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mohanjha8611
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Mohan Jha

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Mohan Jha

'मानव'
आधा सत्य 
आधा असत्य!
आधा नर 
आधा देव-राक्षस
आधे-आधे!

ख़ुशी हैं तो ग़म में
ग़म ख़ुशी में!

अजीब-सी हैं पहेली
आत्मा-शरीर और मन!
सासो में प्राण
ह्रदय में कम्पन!

एक आनंद की अनुभूति
मन का!
एक संतुष्टि तन का!
एक मिलन!
आत्मा परमात्मा की!
एक विरह! संसार से, 
यात्राएं जन्मो की!
 प्रवर्तित तन-बदन से!

निकल ते कब हम इस वन से 
माया जा ते ना अब मन से!

अजीब-सी हैं पहेली..

एक में ही अनेक हो
फिर भी तुम एक हो!
तुम सब में 
सब तुम में हो!
सम हो..

तुम 'मैं' 'मैं' तुम में
'हम'
पर तुम-तुम-मैं-मैं
वक़्त हैं देखो अब सहसा ठहर गई कैसे!
एक-एक हो या दो तीन हो
पर एक हो!
वक़्त हैं देखो फिर सहसा चल पड़ी कैसे..

वाह-वाह हो तुम्हारी जय हो!
ये हो वो हो फिर भी तुम पराजय हो!

मान लो, ना मानो, या मान लो
बात तो बदल गई!
मान लो जो मानना हैं अब मान लो!

अजीब-सी पहेली हो 
जय भी तुम्हारी हो
पराजय तुम्हारी हो
भाग्य-सौभग्य, सोच-समझ
ज्ञान-विज्ञान, बुद्धि-विचार
सब तुम्हारी हो!

तुम कुछ नहीं
पर तुम 'मैं' हो!
अब 'मैं' हो या तुम हो
सब हो तभी तुम हो!
क्या हो जब सब ना हो
फिर तुम हो! तुम हो! तुम ही हो!
और तुम क्या हो जब तुम ही हो!

और क्या हो जब सब हो
पर तुम ना हो
ये हो वो हो जो हो सो हो!
पर तुम क्या हो..? आधात्मिक कविता!

आधात्मिक कविता!

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Mohan Jha

राह  चलते -चलते कभी उनसे मुलाक़ात हो जाती हैं
मुझे मेरे हाल में देख उनकी आंखे बहोत सी बात कह जाती हैं

तुम बस मेरी काया की भूख हो
रूह की प्यास तो तुम्हे देखते ही बुझ जाती हैं..
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Mohan Jha

अभी तो दिल टुटा हैं हु बरकरार
थोड़ी बेकरारी तो होने दो, 
             कबसे दबा कर बैठा था अपने ग़म को अपने अंदर
              तुम्हे पाने की भरम से निज़ात तो पाने दो, 
लगेगा मेरे चाहने वालो का काफ़िला एक दिन 
अभी चंद-मुद्दत तन्हाई में जी तो लेने दो, (x2)
              अभी तो दिल टुटा हैं हु शाद
              थोड़ी नाशदगी तो होने दो, 
मेरे हमनफ़ज़ हैं कुछ मुख़ालिफ़ मेरे भी
पहले उनके दिल में जगह तो बनाने दो, (x2)
            फिर जान जायेंगे ज़माने को हम
            पहले ज़माने को तो हमें जान लेने दो, (x2)
अभी तो दिल टुटा हैं हु बरकरार
थोड़ी बेकरारी तो होने दो...
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Mohan Jha

कहीं इक ज़रा

कहीं इक ज़रा #कविता

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