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sunilkumarmaurya6950
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

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Sunil Kumar Maurya Bekhud

परीक्षा
मानव जीवन में कदम कदम पर
होती सदा परीक्षा
बिना परीक्षा पूर्ण न होती
है कोई भी शिक्षा

कोई परीक्षा लिखित है होती
कोई होती मौखिक
सबका असर व्यक्ति पर होता
दैहिक दैविक भौतिक

कोई प्रश्न सरल होता तो
कोई होता संकीर्ण
अनुत्तीर्ण होता है कोई 
कोई होता उत्तीर्ण

कोई परीक्षा से डरता है
कोई करे ना चिंता
कोई देता रोज परीक्षा
संख्या कभी न गिनता

 बेखुद कठिन परीक्षा होती 
है मंजिल की सीढ़ी
और कठिन होती जाती है
यह पीढ़ी दर पीढी़

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #परीक्षा
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

सपना

पता नहीं चलता है कैसे
कट जाती है रात
सुबह भूल जातें हैं
हम सपनों की बात

लेकिन कुछ सपनों को
भूल नहीं पाते हम
दिन भर करते याद
मन में दुहराते हम

चले गए दुनिया से
दूर बहुत जो अपने
हमें मिला देते हैं
उन अपनों को सपने

कभी डराते हमको
कभी बांटते खुशियाँ
कभी रुलाते जी भर
थक जाती हैं अँखियाँ

जो कुछ खो देते हम
या फिर जो कुछ पाते
बेखुद सब मिट जाता
जब हम हैं उठ जाते

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #DREAMING
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

मेरे दिल में मेरे हमदम
तेरी यादों का खजाना है
कैसे मै इसे तोड़ूँ
रिश्ता ये पुराना है

तुम पास नहीं रहते
अहसास तेरा दिल में
रहते हो सदा मेरे
ख्वाबों की महफ़िल में

मजबूर हूँ मै दिल से
दिल तेरा दीवाना है
मेरे दिल में मेरे हमदम
तेरी यादों का खजाना है

आबाद रहो गर तुम
तन्हा मै रह लूँगा
मैं दर्द जुदाई का
हँस करके सह लूंगा

तुमने तोड़े रिश्ता
पर मुझको निभाना है
मेरे दिल में मेरे हमदम
तेरी यादों का ठिकाना है

फरियाद तेरे दर पर
मेरा दिल नहीं मागेगा
तुम जख्म इसे दोगे
ये तुमको दुआ देगा

बेखुद तेरा दोष नहीं
बेदर्द जमाना है
मेरे दिल में मेरे हमदम
तेरी यादों का ठिकाना है

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #💔दर्द_भरे_गीत❤️

#💔दर्द_भरे_गीत❤️ #कविता

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Sunil Kumar Maurya Bekhud

सर्दी
सूर्य देव को कोहरे ने यूँ 
बना लिया है बंधक
लगे काँपने जोर जोर से
लग गई उनको ठंढक

नहीं सूझता किधर वो जाएं
चारो तरफ अंधेरा
कहने को है दिन लेकिन है
घने तिमिर का डेरा

सोच रहें हैं आग जलाकर
उनको कोई तपाए
हालत उनकी देख कोई न
उनकी हँसी उड़ाए

उनकी किरणें जुटीं यूद्ध में
विजय न होगी जबतक
कोहरे का सम्राज्य रहेगा
इस धरती पर तबतक

बेसब्री से सारी दुनिया
बेखुद करे प्रतिक्षा
धूप खिलेगी सुखदायी जब
होगी प्रभु की इच्छा

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #Winter
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

पतंग
ऊँचाई तक पँहुच गया हूँ
तेज हवा के संग
विषम परिस्थिति रोक रही थी
बहुत किया है जंग

वाह वाह कहती  है दुनिया
मुझे यहाँ पर देख
कोई गीत लिखता है मुझ पर
कोई लिखता लेख

सभी प्यार से देखें मुझको
बजा रहें हैं ताली
हर्षित होकर मुझे निहारे
डोर पकड़ने वाली

मुझे कोई भी नहीं पूछता
अगर नहीं उड़ पाता
आसमान छूने का सपना
सपना ही रह जाता

विनती है ईश्वर से बेखुद
टूटे कभी न डोर
वरना लौट न पाऊंगा मैं
फिर अपनों की ओर

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #kite
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

