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वैभव बेख़बर

न शायर बने, ना मिली कोई शौहरत कटी उम्र सारी , ग़ज़ल लिखते लिखते

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वैभव बेख़बर

अपनी  हक़ीक़तों  को  छिपाते  कहाँ  कहाँ
हम ओढ़कर  लिबास  ये जाते   कहाँ  कहाँ

सर  को  मिली  तसल्ली  जो तकिया बना लिया
चादर   फटी   हुई  थी  बिछाते   कहाँ  कहाँ

उसने   किया   किनारा तो  मैंने भी  कर लिया
हर  बार   फ़र्ज़  हम ही   निभाते  कहाँ  कहाँ

मन्ज़िल  नहीं  फ़क़त मैंने  रस्ता  बदल  लिया
पत्थर   तेरी   डगर  के   उठाते   कहाँ  कहाँ

पैदा   करे  जो    नूर    वो   तरक़ीब  ढूंढ  ली
इस   दश्त   में   चराग़    जलाते   कहाँ  कहाँ

करनी थी  जिसकी बन्दगी  दिल  में बसा लिया
सर   अपना   बुतकदों  में  झुकाते  कहाँ  कहाँ।

©वैभव बेख़बर #Trees
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वैभव बेख़बर

अपनी  हक़ीक़तों  को  छिपाते  कहाँ  कहाँ
हम ओढ़कर  लिबास  ये जाते   कहाँ  कहाँ

सर  को  मिली  तसल्ली  जो तकिया बना लिया
चादर   फटी   हुई  थी  बिछाते   कहाँ  कहाँ

उसने   किया   किनारा तो  मैंने भी  कर लिया
हर  बार   फ़र्ज़  हम ही   निभाते  कहाँ  कहाँ

मन्ज़िल  नहीं  फ़क़त मैंने  रस्ता  बदल  लिया
पत्थर   तेरी   डगर  के   उठाते   कहाँ  कहाँ

पैदा   करे  जो    नूर    वो   तरक़ीब  ढूंढ  ली
इस   दश्त   में   चराग़    जलाते   कहाँ  कहाँ

करनी थी  जिसकी बन्दगी  दिल  में बसा लिया
सर   अपना   बुतकदों  में  झुकाते  कहाँ  कहाँ।

©वैभव बेख़बर #Trees
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वैभव बेख़बर

मुक्तक, वैभव बेख़बर

#BeatMusic

मुक्तक, वैभव बेख़बर #BeatMusic #शायरी

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वैभव बेख़बर

वैभव बेख़बर

#lovebeat

वैभव बेख़बर #lovebeat #शायरी

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वैभव बेख़बर

वैभव बेख़बर

#BeatMusic

वैभव बेख़बर #BeatMusic #शायरी

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वैभव बेख़बर

शायरी

#BeatMusic

शायरी #BeatMusic

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वैभव बेख़बर

ग़ज़ल,

वैभव बेख़बर

ग़ज़ल, वैभव बेख़बर #शायरी

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वैभव बेख़बर

ज़ख़्म  पर  मरहम  लगा  सकते नहीं
उसको  ऐसे   हम  भुला  सकते  नहीं

कह   रहे    पर्वत     उठाकर    लाएंगे
लोग   जो   पत्थर   उठा  सकते  नहीं

दोस्तों   से   ना   मिला   धोखा  अग़र
ख़ाक   में  दुश्मन  मिला  सकते  नहीं

बात   सब    अपनी    मनाना   चाहते
एक   वादा   जो    निभा  सकते   नहीं

दूसरों   का    क्यों   उठाने   चल   दिए
बोझ   जब   अपना  उठा   सकते  नहीं

साथ   चलना  सीख   लो  तुम  बेख़बर
वक़्त   पर    पहरे   लगा    सकते  नहीं।
 #reading
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वैभव बेख़बर

ज़ख़्म  पर  मरहम  लगा  सकते नहीं
उसको  ऐसे   हम  भुला  सकते  नहीं

कह   रहे    पर्वत     उठाकर    लाएंगे
लोग   जो   पत्थर   उठा  सकते  नहीं

दोस्तों   से   ना   मिला   धोखा  अग़र
ख़ाक   में  दुश्मन  मिला  सकते  नहीं

बात   सब    अपनी    मनाना   चाहते
एक   वादा   जो    निभा  सकते   नहीं

दूसरों   का    क्यों   उठाने   चल   दिए
बोझ   जब   अपना  उठा   सकते  नहीं

साथ   चलना  सीख   लो  तुम  बेख़बर
वक़्त   पर    पहरे   लगा    सकते  नहीं। #reading
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वैभव बेख़बर

मत पूछ दिल पर क्या गुज़री है
आज हम उसके  शहर से गुजरे #Star
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