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Sakshi Shankhdhar

proud to be brahaman 🌜sakshi Shankhdhar💥 🔶Simple#and#sweet 🔶Only shayr 😀🎶🎻 Profession; HR in minda carporation follow me on Instagram-- दिल की बात कुछ अनकहे अल्फ़ाज़..... and u can find out me on Google ... plz support me guys ...

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Sakshi Shankhdhar

#SadStorytelling अंतरात्मा

#SadStorytelling अंतरात्मा #Poetry

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Sakshi Shankhdhar

. साक्षी शंखधर

©Sakshi Shankhdhar अंतरात्मा

अंतरात्मा #Poetry

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Sakshi Shankhdhar

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Sakshi Shankhdhar

कुछ इस तरह दिन बदलने लगे....

क्या गांव क्या शहर सब बदलने लगे,
जब एक घर में ही कई चूल्हे जलने लगे।
कुछ इस तरह दिन बदलने लगे......।

जिस पिता ने बनाया था जज्बातों का आशियाना,
उनके बेटे नफ़रत की दीवार घर मे खड़ी करने लगे।
कुछ इस तरह दिन बदलने लगे....।

जिसने पाला बड़े प्यार से अपने बच्चो को,
वही बच्चे ममता पर सवाल करने लगे,
कुछ इस तरह दिन बदलने लगे......


जब तक  दौलत रही घर मे इज्ज़त रही,
दो रोटी घर मे सकूं से मिली,
कर धोखा अपने ही मां बाप से,
नाम कर ली  सारी संपत्ति अपने नाम पर,
अब क्या जनाब,
बूढ़े मां बाप दर दर भटकने लगे,
कुछ इस तरह दिन बदलने लगे......।

©Sakshi Shankhdhar #Life

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Sakshi Shankhdhar

देख लहलहाती फ़सल दिल खुश हो रहा,
उसकी आंखों में सौ ख़्वाब पलने लगे।
चुका दूंगा इस बार कर्ज़ पाई पाई का,
यही उम्मीद दिल में गुदगुदी करने लगी।

©Sakshi Shankhdhar
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Sakshi Shankhdhar

शिकायतें बहुत थी उस खुदा से मुझे,
लाख शिकवे गिले थे, खुदा से मुझे,
तूने ये न दिया , तूने वो ना दिया,
जो सड़को पर देखा गरीबी का मंज़र,
मुझे अपनी ही शिकायतें कम लगने लगी।
न जाने क्यूं दिल में एक टीस उठने लगी।।

आया बारिश का मौसम दिन बदलने लगे,
महलों में बारिश सुहानी सी लगने लगी,
जो देखा मिट्टी के घरौंदे की तरफ,
घर के मालिक की आंखो में टपके का डर,
मुझे बारिश की रिमझिम भी ,
फीकी लगने लगी,
न जाने क्यों दिल में एक टीस उठने लगी.....

©Sakshi Shankhdhar #Memories
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Sakshi Shankhdhar

गमों के साए में,
ख़ुशी का लम्हे ढूंढते है,
मुद्दत हो गई मुस्कुराए हुए,
गम का एक कतरा ना हो जहां,
ऐसी जगह ढूंढते है।
गमो में मुस्कुराने की वजह ढूंढ़ते हैं। 

जिंदगी की उलझनों में,
ना जाने कितने रिश्ते है टूटे,
चलो उनके दिल जीतने की,
वजह ढूंढते है,
गमो में मुस्कुराने की वजह ढूंढते हैं।

सुकुन की तलाश में,
बहुत वक़्त है गुज़रा,
मिला क्या है भटकते राही को,
टूटी उम्मीद, अंधेरों का साया,
चलो अंधेरी रात की हम ,
सुबह ढूंढते है।
गमो में मुस्कुराने की वजह ढूंढते हैं।।

©Sakshi Shankhdhar
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