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drasadnizami6561
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DrAsad Nizami

झूट के शह्र में सच्चाई का हामी होना लोग आसान समझते हैं निज़ामी होना व्हाट्सअप- 9793409397

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DrAsad Nizami

कोई मंज़िल न कोई हमराही
ज़िन्दगी का सफ़र भी जारी है

©DrAsad Nizami
  #cycle
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DrAsad Nizami

खास मुश्किल नहीं आसानी से मिल जाता है
आजकल वोट तो बिरयानी से मिल जाता है

©DrAsad Nizami
  #KapilSharma #Burthday
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DrAsad Nizami

बॉस की डाँट या फ़ाइल में  बिज़ी  रहते हैं
हम तो दफ़्तर के मसाइल में बिज़ी रहते हैं

अब "बड़े बूढ़े" भरे घर  में  हैं  तन्हा  तन्हा
घर के सब लोग मोबाइल में बिज़ी रहते हैं

क़ैद  इक कमरे में  हो जाना तो  बीमारी  है
हम हैं तन्हा मगर महफ़िल में बिज़ी रहते हैं

जाने किस लम्हा वो इक दूजे को दिल दे बैठे
अब तो दोनो इसी मुश्किल में बिज़ी  रहते हैं

सब की दिलचस्पी का सामान है इस दुनिया मे
हम "सख़ी" मजम ए साइल में बिज़ी रहते हैं

                            असद निज़ामी

©DrAsad Nizami
  #samandar
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DrAsad Nizami

उजाला दुश्मनों के घर भी पहुंचे
दिया  ऐसा  जलाना  चाहते हैं
कहो सूरज से अब तो डूब जाये
ये  जुगनू  जगमगाना  चाहते हैं
                   असद निज़ामी

©DrAsad Nizami
  #Likho
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DrAsad Nizami



टूटेगी और खुद ही बिखर  जायेगी थकन
मंज़िल मिलेगी मुझको तो मर जायेगी थकन

नन्हे  फ़रिश्ते  पाँव  दबाने  को आएंगे
बच्चों के छोटे हाथों से डर जायेगी थकन

दिन भर  की भाग दौड़ मुझे भूल जायेगी
वो  मुस्कुराएगा तो उतर  जायेगी थकन

हर वक़्त चलते रहने की आदत सी हो गई
आराम कर लिया तो किधर जायेगी थकन

©DrAsad Nizami
  #Likho
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DrAsad Nizami

ग़ज़ल

बेख़बर  ,  बेहया ,,  बेहोश   नहीं   रह  सकते
हम ग़लत बात पे  "ख़ामोश"  नहीं  रह  सकते

हर्फ़ आये  न  कहीं  "अज़मत ए मयनोशी"  पे
चंद  क़तरों   पे  "बलानोश"  नहीं  रह   सकते

गीदड़ों  का  यही  कहना  कि अब  जंगल  में
साँप रह सकते हैं "ख़रगोश"  नहीं  रह  सकते

दिल में घर  करते हैं  दुख दर्द  समझने  वाले
दिल में  "एहसान फ़रामोश"  नहीं  रह  सकते

सारे   क़ानून   शरीफों    के  लिये    बनते   हैं
आप  सच्चे  हैं  तो   निर्दोष  नहीं  रह   सकते

©DrAsad Nizami
  #lonelynight
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DrAsad Nizami

 

हँसते हँसते ही रो भी सकते थे
हम अदाकार हो भी सकते थे

हाथ छोड़ा नहीं बड़ों का कभी
वर्ना मेले में खो भी सकते थे

तेरी यादों का शोर था वर्ना
हिज्र की रात सो भी सकते थे

©DrAsad Nizami
  #dilkibaat
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DrAsad Nizami

_ग़ज़ल
"तख़्त ए शाही"  मज़ाक़ थोड़ी है
"जुमले बाज़ी "  मज़ाक़ थोड़ी है

होना पड़ता है  "अक़्ल से  पैदल"
"अंध भक्ति"  मज़ाक़   थोड़ी  है

बादशाहों  को  ख़ौफ़  में  रखना
ये  "फ़क़ीरी"  मज़ाक़  थोड़ी   है

बेरहम ,   बेज़मीर   बन  पहले
"राजनीति"  मज़ाक़  थोड़ी   है 

बह्र, मीटर,  ख़याल, शब्द चयन
शायरी  भी ,  मज़ाक़  थोड़ी  है

                      #असद_निज़ामी

©DrAsad Nizami
  #angrygirl
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DrAsad Nizami



अब तो  अंसार  भी  नहीं  मिलते
इक  ज़माने  से  हम  मुहाजिर  हैं

बैठ  सकते  नहीं  सुकून  से  हम
रेल   के  बे  टिकट  मुसाफिर  हैं


असद निज़ामी

©DrAsad Nizami
  #Tanhai
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DrAsad Nizami

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