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dineshbhopali8316
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दिनेश भोपाली

जिंदगी आज सारा मजा ले गयी खुशनुमा ख्वाब को वो हवा ले गयी

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दिनेश भोपाली

ग़ज़ल

2122 2122 2122 212

चूड़ियों की खनखनाहट सिसकियों में क़ैद हैं
ख़्वाहिशें मेरी सभी अब बेड़ियों में क़ैद हैं

हम तजुर्बे ज़िंदगी के क्या सुनायें आपको
ज़िंदगी की दास्तानें झुर्रियों में क़ैद हैं

हिचकियाँ आती रही हैं हिज्र की इन रातों में
उल्फ़तों की यादें मेरी हिचकियों में क़ैद हैं

ख़्वाब देखे आसमाँ के पर मुकम्मल ना हुऐ
ख़्वाब सारे वो अधूरे कोठियों में क़ैद हैं

हम ने ज़िम्मेदारियों में ख़ुद को खो के रख दिया
मस्तियाँ पर दोस्तों की यारियों में क़ैद हैं

©दिनेश भोपाली #walkalone
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दिनेश भोपाली

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©दिनेश भोपाली 
  #adventure
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दिनेश भोपाली

ग़ज़ल

212 212 212 212

अपने वादे से तू जो मुकर जायेगा
एक पल में नज़र से उतर जायेगा

अपनी मंज़िल की जिसको ख़बर तक नहीं
ले समंदर में कश्ती किधर जायेगा

ज़िंदगी क़ाफ़िलों संग बहती रही
वक़्त कर के अकेला गुज़र जायेगा

दिल उदासी भरा बात किस से करे
दर्द जज़्बात को ले बिखर जायेगा

देखते देखते  इक नमी आँखों में
आँखों में इक समंदर ठहर जायेगा

©दिनेश भोपाली #Gulaab
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दिनेश भोपाली

ज़िदगी की तुम मुहब्बत बस मुहब्बत और तुम
आज़माती है ज़रूरत फिर ज़रूरत और तुम

ज़िंदगी में रौशनी बन कर जो तुम आते नहीं
क्या हुई नज़र ए इनायत हर इनायत और तुम

तुम हमारे दर्द में भी इक शरारत कर गये
हो रही है अब शरारत है शरारत और तुम

बस लकीरों में लिखा है  नाम तेरा ज़िदगी 
मेरी क़िस्मत तुम ही क़िस्मत यार क़िस्मत और तुम 

प्यार का अपना मज़ा है प्यार कर के देखिए 
बस दिलों में  वाद ए उल्फ़त याद ए उल्फ़त और तुम

©दिनेश भोपाली
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दिनेश भोपाली

ज़माने के ग़मों को भी हमारा कर गया शायद
किनारा भी हमें लगता किनारा कर गया शायद

सुना है ज़ख़्म देने वाले होते हैं सदा अपने
लगा जो पीठ पर ख़ंजर इशारा कर गया शायद

ज़ुबाँ पर ज़हर है इतना सभी रिश्ते लगें फीके
सहारा भी मुझे अब बेसहारा कर गया शायद

बुज़ुर्गों ने मुहब्बत से बचा रक्खी मुहब्बत थी
मुहब्बत को भी नफ़रत से है खारा कर गया शायद

दिनेश आहिस्ता-आहिस्ता तसव्वुर में समा जाता 
हमारी ज़िंदगी को भी तुम्हारा कर गया शायद

©दिनेश भोपाली #Foggy
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दिनेश भोपाली

ग़ज़ल

212 212 212 212

अपने वादे से तू जो मुकर जायेगा
एक पल में नज़र से उतर जायेगा

अपनी मंज़िल की जिसको ख़बर तक नहीं
ले समंदर में कश्ती किधर जायेगा

ज़िंदगी क़ाफ़िलों संग बहती रही
वक़्त कर के अकेला गुज़र जायेगा

दिल उदासी भरा बात किस से करे
दर्द जज़्बात को ले बिखर जायेगा

देखते देखते  इक नमी आँखों में
आँखों में इक समंदर ठहर जायेगा

©दिनेश भोपाली
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दिनेश भोपाली

1222 1222 1222 1222

तेरा इज़हार नाज़ुक है तेरा इंकार नाज़ुक है
न कोई चोट लगती है तेरा हर वार नाज़ुक है

कभी आँखे दिखाती हो बनाती हो कभी बातें 
यूँ लहजा सख़्त रखती हो मगर तक़रार नाज़ुक है

शहद घोला है कानों में तेरे अल्फ़ाज़ ने हरदम
निगाहें तीर सीने पर चली तलवार नाज़ुक है

कभी घायल अदाओं से कभी ज़ुल्फों से घायल हूँ 
तेरे होठों की इस मुस्कान का हथियार नाज़ुक है

ख़फ़ा होना जुदा होना मुहब्बत की हैं ये रस्में 
ज़रा भी खींचना मत तुम मुहब्बत तार नाज़ुक है

©दिनेश भोपाली
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दिनेश भोपाली

*ग़ज़ल*

212 212 212 212

दर्द जितने थे मेरे सुहाने लगे
ज़ख़्म सारे मेरे मुस्कुराने लगे ( *मतला*) 

वो कहानी वो किस्से सुनाने लगे
मेरा क़िरदार मुझ को बताने लगे ( *हुस्नेमतला*) 

कश्ती लहरों से जब डगमगाने लगे
ऐसा समझो ख़ुदा आज़माने लगे ( *मत्ला-ए-सालिस*) 

दुश्मनी में जो ताले पुराने लगे
खोलने में मगर फिर ज़माने लगे ( *मत्ला-ए-राबे*) 

मशवरे मेरे उनको क्यों ताने लगे
यार अपने ही हमको सताने लगे ( *मत्ला-ए-खामिस*)

©दिनेश भोपाली #achievement
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दिनेश भोपाली

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दिनेश भोपाली

1212 1122 1212 22

बहस छिड़ी है ये कैसी तमाम होठों पर
हुआ है किसका बता कत्ले आम होंठों पर

कहाँ कहाँ से हैं गुजरे कहाँ ठिकाना मिला? 
कहीं ठहरते नहीं हैं मुकाम होठों पर

हमे पता है ज़माने की फिक्र करते हो
दबी दबी सी जुबां का सलाम होठों पर

दिवाने साँसे भी अपनी ठहर के लेते हैं
दिलों की धड़कनों का इंतिजाम होठों पर

दिनेश ये मेरा अक्सर सवाल रहता है
किसी ने क्यों है रखा इंतिकाम होठों पर

©दिनेश भोपाली #feelings
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