए थे।
मगर फिर भी वह मंजिल तक 
पहुचने के प्रयास में डटे हुए था।
इतने कठिन और मुश्किल हालात में भी
वह सिर्फ अपनी जिजीविषा के बल पर 
खड़ी पहाड़ियों को चुनौती दे रहा था।
और हम इंसान जरा सी तकलीफ और
दुःख क्या पड़ा तो उसका रोना लेकर बैठ जाते हैं।
वो बेजुबां किससे अपनी पीड़ा कहेगा
और किससे अपने दुखों का रोना रोएगा।
हमे सीखना चाहिए दुःख और तकलीफ में भी
आगे बढ़ने का साहस उस कुत्ते से,
हमे सीखना चाहिए मुश्किलों का 
दृढ़ता से सामना करना उस कुत्ते से।
                              -सौरभ दुबे “संकल्प”

©Saurabh Dubey #लंगड़ा कुत्ता
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