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aarav1181285873045
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aarav

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aarav

खलिश या बैचेनी
या किसी बात की अनहोनी,
क्यों होती है सजा मुकर्रर
शिद्दत से चाहने वालो की
कोई टूटकर चाहे 
सबकुछ भूलकर चाहे
क्यों होती है बेचैनी
नरम बातों की राहों पर
खलिश बयां करती है
कि कोना फिर से खाली हो गया
परिंदा खाली घरोंदा कर गया
किस्मत के लेखा जोखा को
साथ मे लेकर उड़ गया

©aarav
  #Path
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aarav

बड़ी गलती की
अपने दर्द से वाकिफ करवा कर
इस से तो अच्छा घुट लेता,
हर पल,
अपने अंदर की घुटन में,
सजा इख्तियार कर लेता
अंदर की तपन में,
वर्षो से अंदर दबाये बैठा था वो किस्से
उसको सुनाकर गम और बड़ा बैठा।
अफसोस है हर वो बात का
 बड़ी शिद्दत से रु ब रु करवा गया
अपने गमो का सिलसिला
आईने में देखा खुद को
तो फिर से घबरा गया।

©aarav
  #Isolation
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aarav

we cordially invite
 you to an open

"A2 Fashion hub"
25 sept 2023

nagla makrol
 gwalior road agra

"we are excited to 
open our doors
and share our
 dream with you"

©aarav
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aarav

हसरतें बड़ी मायूस है
ख्वाहिशों का आकार बनता कँहा,
बेअदायगी है उल्फत के बाजार में
हर किसी के जर्रे में 
एक जैसा लहू बहता कँहा,
मुकद्दर का साज बिगड़ा है
खुश्क लहर में गुलिशता उजड़ा है
मशरूफियत से खिदमत करे
वो ईमां मिलता कँहा,
गम आगोश में लेकर बैठ जाये,
दर्द दिल का, जुंबा समेटने लगे
वो हवा सुनने वाला मिलता कँहा।
-आरव

©aarav
  #walkingalone
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aarav

कोइ ये कहे कि मै तन्हा हूँ
वो अपने अंदर दर्द का समन्दर समेटे हुए है

©aarav
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aarav


खुद से जुदा हो गया हूं
कोई लौटा दे मुझको,
वक्त फरेबी निकला
चल निकला अकेला
उस समां बुझने तलक
कोई लौटा दे मुझको,

महसूस नही होता 
गम का प्याला 
न हसीं रंगीन सुहाने पल
उस जंहा चलने तलक 
कोई लौटा दे मुझको,

कुछ अनकही बातें
झकझोर रही है मुझको
उमड़ते जज्बातों की लड़ियाँ
बहका रही है मुझको,
फ़िज़ा के इस फलक से उस फलक 
जाने तलक कोई लौटा दे मुझको

सूनेपन की गुमनाम सी गलियों से
कोई खींचकर ला दे मुझको।

©aarav

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aarav

कोई दीवाने से पूछे 
तेरा हाल कैसा है,

कोई मस्ताने से पूछे 
उस महबूब का
नजरन्दाज कैसा है,

यूँ बेफिक्री से 
तेरे दर पर सजदा करते रहे
बंदे से रूठ जाना कैसा है,

इंसा जालिम होता है
समझ आया मुझे
पर तेरा बेदर्द बन जाना कैसा है,

कोई इस आशिक़ से पूछे
तेरे अंदर का अंधेरा कैसा है,

तेरे इश्क़ में गुमनाम हुए
तेरी शिद्दत का नज़ारा कैसा है,

कोई आवारा फक्कड़ से पूछे 
दर के लिए फकीर बनना कैसा है।

©aarav
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aarav

 खुद को ढूंढ रहा हूँ मैं
इस आवारा मौसम में,
मै खुद को सहेज रहा हूँ
यादों की बारातों में
मै खुद को देख रहा हूँ,
वक्त की परतें उचल रही है
उन परतों में खुद को ढूंढ रहा हूँ
अहसास बहुत निराले थे
सपनों के भरे प्याले थे
क्षणिक सुखद अहसासो को
खुद से जाते देख रहा हूँ मैं।
काला रंग गहराया अंदर
उठती नही कोई चिंगारी अब
मध्यम मध्यम रोशनी को
खुद से जाते देख रहा हूँ मै,
सपनों से लड़ते लड़ते 
खुद से हार रहा हूँ मै।

©aarav
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aarav

विरक्ति से विमुख नही,
कर्म का सिला उठाना है
मैं चाह कर भी तोड़ नही सकता
कुछ बन्धन को निभाना है
हूँ अभी बंधा में लोकलाज में
गृहस्थ से विरक्ति नही
कुछ दूर अभी, 
सेहरा बांधकर चलना है,
ये जीवन है,
जीवन की तरह
आत्म जीव में रहना है,
अभिव्यक्ति से विमुख नही
अभी तत्व विधान को सहना है,
गहरे छाए बादल है अभी
फिर कड़ी धूप में रहना है,
आसक्ति से विमुख नही
शब्दों की मन पर छाप पड़ी,
वो बात हृदय पर तन के खड़ी
कर्कश आवाजों को धीरे धीरे सुनना है,
अभी छाँव छाँव ही चलना है
फिर पांव पांव ही चलना है,
थोडी दूर है 'विरत' अभी,
ऐश्वर्य को छलना है
फिर कड़ी धूप में चलना है।
@aarav

©aarav
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aarav

मन समझाऊ पर समझ न पाए,
जीभ से घाव बहुत है गहरे,
अहम, में तेरे मुख से निकले 
मन पर भारी, गहरे शब्द 
कुछ सोचूँ कुछ विसरित होता
चिंतित रेखा सिमट न पाए,
मैं भुला दूँ उन शब्दों को,
वो शब्द भी डीठ, गहरा जाते,
वचन बद्ध में अपने लिए
जो मेरे मुख से डोल गए
जो छिपी हुई थी बात कंही
उसका राज वो खोल गए।
मैं माफी के लायक नही
पर तुमने पाप को दोहरा दिया,
जो मेरे अंदर दर्द भरा
उसको और कुरेद गए,
वो शब्द बहुत थे जहरीले
सीने को चीरकर निकल गए।
प्रेम का तागा तुझसे मुझ तक
प्रीत से नाता तोड़ गए
वो शब्द बहुत थे जहरीले
अश्रु भी आंखे छोड़ गए।
@Aarav

©aarav
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