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kingking4483
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संस्कृत भाषा ( शिक्षक ) Facebook pages

simple boy ☺ want to be a motivational😂 insta " vijay_ singatiya

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White गुरु की वाणी से निकले हुए शब्द जब मेंने अपनी कर्म की किताब पर लिखे तो पन्ने अधूरे रह गये.......

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White गुरु की वाणी से निकले हुए शब्द मेंने अपनी कर्म की किताब पर लिखे तो किताब का पेज अभी भी अधूरा हैं......

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White माता शत्रुः पिता वैरी येन बालो न पाठितः !
न शोभते सभामध्ये हंसमध्ये बको यथा
जो माता – पिता अपने बच्चो को पढ़ाते नहीं है ऐसे माँ – बाप बच्चो के शत्रु के समान है. विद्वानों की सभा में अनपढ़ व्यक्ति कभी सम्मान नहीं पा सकता वह वहां हंसो के बीच एक बगुले की तरह होता है.

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White  यस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् !
तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि !!
वह व्यक्ति जो अलग – अलग जगहों या देशो में घूमता है और विद्वानों की सेवा करता है उसकी बुद्धि उसी तरह से बढती है जैसे तेल का बूंद पानी में गिरने के बाद फ़ैल जाता है.

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White सर्वं परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्।
एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः॥
जो सब अन्यों के वश में होता है, वह दुःख है। जो सब अपने वश में होता है, वह सुख है।
यही संक्षेप में सुख एवं दुःख का लक्षण है।

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उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः !
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः !!

हिन्दी अर्थ : दुनिया में कोई भी काम सिर्फ सोचने से पूरा नहीं होता बल्कि कठिन परिश्रम से पूरा होता है. कभी भी सोते हुए शेर के मुँह में हिरण खुद नहीं आता.

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White बलवानप्यशक्तोऽसौ धनवानपि निर्धनः !
श्रुतवानपि मूर्खो सौ यो धर्मविमुखो जनः !!

हिन्दी अर्थ : जो व्यक्ति अपने कर्तव्य से विमुख हो जाता है वह व्यक्ति बलवान होने पर भी असमर्थ, धनवान होने पर भी निर्धन व ज्ञानी होने पर भी मुर्ख होता है.

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White सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात्
न ब्रूयात् सत्यं प्रियम्।
प्रियं च नानृतं ब्रूयात्
एष धर्म: सनातन:।। सत्य बोलें, प्रिय बातें बोलें, पर अप्रिय सत्य नहीं बोलें। प्रिय असत्य भी न बोलें, यही सनातन धर्म है।

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White आत्मार्थं जीवलोकेऽस्मिन् को न जीवति मानवः।
परं परोपकारार्थं यो जीवति स जीवति।

- इस जीवलोक में स्वयं के लिए कौन नहीं जीता ? परंतु, जो परोपकार के लिए जीता है, वही सच्चा जीना है।

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White गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति

ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः।

सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः

समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ।।

भावार्थ :  गुण केवल गुणी लोगों में ही पाए जाते हैं। तभी तक वे सद्गुण रहते हैं। जब वे निर्गुण लोगों में चले जाते हैं तो वह अवगुण बन जाते हैं। बिल्कुल उसी प्रकार जिस तरह नदी का जल मीठा होता है और वह पीने योग्य होता है। लेकिन समुद्र में मिलते ही वह जल पीने लायक नहीं रहता अर्थात उसका गुण समाप्त हो जाता है।

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