आँसू
खट्टी मीठी यादें हो
या पीड़ा हो तन मन की
मिली असीमित खुशियाँ या हो
खुशी छिनी जीवन की

चल पड़ते होकर स्वतंत्र कर
नेत्रों का परित्याग
बुझा सकें शायद वो उर की
विकट धधकती आग

उन्हे पता है वो नेत्रों के
लिए बहुत अनमोल
करते सदा प्रतिक्षा उनकी
छू लें उन्हें कपोल

पा करके स्नेहिल स्पर्श वो
कहें करो विश्राम
आँसू बोला रुक नहीं सकते
मुझे बहुत है काम

हृदय शांत हो जाए बेखुद
भले ही मैं मिट जाऊँ
आँसू कहता मैं मानव के
किसी काम तो आऊँ

©Sunil Kumar Maurya Bekhud # आँसू

# आँसू #कविता

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Sunil Kumar Maurya Bekhud

धरती
हरी भरी मनमोहक तन हो
या हो बंजर परती
हर प्राणी से एक ही नाता
सबकी माता धरती

जननी है हर जीव की असली
ये ही पालनहार
हृदय विशाल सागर सा इसका
खूब लुटाती प्यार

भूखे को भोजन  देती है
व प्यासे को नीर
रत्नों का भंडार है देती
अपने हृदय को चीर

कहती मानव से तुम मेरी
सर्वोत्तम संतान
मेरी रक्षा हाथ तुम्हारे
कहते वेद पुरान

बेखुद ऐसे काम न करना
आए मुझ पर संकट
डर लगता ब्रम्हांड कहे ना
मुझे भविष्य का मरघट

   स्वरचित
  सुनील कुमार मौर्य बेखुद
  24/12/2024

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #EarthDay
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

उल्लू
उल्लू बैठा हरी डाल पर
देख रहा चहुँओर
शांत शांत सा है वो लेकिन
पक्षी मचाते शोर

सोच रहा क्या मेरे अंदर
नहीं है कोई खूबी
या अवगुण के ही तलाश में
सारी दुनिया डूबी

मूर्खों की मुझसे तुलना कर
लोग बहुत इतराते
बात बात पर देते ताने
मेरी हँसी उड़ाते

कोई देख न सकता मुझ सा
अंधेरी रातों में
झूठ बोल मैं नहीं फँसाता
लोगों को बातों में

बेखुद सोच रहा लोगोँ की
कब बदलेगी सोच

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #उल्लू
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Sunil Kumar Maurya Bekhud

कविता
तुम आयी मेरे जीवन में
अगडित भावों को लेकर
उर का मंथन किया उदाधि सा
कर में लेखनी देकर

कभी प्रेम के अश्रु गिरे तो
कभी वेदना मन की
कोरे कागज पर लिखवाए
व्यथा मेरे जीवन की

देश काल की घटनाओं से
द्रवित हुआ जब भी मन
चली लेखनी सरपट लिखने
तोड़ के सारे बंधन

कभी प्रकृति का रूप निहारा
सुंदरता में खोए
उसकी छटा देखकर मन में
सपने कई संजोए

बेखुद  साथ तुम्हारा मेरा
दिन हो या हो सविता
नहीं रुकेगी मेरी लेखनी
तुम हो मेरी कविता

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #कविता

कविता

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Sunil Kumar Maurya Bekhud

अग्नि
जलती हुई अग्नि कहती है
मेरे भीतर ताप
पास बुलाती  यदि हो कोई
रहा ठंड से कांप

मुझे देख भयभीत है कोई
किसी को मुझसे प्रीत
मेरे ऊपर लिखे गए हैं
अगणित सुंदर गीत

धधक रही हूँ किसी हृदय में
बन नफरत या प्रेम
या फिर मैं प्रतिशोध रूप में
ज्वाला मेरी देन

चूल्हे में जाकर मैं प्रतिदिन
सबकी भूख मिटाती
मुझसे अहित न होने पाए
दुनिया को समझाती

बेखुद ईश्वर से विनती है
हाथ जोड़कर मेरी
परहित में न होने पाए
कभी भी मुझसे देरी

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #अग्नि
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