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काव्यामृत कोष

अनुगच्छ प्रवाहं एक कदम साहित्य की ओर।

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काव्यामृत कोष

इसी कसक में वो तन्हा रहा, कि वो मेरा नही।
जो किसी और का होकर भी उसी का रहा।
Preeti_9220

©काव्यामृत कोष
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काव्यामृत कोष

ये किस्से हैं कहानी है मोहब्बत प्यार की बातें
सभी बातें पुरानी हैं मोहब्बत प्यार की बातें

मुझे मसरूफ रहने दो मेरी तन्हाई बेहतर है
फकत झूठी बयानी है मोहब्बत प्यार की बातें

कोई चौखट पे आकर के मुझे आवाज़ देता है
उसी की ही जुबानी है मोहब्बत प्यार की बातें

मैं रंजो गम से घायल हूँ, है छलनी दिल मेरा देखो
तुम्हें तो बस सिखानी है मोहब्बत प्यार की बातें

मेरे लब अब तलक घायल  किसी के नाम से देखो 
हँसी में ही छुपानी है मोहब्बत प्यार की बातें।
प्रीती एच प्रसाद

©काव्यामृत कोष
  #Problems
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काव्यामृत कोष

ये किस्से हैं कहानी है मोहब्बत प्यार की बातें
सभी बातें पुरानी हैं मोहब्बत प्यार की बातें

मुझे मसरूफ रहने दो मेरी तन्हाई बेहतर है
फकत झूठी बयानी है मोहब्बत प्यार की बातें

कोई चौखट पे आकर के मुझे आवाज़ देता है
उसी की ही जुबानी है मोहब्बत प्यार की बातें

मैं रंजो गम से घायल हूँ, है छलनी दिल मेरा देखो
तुम्हें तो बस सिखानी है मोहब्बत प्यार की बातें

मेरे लब अब तलक घायल  किसी के नाम से देखो 
हँसी में ही छुपानी है मोहब्बत प्यार की बातें।
प्रीती एच प्रसाद 💫

©काव्यामृत कोष
  #Flower
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काव्यामृत कोष

आँख नम और मुस्कराते हैं। 
लोग ऐसे भी दिन बिताते हैं।। 
जो है पिंजरे के ही विहग पूछो।
कैसे पिंजरे के बिन बिताते हैं।। 
पंख नाकाम साँस बेदम सी। 
जी ना पाते हैं मर ना पाते हैं।। 
आसमाँ भी लगे पराया सा।
उड़ ना पाते हैं घर ना पाते हैं।।
प्रीती एच प्रसाद 💫

©काव्यामृत कोष
  #alone
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काव्यामृत कोष

तुमको तुमसे मांगते इतना भी क्यूँ झुकते 
आँख पत्थर हो चुकी थी राह को तकते 
माना तुम बिन थे अधूरे और हृदय घायल 
पर प्रिये तुम ही बताओ कब तलक रुकते
प्रीती एच प्रसाद 💫

©काव्यामृत कोष
  #kavita #muktak
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काव्यामृत कोष

संबंधो की गझिन बुनाई
ग्रंथि भूरि हर सूत्र लगे हैं
एक सिरा सुलझा ना पाऊँ 
अन्य ताँत उलझे उलझे हैं 
कैसे बुनुँ प्रेम बंधन मैं 
गांठ सभी सुलझाऊँ कैसे?
अपनों को मैं पाऊँ कैसे?

मैं अनुदार दिखूँ किस कारण 
किया स्वयं को हर पल अर्पण 
शब्दों मे क्यूँ व्यक्त है करना 
भावों में बिखरा है कण कण
प्रश्नों का क्यों उत्तर दूँ मैं 
सबको ही बहलाऊँ कैसे?
गांठ सभी सुलझाऊँ कैसे? 
अपनों को मैं पाऊँ कैसे?

जो मुझमें दर्पण से बसते 
मुझ पर नहीं कसौटी कसते
नही कहकहा किए हार पर 
जीत में द्वेष के भाव ना भरते 
ऐसे में अपने की परिभाषा 
मात्र रक्त से लाऊँ कैसे? 
गांठ सभी सुलझाऊँ कैसे?
अपनों को मैं पाऊँ कैसे?
Preeti_9220

©काव्यामृत कोष
  #rishte #love #
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काव्यामृत कोष

कोई कब तक यहाँ रहेगा कहाँ? 
सबको आना है, सबको जाना है।
सबसे छूटेंगे, जो हैं बने अपने 
ज़िंदगी का कहाँ ठिकाना है?

बंद मुट्ठी भरे हुए सपने;
दौड़ का शोर मंजिलों की ललक;
स्तब्ध होकर तलाश मिथ्या इक; 
अंत मे हाथ इतना आना है।

ये जो अम्बर उदास बैठा है 
नेह अवनी से कर लिया इसने 
दंभ था छू सकेगा वो इसको, 
पर ना मिलना है, ना मिलाना है।

जन्म खुशियां बटोर लाती है; 
कितनी आशाओं के दिये रोशन। 
जिदंगी दौड़ती चली सरपट;
मौत को दौड़ जीत जाना है।
Preeti_9220

©काव्यामृत कोष
  #Time #preetikipoetry
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काव्यामृत कोष

प्रेम की भाषा बना वो प्यार बन बैठा  
बेवजह ही वो मेरा संसार बन बैठा
छ्द्म था या सत्य था ये जान पाई 
पर कहानी का मेरे किरदार बन बैठा
Preeti_9220

©काव्यामृत कोष
  #BahuBali
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काव्यामृत कोष

कविताएं 
उत्पन्न होती हैं 
राग, अनुराग और विराग से 
और ये उत्पन्न करती हैं 
चेतना ज्ञान को 
उसके जागने पर 
अमर हो जाता है 
व्यक्ति,भाव 
और अमर हो जाती हैं 
कवितायें......
प्रीती 💫

©काव्यामृत कोष
  #कविता

कविता

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काव्यामृत कोष

पग आहत अम्बक सागर से,
भग्नित अवतंस बनी आशायें, 
तिमिर अघोषित काल से ठहरा 
है विषाद का हर पल पहरा 
रुक कर ही पर चलना होगा 
जीवन मे रंग भरना होगा।

क्लेश अकथित, अभिभव मुखरित। 
संवाद हुए हों मौन से पूरित 
कुलन दबाकर हृदय ग्राम में 
नई उम्मीदें गढ़ना होगा
रुक कर ही पर चलना होगा
जीवन मे रंग भरना होगा।

एकाकी सा हारा - हारा 
गुम जाए कोई प्राण से प्यारा,
बन प्रदीप तब अंधियारे में 
औरों का तम हरना होगा 
रुक कर ही पर चलना होगा 
जीवन मे रंग भरना होगा।
प्रीती 💫

©काव्यामृत कोष
  #sadquote #preetikipoetry
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